- इधर कुछ समय से पर्यावरण बचाने को लेकर चल रहे अंतरराष्ट्रीय अभियानों में भारत की भूमिका बेहद अहम हो गई है। अपनी जवाबदेही को भारत ने समझा है इसलिए उसने अपना स्थापित रुख बदलते हुए बाकी देशों के साथ सहयोग की नीति अपनाई है।
- इसका सबूत है जलवायु परिवर्तन पर भारत का रोडमैप, जिसमें 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 33 से 35 फीसदी कटौती की बात कही गई है। जापान और यूरोपियन यूनियन काफी पहले से अपने रोडमैप की घोषणा कर चुके हैं और इधर इस सूची में अमेरिका और चीन का नाम भी शामिल हो गया है।
- वैसे, अभी तक भारत कार्बन उत्सर्जन के मुद्दे को पश्चिमी देशों की वर्चस्ववादी राजनीति का एक औजार मानकर इसका विरोध करता आया था।
- भारत की दलील थी कि पर्यावरण के अनुकूल टेक्नॉलजी अपनाने का दबाव बनाकर विकसित देश विकासशील देशों को पिछड़ा बनाए रखना चाहते हैं। बातचीत के कई चरणों के बाद इस साल एक आम समझ यह बनी कि भारत, ब्राजील और चीन जैसे बड़े विकासशील देशों ने अगर अपना कोई लक्ष्य नहीं तय किया तो दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग के घातक प्रभावों से नहीं बचाया जा सकता।
- इसलिए आगामी नवंबर-दिसंबर में होने वाले पेरिस महासम्मेलन के पहले भारत ने अपना रोडमैप जारी कर दिया। इसके तहत सरकार ने फैसला किया है कि 2030 तक होने वाले कुल बिजली उत्पादन में 40 फीसदी हिस्सा सोलर इनर्जी और विंड इनर्जी जैसे अक्षय स्रोतों से हासिल किया जाएगा। यानी, भारत साफ-सुथरी ऊर्जा के लिए बड़ा कदम उठाने जा रहा है।
- यह बात पहले ही कही जा चुकी है कि 2022 तक हम एक लाख 75 हजार मेगावाट बिजली सौर सेलों और पवनचक्कियों से बनाएंगे। वातावरण में फैले ढाई से तीन खरब टन कार्बन को सोखने के लिए अतिरिक्त जंगल भी लगाए जाएंगे।
- अब हम विकसित देशों से कह सकते हैं कि वे भी इको फ्रेंडली टेक्नॉलजी के विकास के लिए बनाए गए जलवायु कोष में योगदान का वादा जल्दी पूरा करें। लेकिन हमारी असली चुनौती अब शुरू होने वाली है।
- हमने जो लक्ष्य तय किया है, उसे पूरा करने के लिए कई स्तरों पर कदम उठाने होंगे। यह काम केवल सरकार ही नहीं कर पाएगी इसके लिए उद्योगों और आम लोगों को मिलकर काम करना होगा। नवीकरणीय (रिन्यूएबल) ऊर्जा के क्षेत्र में लगातार तरक्की हो रही है।
- राजस्थान में सौर ऊर्जा के बड़े प्लांट्स लगाए गए हैं। लेकिन इस अभियान को और जगहों पर भी फैलाने की जरूरत है। अगर प्रदूषण कम करना है तो बिजली और गाड़ियों से होने वाला कार्बन डॉइऑक्साइड उत्सर्जन घटाना होगा।
- हमारे देश में सबसे ज्यादा प्रदूषण औद्योगिक इकाइयों से फैलता है, पर वे पर्यावरण मानकों को नहीं मानतीं।
- सरकार पर्यावरण की रक्षा की बात तो करती है पर साथ में उद्योगपतियों को आश्वासन भी देती रहती है कि उनके प्रॉजेक्ट पर्यावरण संबंधी शर्तों के कारण नही अटकेंगे। जाहिर है, काम करने की संस्कृति बदलनी होगी, माइंडसेट बदलना होगा, तभी हमारा लक्ष्य पूरा हो सकेगा।