पोस्ट कोरोना दौर में भारतीय विदेश नीति के संभावित बदलाव

लेख के प्रथम भाग में मैंने कोरोना महामारी और इसके संभावित परिणामों तथा विश्व राजनीति के भविष्य में संभावी बदले स्वरूप को समझने, विश्लेषण करने की कोशिश की थी और इस भाग में बदले परिदृश्य में भारत की विश्व राजनीति में क्या भूमिका होगी इस विषय को जानने समझने का प्रयत्न किया गया है |

भारत ने अभी तक इस महामारी की व्यापकता को रोकने में एक प्रभावपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है और यह भी स्पष्ट है कि जब विश्व इस महामारी की आपदा से मुक्त हो चुका होगा तब निश्चित रूप में बदले विश्व में भारत की भूमिका का एक पुननिर्धारण किया जा सकेगा  जैसा कि स्वयं डब्ल्यूएचओ ने भी माना है कि भारत इस महामारी के नियंत्रण और रोकथाम में एक प्रभावी कर्ता बन सकता है।

1 काप्लान द्वारा वर्णित 'विश्व व्यवस्था' के प्रमुख कर्ता या महत्त्वपूर्ण राष्ट्र जो इस महामारी के पश्चात अपनी स्थितियों में कमजोर या बदल चुके होंगे उस दौर में नवीन अनिश्चित विश्व व्यवस्था में भारत एक प्रमुख नेतृत्वकर्ता बन कर उभरेगा। यूरोप, अमेरिका की तुलना में अभी तक जिस तरह भारत ने इस महामारी का सामना किया है उससे भारत को विश्व राजनीति में एक ठोस स्थान मिलने वाला है। 

2 अमेरिकी रणनीति से भिन्न दृष्टिकोण अपनाते हुए भारत ने नागरिकों की सुरक्षा को अर्थव्यवस्था से अधिक महत्वपूर्ण भूमिका देते हुए नागरिक जीवन को प्रभावी बनाया है और सारा विश्व इस अंतर को भांप रहा है, ऐसे में महामारी से प्रभावित अनेक देश भारत के मॉडल और भारत के तरीकों को अपना कर चुनौती का सामना कर रहे हैं। 

3 जैसे पूर्व लेख में चर्चा की गई थी कि सुरक्षा के आयाम और स्वरूप अब बदल गए हैं और यह बात भारत द्वारा महामारी का सामना करने की रणनीति से भी स्पष्ट होती है । भारत द्वारा बाहरी देशों में बसे अपने नागरिकों को लाने के लिए जिस तरह बचाव एवं राहत अभियान चलाए गए वे भारत की बदली सुरक्षा प्राथमिकताओं को स्पष्ट कर देता है साथ ही साथ भारत की इस रणनीति का पाकिस्तान जैसे देश के नागरिकों द्वारा भी समर्थन किया गया है।

4 अभी तक यह बिंदु प्रमाणित नहीं हो पाया है कि क्या वायरस का फैलाव चीनी शासन तंत्र की एक रणनीति है और यदि ऐसा है तो भारत को चीन के साथ अपने समग्र सम्बंधों की समीक्षा की जरूरत होगी ।

भारत चीन सम्बन्ध प्रारंभ से ही उतार चढ़ाव वाले रहे हैं और इस तरह की घटना आपसी संदेहों को ही बढ़ावा देगी।

चीन के साथ नवीन संबंधों के निर्धारण में भारतीय विदेश नीति को वैश्विक कारकों को भी ध्यान में रखना होगा क्योंकि बदले परिदृश्य में चीन एक ओर तो सशक्त होकर उभरेगा वहीं दूसरी ओर अमेरिका और यूरोपीय देश चीन के विरोध की रणनीति अपना सकते हैं ऐसे में भारत को विश्व राजनीति के साथ अपने संबंधों को संतुलित करते हुए चीन के साथ संबंध स्थापित करने होंगे।

यह बिंदु महत्वपूर्ण है कि चीन भारत के साथ लंबी सीमा साझा करता है और भारतीय विदेश नीति में चीन की उपेक्षा किया जाना राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नहीं है।

5 अमेरिका निश्चित रूप में अभी विश्व राजनीति का प्रमुख निर्णायक माना जाता है लेकिन बदले परिदृश्य में यह महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी नेतृत्व को सर्वाधिक सशक्त चुनौती चीन से ही मिल रही है, ऐसे में भारत अमेरिकी संबंध भी नए आयाम ग्रहण करेंगे।

भारत हाल तक अमेरिका के साथ सम्बंधों को साधते हुए रहा है लेकिन दवा निर्यात के मुद्दे पर पहले इनकार और फिर भारत की स्वीकृति ने भारतीय विदेश नीति के दृष्टिकोण के असमंजस को प्रकट किया है।

आर्थिक सम्बंध, निवेश, निर्यात हेतु अमेरिकी बाजार में सहज प्रवेश जैसे मुद्दे 'पोस्ट कोरोना दौर' में भारत के  अमेरिका के साथ संबंधों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं। 

6 भारत इस महामारी से निपटने में कितना प्रभावी होगा और भारत इस संबंध में दक्षिण एशिया के देशों को किस प्रकार मदद कर पायेगा, वह 'पोस्ट कोरोना दौर' में भारत की विदेश नीति में दक्षिण एशियाई देशों के साथ सम्बंधों को भी पुनर्निर्धारित करेगा, साथ ही साथ भारत एक बार पुनः 'दक्षिण-दक्षिण सहयोग' को प्रभावी बना सकता है, ब्रिक्स को पुनः उभारा जा सकता है जो वर्तमान विदेश नीति में फोकस एरिया में नहीं है ।

यह बिंदु महत्वपूर्ण है कि भारतीय विदेश नीति और अर्थव्यवस्था में चीन के साथ सामंजस्य बैठा कर भारत विकासशील देशों के नेतृत्वकर्ता की स्थिति हासिल कर सकता है, नवीन बाज़ारों में जगह बना सकता है जैसा हाल में ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने भी भारत से मदद मांग कर अपनी निर्भरता दर्शाई है और भारतीय विदेश नीति के पास अवसर है कि भारत इस मौके पर लेटिन अमेरिका जैसे क्षेत्र में अपनी छवि को स्थापित करे जो दीर्घकालिक रूप में भारतीय विदेश नीति और भारतीय अर्थव्यवस्था के हित में है।

7 वर्तमान अंतर्निर्भरता के दौर में राष्ट्र राज्य हीगलवादी संप्रभुता का उपभोग नहीं कर रहे बल्कि राज्यों की विदेश नीति का बड़ा पक्ष अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से भी प्रभावित होता है। बदले परिदृश्य में जब इन संस्थाओं के स्वयं अस्तित्व पर प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं तो फिर भारतीय विदेश नीति का इस सम्बन्ध में क्या दृष्टिकोण होगा, यह सोचनीय बिंदु है।

यह बिंदु महत्वपूर्ण है कि अमेरिका ने WHO की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं तो दूसरी ओर भारत स्वयं चीन के नेतृत्व में निर्मित संगठन (वन बेल्ट, वन रोड़) में भी स्वाभाविक रूप से सदस्यता लेने के लिए अति उत्साही नहीं है।

यदि भारत महामारी के पश्चात सशक्त रूप में खड़ा हो पाता है तो मजबूत आधार पर UNO सुरक्षा परिषद, WTO और IMF जैसी अंतरराष्ट्रीय रचनाओं के बेहतर लोकतांत्रिकीकरण की मांग कर सकता है और उनमें अपने आप को भी मजबूत स्थान पर कायम किए जाने के लिए विश्व की स्वीकृति प्राप्त कर सकता है।

8 इस महामारी का राजनीतिक प्रभाव के साथ साथ भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा जिससे उबरने में भारतीय विदेश नीति को नवीन सोच की रणनीति अपनाने की आवश्यकता होगी।

विश्व व्यापार का कमजोर होना, निवेश का रुकना, निर्यातों पर प्रतिबंध, सेवाओं के आदान प्रदान पर रोक आदि भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं लेकिन साथ ही भारत के पास अवसर भी है कि वह स्वयं को विश्व व्यापार में शीघ्र पुनर्स्थापित कर ले क्योंकि बड़ी कार्यशील जनसंख्या, यूरोपीय अर्थव्यवस्था का कमजोर पड़ना, अमेरिकी बाजार में भारत की प्रभावी उपस्थिति, कच्चे तेल की कीमतों का कम होना, चीन के प्रति मल्टी नेशनल कंपनियों का संदेहपूर्ण रवैया, ब्राजील जैसे विकासशील देशों के द्वारा भारत से मदद मांगने की पेशकश आदि मुद्दे भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर ला सकते हैं।

यहाँ यह बिंदु महत्वपूर्ण है कि विश्व अर्थव्यवस्था को एक बार पुनः खुलेपन को अपनाते हुए अधिक भूमंडलीकृत होना पड़ेगा, संरक्षणवाद को हतोत्साहित करना होगा और ऐसा भारतीय अर्थव्यवस्था के दीर्घकालीन हित में भी है।

9 अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय वार्ताओं में हमेशा विकसित देशों द्वारा भारत की बढ़ती जनसंख्या को जलवायु परिवर्तन की चुनौती के सम्बन्ध में जिम्मेदार ठहराया जाता है लेकिन लॉक डाउन ने स्पष्ट कर दिया है कि विकसित देशों द्वारा बड़े पैमाने पर किया गया औद्योगिकीकरण ही मूल रूप में इस समस्या का कारण है अतः भावी वार्ताओं में भारत के नेतृत्व में विकासशील देश अपने पक्ष को अधिक मजबूती से स्पष्ट करने की स्थिति में होंगे और पर्यावरणीय समझौते अधिक सहज स्वीकार्य रूप में, और अधिक लोकतांत्रिक तरीके से किए जा सकेंगे।

हमने देखा भी है कि किस तरह इस अवधि में गंगा-यमुना का जल शुध्द हुआ है, उड़ीसा के तट पर ऑलिव रिडले कछुए फिर से आ गए हैं और वायु प्रदूषण के स्तर में भी भारी गिरावट आई है।

10 भारत के द्वारा जिस तरह विदेशों में फंसे हुए लोगों को निकाला गया, भारत में फंसे हुए विदेशियों को पुनः उनके देश भेजने के लिए उड़ानों को अनुमति दी गई, सहायता पैकेज के माध्यम से नागरिकों को फौरी राहत प्रदान की गई है उससे विश्व में भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के सिद्धांत को प्रभावी स्वीकृति मिली है और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने अपने अध्ययन में लगातार भारत की रणनीति को सराहा है ।

सबसे महत्वपूर्ण रूप में भारत ने समस्त विश्व को महामारी का सामना करने में एक सकारात्मकता प्रदान की है जो विश्व राजनीति में भारत के बढ़ते प्रभाव को आलोकित करता है और निश्चित रूप में आगामी विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण मुद्दों पर भारत के मत को जानने समझने के लिए सभी देश भारत के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार होंगे तथा भारतीय विदेश नीति महामारी के पश्चात विश्व राजनीति के सभी पक्षों को निर्णायक रूप से प्रभावित करेगी।

क्रमशः......
Regards,
गौरव जैन
असिस्टेंट प्रोफेसर,
राजनीति विज्ञान।

 

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