WHO की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 5 करोड़ लोग डिप्रेशन के मरीज़ हैं। ये वो लोग हैं जो डिप्रेशन की वजह से अपना सामान्य जीवन नहीं जा पा रहे हैं। दक्षिण एशियाई देशों में सबसे ज्यादा डिप्रेशन के मरीज़ भारत में ही रहते हैं।
Ø इसके अलावा 3 करोड़ 80 लाख लोग ऐसे हैं। जो Anxiety के शिकार हैं। Anxiety एक तरह से चिंता से जुड़ी घबराहट होती है, और कई बार ये इतनी बढ़ जाती है कि Anxiety का शिकार व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेता है। यानी भारत में करीब 9 करोड़ लोग ऐसे हैं जो किसी ना किसी तरह की मानसिक परेशानी का सामना कर रहे हैं।
Ø पूरी दुनिया में 32 करोड़ 50 लाख लोग डिप्रेशन के शिकार हैं..और इनमें से 50 प्रतिशत भारत और चीन में रहते हैं।
Ø WHO के मुताबिक वर्ष 2005 से लेकर वर्ष 2015 के बीच पूरी दुनिया में डिप्रेशन के मरीज़ों की संख्या 18.4 प्रतिशत बढ़ी है।इन आंकड़ों के मुताबिक 78 प्रतिशत आत्महत्याएं कम और मध्यम आय वाले देशों में ही होती है। आपको बता दें कि भारत भी एक निम्न-मध्यम आय वाला देश है।
पूरी दुनिया में होने वाली कुल मौतों में सुसाइड यानी आत्महत्या की हिस्सेदारी 1.5 प्रतिशत है। वर्ष 2012 में पूरी दुनिया के मुकाबले भारत में आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले सामने आए थे।
Ø एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 में भारतीयों ने वर्ष 2015 के मुकाबले डिप्रेशन की ज्यादा दवाएं खाईं थी । वर्ष 2015 के मुकाबले 2016 में डॉक्टरों ने Anti Depressant दवाओं के prescriptions 14 प्रतिशत ज्यादा लिखे।
Ø वर्ष 2016 में Anti Depressant दवाओं के 3 करोड़ 46 लाख नए पर्चे लिखे गये । जबकि वर्ष 2015 में ये संख्या 3 करोड़ 35 लाख थी। National Institute of Mental Health and Neurosciences के मुताबिक भारत में हर 20 में से 1 व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है।
Ø पूरी दुनिया में डिप्रेशन के मरीज़ों की संख्या इतनी तेज़ी से बढ़ रही है कि इस बार के विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम भी डिप्रेशन ही है। विश्व स्वास्थ्य दिवस हर साल 7 अप्रैल को मनाया जाता है।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य :-
· भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा बात नहीं होती है। और सरकारें भी इस तरफ कोई विशेष ध्यान नहीं देती हैं। भारतीय परिवारों में लोग अक्सर अपनी मानसिक परेशानियों को दूसरों के साथ नहीं बांटते हैं। छोटी छोटी बातों पर डिप्रेशन में चले जाना हमारा स्वभाव बनता जा रहा है। छोटी उम्र से ही तनाव हम पर हावी होने लगा है। और उम्र बढ़ने के साथ साथ ये मानसिक तनाव कई दूसरी बीमारियों की वजह भी बन जाता है।
· आंकड़ों के मुताबिक भले ही भारत में डिप्रेशन के 5 करोड़ मरीज़ हों..लेकिन ये आंकड़ा इससे भी ज्यादा हो सकता है..क्योंकि भारत में मानसिक परेशानियों के ज्यादातर मामले, डॉक्टरों तक पहुंचते ही नहीं है। बहुत सारे मामलों में ये पता ही नहीं चलता कि व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है.
· भारत एक युवा देश है..और अगर हमारे युवा डिप्रेशन के शिकार हो जाएंगे..तो फिर भारत एक सुपरपावर, कभी नहीं बन पाएगा। इसलिए डिप्रेशन के खिलाफ भारत को बड़े स्तर पर लड़ाई लड़नी होगी।