पीड़ित होने के बावजूद महिलाएं न्याय की पहली सीढ़ी से भी दूर हैं

Despite being victimised this  half population still miles away to get justice

भले ही महिलाओं की संख्या देश की कुल जनसंख्या की लगभग आधी है, लेकिन अक्सर पीड़ित होने के बावजूद उनमें से बहुत ही कम पारिवारिक और संपत्ति से संबंधित विवादों में अदालत का रुख़ कर पाती हैं.

  • देश की छोटी और ज़िला अदालतों में लंबित पड़े 2.55 करोड़ मामलों में से केवल 10 प्रतिशत ही महिलाओं की ओर से फ़ाइल किए गए हैं.
  • जानकारों के मुताबिक यह बताता है कि हमारा सामाजिक ढांचा महिलाओं को लेकर अभी भी कितना भेदभावपूर्ण है जहां पारिवारिक और व्यक्तिगत विवादों में अधिकतर पुरुषों द्वारा लिए गए फ़ैसले मायने रखते हैं.
  • आपराधिक मामलों में 70 प्रतिशत पुरुषों द्वारा दायर किए गए. वहीं जितने मामले महिलाओं द्वारा दायर किए गए, उनमें आपराधिक केसों की संख्या 50 प्रतिशत से भी कम है.
  • केवल छह राज्य ऐसे हैं जहां महिलाओं के केस दर्ज कराने का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत (10.3 प्रतिशत) से ज़्यादा है. इनमें 16 प्रतिशत के साथ आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर है. इसके बाद बिहार और पंजाब में 15-15 प्रतिशत मामले महिलाओं ने दर्ज कराए हैं.
  • गोवा, तमिलनाडु और चंडीगढ़ में 14-14 प्रतिशत महिलाएं ही केस दर्ज करा पाईं तो वहीं, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों की निचली अदालतों के 9.5 से 10.5 प्रतिशत मामले ही महिलाओं की ओर से दर्ज कराए गए. हरियाणा, हिमाचल, झारखंड, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय औसत से अधिक 12 प्रतिशत महिलाओं ने केस दर्ज कराए.

ख़ास बात यह है कि दिल्ली और गुजरात, जहां प्रति व्यक्ति आय देश के अन्य राज्यों से ज़्यादा है, वे भी इस मामले में निराश करते हैं. गुजरात में कुल 17.26 लाख में से केवल 65 हज़ार केस ही महिलाओं ने दायर किए हैं, यानी सिर्फ 3.8 प्रतिशत. वहीं, दिल्ली के 5.74 लाख मामलों में 30 हज़ार केस ही महिलाओं की ओर से डाले गए हैं. यानी कुल मामलों का क़रीब पांच प्रतिशत. जिन अन्य राज्यों में कम महिलाएं केस दायर कर पाती हैं, उनमें उत्तराखंड (4.8%), केरल (7%), ओडिशा (7.6%) और जम्मू-कश्मीर (7.75%) शामिल हैं. उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी यही हाल है. यहां केवल दस से 13 प्रतिशत मामले महिलाओं की ओर से दायर किए गए.

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