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हाल ही में हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन भारत में आयोजित हुआ |
क्या है यह
- आतंकवाद और गरीबी से निपटने के लिए अफगानिस्तान और इसके पडोसी देशों के बीच आर्थिक और सुरक्षा सहयोग बढाने के लिए 2011 में हार्ट ऑफ़ एशिया पहल की शुरुआत की गई इसको इस्ताम्बुल process के नाम से भी जाना जाता है |
- अफग़ानिस्तान, अजऱबैज़ान, चीन, भारत, ईरान, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, सऊदी अरब, ताजि़किस्तान, तुर्कमेनिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात, पाक, तुर्की समेत 14 देशों ने आपदा प्रबंधन, आतंकवाद को रोकने, नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध, व्यापार-निवेश को बढ़ाने, क्षेत्रीय अधोसंरचना विकसित करने, और शिक्षा का विस्तार जैसे छह प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को चुना था।
भारत की कुटनीतिक कामयाबी
अफगानिस्तान को पुनर्निर्माण में मदद करने के मकसद से अमृतसर में हुए ‘हॉर्ट आफ एशिया सम्मेलन’ को भारत जैसा कूटनीतिक मोड़ देने चाहता था, देने में सफल रहा।
- सम्मेलन के एजेंडे में तो आतंकवाद का मुद्दा प्रमुख था ही, उसके घोषणापत्र में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों को दक्षिण एशिया की शांति के लिए बड़े खतरे के रूप में रेखांकित किया गया। यह निश्चय ही भारत की बड़ी कूटनीतिक कामयाबी है।
- भारत ने कहा की आतंकवाद और बाहर से प्रोत्साहित अस्थिरता ने अफगानिस्तान की शांति और समृद्धि के लिए गंभीर खतरा पैदा किया है; आतंकी हिंसा के बढ़ते दायरे ने हमारे पूरे क्षेत्र को खतरे में डाला है। अफगानिस्तान में शांति की आवाज का समर्थन करना ही पर्याप्त नहीं है, इसके साथ ही दृढ़ कार्रवाई होनी चाहिए। यह कार्रवाई आतंकवादी ताकतों के खिलाफ ही नहीं, उन्हें सहयोग और शरण देने वालों के विरुद्ध भी होनी चाहिए।