केंद्र सरकार ने सीआरपीएफ की एक आदिवासी बटालियन के गठन को हरी झंडी दे दी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक खासतौर पर माओवाद से निपटने के लिए बनने वाली इस बटालियन में सिर्फ छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के आदिवासी होंगे. पहले पांच साल तक इसकी तैनाती बस्तर में ही रहेगी.
- इस तरह की बटालियन बनाने का प्रस्ताव सीआरपीएफ की तरफ से चार महीने पहले आया था. तर्क दिया गया था कि इससे बस्तर में बेरोजगार आदिवासी युवाओं को माओवाद के असर से दूर ले जाया सकेगा. साथ ही अलग-अलग नक्सल प्रभावित इलाकों के लिए एक दंडकारण्य बटालियन बने.
=>कारण और उसके निहितार्थ :-
1. रिपोर्ट के मुताबिक इसका कारण यह है कि एक तो यह नक्सलवाद की सबसे ज्यादा ग्रस्त इलाका है और दूसरा, सुरक्षा बलों में इस जिले का प्रतिनिधित्व सबसे कम भी है.
2- सरकार ने इस बटालियन में भर्ती के लिए लंबाई और छाती की माप जैसे शारीरिक योग्यता संबंधी मानदंडों में भी ढील दी है ताकि ज्यादा से ज्यादा आदिवासी पात्रता की शर्तें पूरी कर सकें.
3- इस कदम से सुरक्षा अभियानों को मजबूती मिलेगी. इसका कारण यह है कि आदिवासियों को इलाके के भूगोल की कहीं बेहतर जानकारी होती है.
4- इसके अलावा स्थानीय सूचनाओं तक उनकी पहुंच होने के कारण वे इस इलाके में लड़ने के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं.
- 90 के दशक में इसी तरह की एक बटालियन का गठन सीआरपीएफ ने पूर्वोत्तर में भी किया था. लेकिन किसी नक्सल प्रभावित इलाके में यह कदम पहली बार उठाया गया है.
- सरकार ने पहले भी कोटे के जरिये हर बटालियन में आदिवासियों की संख्या बढ़ाने की कोशिश की थी हालांकि उसका यह कदम ज्यादा कामयाब नहीं हो सका.