[2:00 AM, 9/2/2016] Manish Jito: पश्चिम बंगाल की विधानसभा ने राज्य का नाम बदलने का प्रस्ताव पारित कर दिया है. इसमें 'पश्चिम बंगाल' का नाम बंगाली भाषा में 'बांग्ला' और अंग्रेज़ी में 'बंगाल' करने की बात कही गई है.
★राज्य सरकार अब इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेजेगी. केंद्र से अनुमति मिलने के बाद पश्चिम बंगाल का नाम अधिकारिक रूप से बदल जाएगा.
★ममता सरकार का कहना था कि यह कोई नई मांग नहीं है, बल्कि इस बदलाव का कारण अंग्रेजी की वर्णमाला है. उसके अनुसार जब सभी राज्यों के सम्मेलन आयोजित होते हैं तो उसमें पश्चिम बंगाल के वक्ताओं को काफी देर से बोलने का मौका मिलता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन सम्मेलनों में वक्ताओं को अंग्रेजी की वर्णमाला के क्रम में बोलने के लिए बुलाया जाता है. इस वजह से उन्हें अपने विचारों को रखने के लिए अक्सर काफी कम वक्त मिल पाता है और उस वक्त वे काफी थके हुए भी होते हैं.
राज्य सरकार इससे पहले साल 2011 में भी राज्य का नाम बदलने का प्रयास कर चुकी है लेकिन तब उसे केंद्र से इसकी अनुमति नहीं मिल पाई थी.
[2:04 AM, 9/2/2016] Manish Jito: =>"चुनावी सुधार की दिशा में सरकार का एक अहम कदम: वोटरों की गोपनीयता बनाए रखने को प्राथमिकता "
- चुनावी सुधार की दिशा में यह एक अहम कदम है. एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने फैसला किया है कि चुनाव नतीजों की घोषणा करते हुए निर्वाचन क्षेत्रों में बूथ स्तर पर पड़े वोटों का आंकड़ा अब सार्वजनिक नहीं किया जाएगा.
- ऐसा वोटरों की गोपनीयता बनाए रखने के लिए किया गया है ताकि उम्मीदवारों द्वारा उन्हें प्रताड़ित न किया जा सके. भविष्य में एक टोटलाइजर मशीन अलग-अलग इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) पर पड़े वोटों को मिलाकर नतीजा बताएगी.
- रिपोर्ट के मुताबिक कानून मंत्रालय ने इस प्रस्ताव को हरी झंडी दे ही. इसके साथ ही 1961 में चुनाव संबंधी नियमों में सुधार का रास्ता साफ हो गया है. सूत्रों के मुताबिक इस मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय समिति में काफी मंथन हुआ.
- इसमें गृह मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री अरुण जेटली, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद शामिल थे. यह समिति प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देशों के बाद बनाई गई थी.
- यह प्रस्ताव मूल रूप से 2008 में चुनाव आयोग ने दिया था. ईवीएम से पहले वोटों की गिनती करते हुए पेपर बैलट भी मिला दिए जाते थे. इसका मकसद भी यही होता था कि बूथ स्तर पर पड़े वोटों की जानकारी गोपनीय ही रहे और पार्टियां या उम्मीदवार वोटरों को डरा-धमका न सकें.
- इसी साल मार्च में हुए एक बैठक में चुनाव आयोग ने टोटलाइजर मशीन का प्रदर्शन भी किया था. इस बैठक में सभी छह राष्ट्रीय पार्टियां और 29 क्षेत्रीय पार्टियां शामिल थीं. बताया जाता है कि कांग्रेस, बसपा, एनसीपी, आप, शिरोमणि अकाली दल और शिव सेना जैसी कई पार्टियों ने इसका समर्थन किया था.
- तृणमूल कांग्रेस जैसी कुछ पार्टियां इसके विरोध में भी थीं जबकि सीपीएम का मत था कि टोटलाइजर मशीन बिल्कुल ठीक तरीके से काम करे, पहले यह सुनिश्चित होना चाहिए.