जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण: आधारभूत सुविधाओं की दरकार

- तेजी से बढ़ती आबादी को सभी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना देश के नीति-नियंताओं के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो रहा है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण ने शहरी बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं पर दबाव बढ़ाया है। अपर्याप्त वित्तीय संसाधनों के चलते छोटे शहर इस बढ़ती मांग को पूरा करने में असमर्थ साबित हो रहे हैं।

=>शहरी ढांचे पर बढ़ता दबाव
* करीब 21 फीसद शहरी आबादी ऐसी जगहों पर रहती है जहां मूल सुविधाओं की उपलब्धता स्थिति अति दयनीय है।
* हालांकि 89 फीसद शहरी आबादी को स्वच्छ पेयजल मुहैया होने का दावा किया जाता है लेकिन समान वितरण की गंभीर समस्या है।
* देश के शहरों और कस्बों में प्रतिदिन औसतन 2.9 घंटे की ही जलापूर्ति हो पाती है।
* आपूर्ति किए जाने वाले पेयजल का एक बड़ा हिस्सा खराब पाइपलाइनों के चलते बर्बाद हो जाता है
* 30 से 50 फीसद घर सीवर से जुड़े नहीं हैं जबकि 30 फीसद से कम ही गंदे जल का शोधन हो पाता है।
* औसतन प्रति व्यक्ति ठोस कचरे का उत्पादन 0.4 किग्रा है जबकि कुल उत्पादित ठोस कचरे का केवल 50-90 फीसद हिस्सा ही रोजाना कूड़े के रूप में उठाया जाता है।
* शहरी सड़कें यातायात की जरूरत के मुताबिक अपर्याप्त साबित हो रही हैं। अत्यधिक लोड से समय से पहले ही खराब हो जाती हैं।
* सेवाओं की खराब दशा शहरों की पर्यावरण और आबोहवा पर प्रतिकूल असर डाल रही है।

=>अपर्याप्त क्षमता:-
**सड़कें और राजमार्ग:-
40% देश के कुल सड़क नेटवर्क में राष्ट्रीय राजमार्गों की हिस्सेदारी करीब 2 फीसद है जबकि 40 फीसद यातायात इसी से संचालित होता है।
38% नेटवर्क सिंगल लेन
50% दो लेन
12% केवल चार लेन

=>ऊर्जा
13.8% पीक समय में कमी
9.6% ऊर्जा कमी
40% पारेषण और वितरण नुकसान

=>हवाई अड्डे
अपर्याप्त रनवे, विमान उतरने की क्षमता, पार्किंग और टर्मिनल बिल्डिंग्स

=>रेलवे:-
* पुरानी तकनीक पर निर्भर
* करीब-करीब सभी रूट संतृप्त
* धीमी रफ्तार (मालगाड़ी-22 किमी प्रति घंटा तो यात्री गाड़ी 50 किमी प्रति घंटा)
* कम पेलोड अनुपात

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