प्रदूषण के खिलाफ पहल

Decision of supreme court to ban fire crackers should be welcomed but this need coordinated effort by society to implement  it

#Dainik_Jagran

Recent context

दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में पटाखों की बिक्री पर सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी प्रदूषण के खिलाफ जारी लड़ाई लड़ने में सहायक बननी चाहिए, लेकिन ऐसा तब होगा जब आम लोग यह समझने के लिए तैयार होंगे कि उत्सव के नाम पर सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले तौर-तरीकों का परित्याग करने में ही भलाई है।

  • कम से कम दिल्ली-एनसीआर की जनता इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकती कि पिछले वर्षों में और विशेष रूप से बीते बरस दीपावली के अगले दिन ऐसे हालात बने कि सांस लेना भी दूभर हो गया था।
  • यह ठीक नहीं कि देश के सबसे बड़े उत्सव यानी दीपावली के अगले ही दिन ऐसी स्थिति बने कि लोगों की सेहत पर बन आए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला केवल दिल्ली-एनसीआर के लिए ही है, लेकिन देश के एक बड़े हिस्से और खासकर उत्तर भारत के शहरी इलाकों में दीपावली के ठीक अगले दिन काफी कुछ वैसे ही हालात बनते है जैसे देश की राजधानी में दिखाई देते है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि हाल के समय में दीपावली को पटाखे दागने का पर्याय सा बना दिया गया है और इस क्रम में कहीं अधिक शोर और विषाक्त धुएं वाले पटाखों का चलन जरूरत से ज्यादा बढ़ गया है।
  • हर किसी को यह महसूस करना चाहिए कि कष्टकारी साबित होने वाले इस चलन को थामना वक्त की मांग और जरूरत है। इससे ही दीपोत्सव की महत्ता बढ़ेगी। बेहतर हो कि सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों के अग्रणी लोग आम जनता को इसके लिए प्रेरित-प्रोत्साहित करें कि सुख-समृद्धि और धन-धान्य के पर्व पर ध्वनि और वायु प्रदूषण बढ़ाने का काम न किया जाए। लोगों को जागरूक करने का यह काम दिल्ली-एनसीआर के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों में भी होना चाहिए।

इस पर हैरत नहीं कि दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध के फैसले को लेकर असहमति के भी कुछ स्वर उठे है। ऐसे स्वरों के लिए एक अवसर तो खुद सुप्रीम कोर्ट ने ही दे दिया है। उसने पटाखों की बिक्री रोकने के पिछले वर्ष के अपने आदेश में करीब एक माह पहले संशोधन कर कुछ शर्तों के साथ पटाखे बेचने की इजाजत दे दी थी। नतीजा यह हुआ कि पटाखा बनाने और बेचने वालों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी। कहना कठिन है कि सुप्रीम कोर्ट के पास ऐसे लोगों के इस सवाल का क्या जवाब होगा कि उनके नुकसान की जिम्मेदारी कौन लेगा? अच्छा होगा कि कम से कम भविष्य के लिए पटाखों के निर्माण और उनकी बिक्री के नियमन की जरूरत समझी जाए। ऐसा इसलिए और भी होना चाहिए, क्योंकि बार-बार यह सामने आ रहा है कि हानिकारक चीजों के इस्तेमाल को रोकने में प्रतिबंध से अधिक नियमन प्रभावी होता है। कई बार बिना नियमन प्रतिबंध या तो निष्प्रभावी साबित होता है या फिर उसकी काट के तौर-तरीके खोज लिए जाते हैैं। यह बात जितनी पटाखों के संदर्भ में लागू होती है उतनी ही पॉलिथीन और ऐसी ही अन्य वस्तुओं के मामले में भी। किसी के लिए भी यह समझना कठिन है कि आखिर कान फोड़ देने और विषैला धुआं छोड़ने वाले पटाखों का निर्माण ही क्यों होना चाहिए?

Q.

 

GS PAPER II

सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

 

क्या स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार में दिवाली के दौरान फटाके जलाने के विधिक विनियम भी शामिल है ? इस पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के और इस सम्बन्ध में शीर्ष न्यायालय के निर्णय / निर्णयों के प्रकाश में चर्चा कीजिए | UPSC: 2015

Does the right to clean environment entail legal regulations on burning crackers during Diwali? Discuss in the light of Article 21 of the Indian Constitution and Judgement(s) of the Apex Court in this regard.

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download