Times Of India का संपादकीय
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मराठा समुदाय का यह आंदोलन फिर चेता रहा है कि रोजगार के बिना विशाल युवा आबादी देश के लिए वरदान के बजाय अभिशाप बन सकती है. द टाइम्स ऑफ इंडिया की संपादकीय)
- महाराष्ट्र के अलग-अलग शहरों में उमड़ती मराठा समुदाय की मौन रैलियों ने वहां सरकार और राजनीतिक नेतृत्व, दोनों को असहज कर दिया है. इस आंदोलन की चिंगारी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली एक लड़की के गैंगरेप से भड़की थी. लेकिन अब इसकी मुख्य मांग यह है कि मराठाओं को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाए.
- मराठा राज्य में सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभुत्व रखने वाली जाति रही है. महाराष्ट्र में इस समुदाय की आबादी 30 फीसदी से ऊपर है. इसने राज्य को 18 में से 13 मुख्यमंत्री दिए हैं. पर अब मराठाओं को लग रहा है कि विकास की दौड़ में वे पीछे छूट गए हैं.
- इस समुदाय की ज्यादातर आबादी सूखे की आशंका वाले इलाकों में रहती है और उसके पास छोटी-छोटी जोत वाली जमीनें हैं जिनसे इस मुश्किल समय में उसकी जिंदगी की गाड़ी नहीं खिंच पा रही. इससे पहले सत्ता में रही कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मराठाओं के लिए 16 फीसदी आरक्षण की घोषणा की थी लेकिन, उस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने रोक लगा दी. मौजूदा भाजपानीत सरकार इसे चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट गई थी लेकिन, वहां भी यही फैसला बरकरार रहा.
- मराठा समुदाय का यह आंदोलन बताता है कि देश में रोजगार का संकट कितना गहरा गया है. अगर शिक्षा और रोजगार बढ़ती आबादी के साथ ताल न मिला पाएं तो युवा आबादी का यह विशाल भंडार फायदों के बजाय त्रासदी में तब्दील हो सकता है.
- मंडल और ओबीसी आरक्षण ने इस विचार को वैधता दी है कि सरकार को मुख्य रूप से खेती पर निर्भर जातियों को भी आरक्षण देना चाहिए.
- यही वजह है कि आंध्र प्रदेश में कापू, हरियाणा में जाट और गुजरात में पटेल समुदाय ने सरकारों की नींद हराम कर रखी है. अब इस कड़ी में अगला नाम महाराष्ट्र के मराठा समुदाय का भी जुड़ गया है.
- इसका समाधान सिर्फ यही है कि ऐसे आर्थिक सुधार किए जाएं जिनसे रोजगार बढ़ें.
- आरक्षण का दायरा बढ़ाने से कुछ नहीं होगा क्योंकि सरकारी नौकरियां सीमित हैं.
- मराठा और जाट समुदायों को आरक्षण की मांग मान भी ली जाए तो इससे दूसरे समुदायों में भी असंतोष बढ़ेगा और जातिगत टकरावों के लिए मंच तैयार हो जाएगा. अब इसका जोखिम नहीं लिया जा सकता.