भारतीय बॉन्ड्स को वैश्विक दर्जा

प्रसंग:

  • जेपी मॉर्गन समूह ने केंद्र सरकार के बॉन्ड्स को अपने ‘ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स’ में शामिल करने की घोषणा की है।

क्या हैं सरकारी बांड?

  • सरकारें अर्थव्यवस्था में वित्तीय घाटों को पूरा करने के लिए स्वयं बाजार से ऋण लिया करती हैं और इन ऋणों को उगाहने का जरिया सरकारी बॉन्ड होते हैं।
  • किसी भी अर्थव्यवस्था में वित्तीय घाटों की स्थिति तब पैदा होती है जब वित्तीय आय की तुलना में खर्चों की तादाद अधिक रहती है।
  • सरकारी बॉन्ड अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन, दोनों अवधि के हो सकते हैं, हालांकि सामान्यतः सरकारों के द्वारा इन्हें दीर्घकालिक अवधि के लिए ही प्रस्तावित किया जाता है। वर्तमान सरकार ने इसकी अधिकतम समय अवधि 50 वर्ष निर्धारित की है।

क्यों महत्वपूर्ण?

  • जेपी मॉर्गन समूह के इंडेक्स में मात्र सरकारी बॉन्ड्स की ही लिस्टिंग होती है। यह इंडेक्स विश्व की कुछ तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को ही प्राथमिकता देता है। इसलिए यह वैश्विक स्तर पर भारत के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण विकल्प है, क्योंकि इसके माध्यम से भारत को आने वाले समय में विभिन्न विदेशी निवेशकों के जरिये पूंजी प्राप्त करने का मौका मिलेगा। वर्तमान समय में सरकारी बॉन्ड के अंतर्गत विदेशी निवेशकों का हिस्सा दो फीसदी से भी कम है, जो कि वैश्विक स्तर पर भारत की वित्तीय साख को बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत नहीं करता है।
  • आजादी के बाद से सरकारों के वित्तीय ऋण हेतु बॉन्ड के अंतर्गत निवेश की जिम्मेदारी भारतीय बैंकों तथा बीमा क्षेत्र ने ही उठा रखा है। इसके चलते बैंकों द्वारा भारतीय समाज में अन्य क्षेत्रों को, जिनमें एमएसएमई प्रमुख है, वित्तीय सुविधा तुलनात्मक रूप से बहुत कम दी जाती है। छोटे व लघु उद्योग अपनी वित्तीय सुविधाओं तथा ऋणों को ज्यादा ब्याज दरों पर अनौपचारिक क्षेत्र से ही हासिल कर पाते हैं।
  • भारतीय बैंकों पर यह प्रतिबद्धता केंद्रीय बैंक की एसएलआर दर के कारण रहती है। 80 के दौर में एसएलआर 40 फीसदी हुआ करती थी। इसके फलस्वरुप भारतीय अर्थव्यवस्था तब बहुत अधिक विस्तार नहीं कर पायी। बाद में विभिन्न वित्तीय समितियों ने एसएलआर को कम करने की मांग रखी। पर, आज भी यह दर 19 फीसदी बनी हुई है। भारतीय बीमा क्षेत्र पर विभिन्न ‘ट्रिपल ए रेटेड’ सरकारी बॉन्ड्स में निवेश करने की प्रतिबद्धता के चलते देश में जीवन बीमा के अलावा अन्य क्षेत्रों में बीमा कंपनियों का विस्तार बहुत कम है, क्योंकि कंपनियां ग्राहक केंद्रित नहीं हैं और उनकी लाभदायकता भी एक चुनौती बनी रहती है।

लाभ:

  • इससे आने वाले समय में भारतीय बैंकों को कुछ छूट मिलेगी। केंद्रीय बैंक भविष्य में एसएलआर को घटाएगा, क्योंकि जेपी मॉर्गन के इंडेक्स में सूचीबद्ध होने से विदेशी निवेशकों का सरकारी बॉन्ड में प्रवाह बढ़ेगा। आगामी वर्षों में भारतीय बैंक अपनी वित्तीय तरलता के कारण समाज के अन्य क्षेत्रों को उनकी जरूरतों के लिए आसानी से कर्ज उपलब्ध करवा सकेगा।
  • इस समय बॉन्ड्स पर ब्याज की दरें काफी ऊंची हैं, जिससे सरकार को अधिक लागत वहन करनी पड़ती है। अब जेपी मॉर्गन में लिस्टिंग होने के बाद जब विदेशी निवेशकों का प्रवाह बढ़ेगा, तो यकीनन यह लागत कम होगी और सरकार अपने वित्तीय फंड्स का उपयोग बुनियादी विकास व सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर कर सकेगी।

निष्कर्ष:

हालांकि सरकारी बॉन्ड में निवेश हेतु वैश्विक स्तर पर सभी बड़े समूह की भारत के साथ दो मुख्य समस्याएं रही हैं, जिनमें एक करों में छूट तथा दूसरी, देश के बाहर विदेशी मुद्रा में भुगतान। जेपी मॉर्गन में सूचीबद्ध होने के बावजूद सरकारी बॉन्ड्स रुपये में ही निर्गमित होंगे और विदेशी निवेशक निश्चित रूप से अधिकतम ब्याज की दर पर निवेश करने के लिए आकर्षित होंगे, क्योंकि उनके लिए सबसे बड़ी समस्या रुपये का डॉलर की तुलना में विनिमय दर से होने वाला घाटा या मुनाफा होगा। जब विदेशी निवेशकों का प्रवाह बढ़ेगा, तो यकीनन रुपये की मांग बहुत बढ़ जाएगी, जिसके चलते डॉलर की तुलना में रुपया मजबूत होगा। निस्संदेह जब विदेशी निवेशकों के जरिये सरकारी बॉन्ड की लागत में कमी होगी, तो करों की दरों में भी घरेलू बाजार में बदलाव देखने को मिलेगा।

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download