द इकनॉमिक टाइम्स का संपादकीय
सन्दर्भ :- फल, सब्जी और अनाज की बर्बादी कम से कम हो इसके लिए कुछ उपायों पर तेजी से अमल हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए.
- खाने की बर्बादी की समस्या वैसे तो सारी दुनिया में है लेकिन, भारत में इसका स्वरूप कुछ ज्यादा ही विकराल है. इसे कम से कम रखना हमारी प्राथमिकता में शामिल होना चाहिए.
- संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया में खाने का एक तिहाई हिस्सा किसी न किसी तरह बर्बाद हो जाता है. यह आंकड़ा करीब 1.3 अरब टन के करीब बैठता है.
- द सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलॉजी का अनुमान है कि भारत में 2012-13 में फसल की बर्बादी से हुआ नुकसान करीब 93 हजार करोड़ रु के बराबर था. संस्थान के मुताबिक फल और सब्जियों का लगभग 16 और अनाज का करीब छह फीसदी हिस्सा बर्बाद हो रहा है. ज्यादातर मामलों में इसके लिए ट्रांसपोर्ट और भंडारण के अभाव जैसे कारण जिम्मेदार हैं.
- अगर हम इस नुकसान को घटा सकें तो इसका मतलब होगा किसानों के लिए उपभोग और बिक्री के लिए उपलब्ध खाद्य पदार्थों में बढ़ोतरी. इससे देश को भुखमरी और कुपोषण जैसी समस्याओं से निपटने में भी मदद मिल सकती है.
- देश में इस समय करीब 20 करोड़ लोग कुपोषण के शिकार हैं और 2016 के भूख सूचकांक में भारत का स्थान 118 देशों की सूची में 97वां है. खाने की बर्बादी का एक मतलब पर्यावरण को नुकसान भी है क्योंकि इस भोजन के उत्पादन की प्रक्रिया में पानी और मिट्टी की उर्वरता का ह्रास होने के अलावा ग्रीन हाउस गैसों का भी उत्सर्जन होता है.
- अभी तक सरकारों और उद्योगों का ध्यान भंडारण पर ही रहा है. लेकिन जोर अब इस पर भी होना चाहिए कि फसल को जल्दी से जल्दी खेतों से उपभोक्ता तक कैसे पहुंचाया जाए. हमें किसानों को अपनी फसल बेचने की आजादी देनी होगी.
- अच्छी सड़कें बनानी होंगी. रेफ्रीजेरेटेड वैनों की उपलब्धता से लेकर एक राज्य से दूसरे राज्य में आवाजाही को सुगम बनाना होगा. इसके साथ ही फूड प्रोसेसिंग उद्योग में निवेश करना होगा और ध्यान रखना होगा कि यह उत्पादन वाले इलाकों के पास हो. इससे ट्रांसपोर्ट के दौरान फसल की बर्बादी कम से कम होगी.
- डिब्बाबंद और प्रोसेस्ड उत्पादों की मांग और बिक्री बढ़ रही है. इसका मतलब है कि हमें पैकेजिंग को भी बेहतर बनाने पर ध्यान देना होगा ताकि खाद्य पदार्थों को लंबे समय तक इस्तेमाल में लाया जा सके. इस लिहाज से यह भी जरूरी होगा कि खरीद के बाद यूं ही पड़े खाद्य पदार्थों के इस्तेमाल के लिए भी कोई व्यवस्था हो.