- ‘मिस्र के साथ भारत के संबंधों का असर इस क्षेत्र के बाकी देशों के साथ भारत के संबंधों पर भी पड़ता है.
- भारत- मिस्र ‘सभ्यता के काल’ (सिंधु-सरस्वती अथवा हड़प्पा सभ्यता) से ही एक-दूसरे से जुड़े रहे हैं इसलिए भारत न केवल मिस्र की भू-सामरिक अवस्थिति व सुदृढ़ सैन्य शक्ति से परिचित है, बल्कि उसकी सभ्यतागत सामथ्र्य व सांस्कृतिक प्रभाव से भी परिचित है.
- भारत इस क्षेत्र में अधिक सक्रियता सेजुड़ा हुआ है जो भारत के पश्चिम में स्थित है. मिस्र, भारत के सुरक्षा हित के साथ-साथ ऊर्जा की जरूरतों के केन्द्र में हैं.’
- वास्तव में भारत-मिस्र के बीच व्यापार, सभ्यता व संस्कृति का जुड़ाव इतिहास के हर कालखंड में रहा और भारत द्वारा मिस्र की सामरिक-आर्थिक महत्ता को भी हर कालखंड में समझा गया, चाहे वह सिंधु-सरस्वती घाटी सभ्यता काल हो, मौर्य सम्राट अशोक का काल हो, तुर्क-मुगल काल हो या आधुनिक भारत के निर्माण काल.
- इन सम्बंधों की गाथा के चिह्न हड़प्पाई मुहरों, अभिलेखों और भारतीय विदेश नीति के एफ्रो-एशियाई ब्रदरहुड के रूप में लिखे गये पन्नों पर दर्ज हैं. कहने का तात्पर्य है कि भारत और मिस्र के बीच संबंध मूल्यों और साझी विरासतों का संबंध रहा है, इसलिए भारत-मिस्र सम्बंधों का आधार दृढ़ है जिसका लाभ भारत अरब जगत पर अपना प्रभाव स्थापित करने में कर सकता है.
- मोटे तौर पर भारतीय मंत्री की काहिरा यात्रा के तीन मकसद दिखते हैं.
1. पुराने सम्बंधों के नवीकरण के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूएई यात्रा के प्रभाव का मिस्र तक विस्तार देकर भारत-पश्चिम एशिया सम्बंधों को पुख्ता करना.
2. आतंकवाद के खिलाफ मोर्चा मजबूत करना. सम्पूर्ण पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका क्योंकि आतंकवाद और अशांति से प्रभावित है, ऐसे में भारत-मिस्र आतंकवाद के खिलाफ बेहतर साझेदारी कर सकते हैं, विशेषकर तब जब आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में एक-दूसरे का सहयोग करने के लिए दोनों देशों के मध्य पहले ही एक समझौता किया जा चुका हो.
- गौरतलब है कि आतंकवाद की तरफ से उठने वाली चुनौती दोनों देशों के लिए लगभग एक जैसी हैं. अल कायदा अथवा अल कायदा इस्लामी मगरिब, आईसिस जहां मिस्र के लिए चुनौती बने हुए हैं वहीं तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा के साथ पाकिस्तान में पैदा की गयी दूसरी आतंकवादी जमातें भारत के लिए.
3. अरब लीग के जरिए भारत-अरब सम्बंधों के विभिन्न आयामों को नयी ऊर्जा देना. इसमें भी दो मकसद निहित हो सकते हैं.
A. पाकिस्तान को अरब देशों से मिलने वाले धामिक अनुलाभ (रिलीजियस डिवीडेंड) रोकना ताकि पाकिस्तान सरकार की तरफ से नॉन-स्टेट एक्टर्स को दी जाने वाली सहायता पर लगाम लगे जिसका एक स्रोत अरब दुनिया में भी है.
B. प्रधानमंत्री मोदी की भावी इस्रइल यात्रा के लिए आधार तैयार हो सके और इसके साथ ही इस क्षेत्र में व्याप्त संघर्षं के समाधान में भारत सकारात्मक भूमिका निभा सके.
- इनके अतिरिक्त परंपरागत मकसद था जो प्राय: सभी कूटनीतिक यात्राओं का होता है-व्यापार व निवेश. भारत, मिस्र का छठा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है और भारत के निर्यातों के खरीदार के रूप में मिस्र दूसरे स्थान पर है.
- दोनों के बीच पिछले वित्त वर्ष में द्विपक्षीय व्यापार 4.76 बिलियन डॉलर से अधिक रहा और भविष्य में इसमें वृद्धि की संभावनाएं हैं.
- मिस्र के प्रभाव वाले सम्पूर्ण क्षेत्र में भारत के करीब 70 लाख लोग रहते हैं जिनके अपने कूटनीतिक-आर्थिक निहितार्थ हैं.