नेपाल में नया बदलाव व नई उम्म्मीद

एतिहासिक पृष्ठभूमि

  • नेपाल बीते ढाई दशक से अशांति और राजनीतिक अस्थिरता से जूझता रहा है। राजशाही के अंत के बाद वहां अब तक कोई भी ऐसी सरकार नहीं बनी जो अपना कार्यकाल पूरा कर सकी हो।
  • आठ साल पहले 2008 में वहां पहली संविधान सभा के अस्तित्व में आने के साथ राजशाही की औपचारिक विदाई हो गई। हालांकि संविधान सभा के गठन के बाद भी स्थिरता नेपाल के हिस्से में नहीं आई है।
  • पहली संविधान सभा संविधान नहीं दे पाई, जबकि इसके कार्यकाल का दो बार एक- एक साल के लिए विस्तार भी हुआ।
  •  दूसरी संविधान सभा के गठन के तीन साल हुए हैं और इस तीन साल में नेपाल ने तीन प्रधानमंत्री और दो राष्ट्रपति देख लिए।

नया संविधान और विरोध

नया संविधान पारित होते ही इसके अनेक प्रावधानों के खिलाफ नेपाल के बड़े हिस्से में हिंसा, प्रदर्शन, धरना का दौर शुरू हो गया था।

  • नए संविधान से वहां के मधेसियों, थारुओं, दलितों और अल्पसंख्यकों को अपना वजूद खतरे में नजर आने लगा।
  • वह अपना अधिकार पाने के लिए सड़कों पर उतर आए। पुलिस को अनेक स्थानों पर गोलियां चलानी पड़ी।

विरोध क्यों :

नेपाल के नए संविधान के अनेकों प्रावधानों पर वहां के मधेसी और जनजातीय समुदाय को सख्त ऐतराज था।

  • संविधान में देश को संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया लेकिन राज्यों को अधिकार नहीं दिए गए।
  • जो सात प्रदेश बनाए गए, उनके सीमांकन से भी इन दोनों समुदाय में बेहद नाराजगी रही है।
  •  मधेस में दो राज्य बनाने की बात थी, पर भारत की सीमा से एक कड़ी में लगे आठ जिलों का एक प्रदेश बनाया गया। बाकी जिलों को छह भाग में बांटकर पहाड़ी राज्यों में शामिल कर दिया गया। इससे उनमें मधेसी अल्पसंख्यक बने रहेंगे।
  • जनजाती बहुल थरुहट को अलग राज्य नहीं बनाया गया। निर्वाचन क्षेत्रों का गठन क्षेत्रफल के आधार पर करने का प्रावधान किया गया। नेपाल के 17 प्रतिशत क्षेत्रफल में करीब 50 प्रतिशत मधेसी आबादी बसती है। बाकी पहाड़ी इलाके हैं। जाहिर है क्षेत्रफल के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र बनते तो संसद में मधेसियों का प्रतिनिधित्व सिमट जाता।

इन की वजह से भार नेपाल के रिश्तो पर भी प्रभाव पडा है | बीते दो दशक में नेपाल की राजनीति में भारत विरोध और मधेस के हितों को भारत से जोड़कर नकारने की प्रवृति एक फैशन की तरह बन गई है।

 

पर हाल हाल ही में नेपाल में सत्ता के गलियारे का मन-मिजाज बदला है। मूल के आधार पर भेदभाव और टकराव की राजनीति से बाहर आकर आपसी सहमति और विश्वास के पथ पर कदम बढ़े हैं। नागरिकता, समान अधिकार, संसद में प्रतिनिधित्व और राज्यों के गठन जैसे विवादित मुद्दे को सुलझाने और भारत से संबंध मजबूत करने की इच्छाशक्ति अरसा बाद नजर आ रही है। 

नए संविधान संशोधन

सबसे पहला संशोधन निर्वाचन क्षेत्र के गठन को लेकर किया गया। 29 नवंबर को लाए गए संशोधन प्रस्तावों में विदेशी महिला की नेपाल में शादी होने पर अंगीकृत नागरिकता देने, राज्यसभा की कुल 56 सीटों में 35 का निर्वाचन जनसंख्या के आधार पर और प्रत्येक राज्य से तीन सीटों में एक महिला, एक दलित व एक अपंग या अल्पसंख्यक के लिए आरक्षित करने जैसे प्रावधान शामिल हैं। इस प्रकार भारत या अन्य देशों की नेपाल में ब्याही बेटी के संवैधानिक पदों पर बहाली की बाधा भी दूर हो गई है।

इन सबके बावजूद नेपाल में अभी भी भारत विरोधी भावनाए कायम है | दोनों सरकारों को समझ अपनाते हुए एक दुसरे का साथ देते हुए आगे बढना होगा तथा भारत को भी चाहिए की वो नेपाल में किसी भी मामले में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करने से बचे

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download