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सामाजिक कार्यकर्ता लंबे अरसे से दावा करते रहे हैं कि देश में बलात्कार की शिकार बनी महिलाओं की चिकित्सा जांच निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुरूप नहीं की जाती. अब यह बात कानून मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की मदद से एनजीओ ‘पार्टनर्स फॉर लॉ इन डेवलेपमेंट’ द्वारा किए गए एक अध्ययन से भी साबित हुई है. इसके लिए दिल्ली स्थित चार फास्टट्रैक कोर्ट में चल रहे 16 मामलों का अध्ययन किया गया था.
इस अध्ययन से जुड़ी रिपोर्ट बताती है कि:
- आमतौर पर बलात्कार पीड़िताओं से जांच की सहमति लिए बिना ही उनके हस्ताक्षर या अंगूठे के निशान ले लिए जाते हैं.
- कुछ पीड़िताओं को प्राथमिकी (एफआईआर) दायर कराने के दौरान पुलिस उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है.
- रिपोर्ट के मुताबिक प्रभावित महिलाओं को एफआईआर की कॉपी हासिल करने के लिए भी पुलिस के चक्कर लगाने पड़ते हैं.
Recommendations:
इस रिपोर्ट में बलात्कार पीड़िताओं के अधिकार और सुरक्षा के लिए कुछ सिफारिशें भी की गई हैं. इनमें चिकित्सा जांच करने के लिये स्वास्थ्य कर्मियों को समुचित प्रशिक्षण प्रदान करना और पीड़िता के साथ उनके परिजनों को सुरक्षा देना शामिल है. इसके साथ ही पीड़िता के केवल उन्हीं कपड़ों को जांच के लिये भेजने की सिफारिश की गई है, जो उस अपराध से जुड़े हों