स्वयं सहायता समूह महिलाओं के सशक्तिकरण का माध्यम

स्वयं सहायता समूह महिलाओं के सशक्तिकरण का माध्यम बन गए हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्र में यह महिलाओं को सशक्त और आर्थिक रूप से सृमद्ध बनाने के लिए एक कारगार माध्यम है।

What is self help group (क्या  है स्वयं सहायता समूह ):

  • स्वयं सहायता समूह समान सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि वाले 10-20 सदस्यों का एक स्वैछिक समूह है जो-:
  • नियमित रूप से अपनी आमदनी से थोड़ी-थोड़ी बचत करते हैं|
  • व्यक्तिगत राशि को सामूहिक विधि में योगदान के लिए परस्पर सहमत रहते हैं|
  • सामूहिक निर्णय लेते  हैं|
  • सामूहिक नेतृत्व के द्वारा आपसी मतभेद का समाधान करते हैं|
  • समूह द्वारा तय किये गए नियमों एवं शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराते हैं|

 

CASE STUDY:

  • कई सहायता समूहों की महिलाओं ने बकरी पालन का व्यापार शुरू किया है। ये महिलाएं अपनी बकरियों को एटीएम कार्ड कहकर पुकारती हैं। स्वयं सहायता समूह के पास ऋ ण सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद इतनी क्षमता नहीं होती कि बड़े दुधारू जानवर जैसे गाय, भैंस आदि खरीद सकें। इस तरह समूह एक बकरी चार से पांच हजार रुपये में और बकरी का बच्चा हजार रुपये में खरीदते हैं।
  • राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के अंर्तगत स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को बकरी पालन का प्रशिक्षण दिया जाता है और ऋ ण भी उपलब्ध कराया जाता है। जब बकरों की मांग बढ़ती है तो बड़े शहरों से व्यापारी आते हैं उनको बकरियों को अच्छी कीमत पर बेचा दिया जाता है।
  • गांवों में बकरी चराने की कोई परेशानी नहीं है, क्योंकि ज्यादातर परिवारों के पास अपनी कृषि भूमि होते हैं, वह अपनी बकरियों को गेहूं और अन्य फसलों के अपशिष्ट खिलाकर उनका पालन पोषण करते हैं। पुरुष भी महिलाओं के साथ इस काम को बढ़ावा देकर अच्छा मूल्य प्राप्त कर रहे हैं। चूंकि बकरियों के पालन पोषण और अगर वह बीमार हो जाएं तो डॉक्टरी इलाज की सारी जिम्मेदारी महिलाओं की होती है।
  • इस लिए इन्हें सामान्य पशु उपचार का प्रशिक्षण दिया जाता है। बकरी पालन के इस व्यवसाय में ज्यादातर महिलाएं एक विशेष प्रकार की बकरी पालती हैं जिसे "बारबरा पीढ़ी" कहा जाता है, उसके कान छोटे और रंग चितकबरा होता है। इस पीढ़ी की बकरी साल में दो बच्चे और दूसरी पीढ़ी के झुंड से अधिक दूध देती हीं। उक्त गांव में भी बकरी का दुध 100 रुपये लीटर मिलता है जबकी बरसात के मौसम में जब डेंगू बुखार का प्रकोप बढ़ जाता है तो दूध की कीमत 600 लीटर तक पहुंच जाती है। क्योंकि बकरी का दूध डेंगू बुखार में रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है। इस तरहा स्वयं सहायता समूह से महिलाओं में आर्थिक निर्भरता बढ़ रही है।

 

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