खनन के दरवाजे |
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को उस अध्यादेश को मंजूरी दे दी जो खनिज उत्खनन क्षेत्र के दरवाजे घरेलू एवं विदेशी स्वामित्व दोनों तरह की कंपनियों के लिए खोलता है। खनिज कानून संशोधन अध्यादेश 2020 के जरिये 1957 खदान और खनिज विकास एवं नियमन अधिनियम और कोयला खदान विशेष प्रावधान अधिनियम 2015 दोनों कानूनों में बदलाव किए गए हैं। इसके माध्यम से खनन पट्टों की नीलामी की प्रक्रिया तेज की गई है। अब भारत में पंजीकृत कोई भी कंपनी कोयला ब्लॉक के विकास एवं खनन के लिए बोली लगा सकती है। इसका मतलब है कि कंपनी के पास खनन कार्यों का अनुभव होना या बिजली, लौह एवं इस्पात जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में मौजूदगी जैसी अनिवार्य शर्तों को हटा लिया गया है। इस तरह बोली लगाए गए पट्टों पर अंतिम उपयोग की कोई भी बंदिश नहीं होगी। यह खनन क्षेत्र के वाणिज्यीकरण और अब तक सरकारी दबदबे वाले इस क्षेत्र को सक्षम बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
सरकार का दावा है कि देश में कोयला खनन व्यवस्था में बदलाव से आयात बिल में कमी लाने का रास्ता तैयार होगा। अधिकारियों के मुताबिक, पूरे देश में 200 से अधिक कोयला ब्लॉक की नीलामी की जानी है जिससे प्रति वर्ष 40 करोड़ टन कोयला उत्पादन किया जा सकेगा। अगर इस दिशा में आंशिक प्रगति भी होती है तो 15 अरब डॉलर का आयात बिल कम हो जाएगा। सच तो यह है कि देश में तापीय कोयले का प्रचुर भंडार रहते हुए भी इसे आयात करने का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन उच्च गुणवत्ता वाले कोकिंग कोल का आयात जारी रखने की जरूरत बनी रह सकती है। इस बीच लौह अयस्क क्षेत्र भी प्रभावित हो रहा है। फिलहाल चालू 46 खदानों के पट्टे दो महीनों में खत्म होने वाले हैं। यह अध्यादेश खनन बाजार के दरवाजे खोल देगा। यह ऐसा कदम है जिसकी उम्मीद लंबे समय से की जा रही थी। हालांकि मनचाहे नतीजे पाने के लिए सरकार को दूसरे कानूनी एवं प्रशासकीय बदलावों पर भी काम करना होगा ताकि कोयला उत्पादन में खासी बढ़ोतरी हो सके।
नीति आयोग के मुख्य कार्याधिकारी अमिताभ कांत ने अपने ट्वीट में कहा है कि यह अध्यादेश भारत में 'कोयले के राष्ट्रीयकरण को आखिर में खत्म' करता है। फिलहाल कोल इंडिया लिमिटेड और सिंगरेनी कोलियरी लिमिटेड भारत के कुल कोयला उत्पादन का 90 फीसदी से भी अधिक उत्पादन करते हैं। इनमें से कुछ हिस्सा अब भारतीय एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास चला जाएगा। यह कोल इंडिया के लिए एक चेतावनी होगी क्योंकि अगर उसे अपनी बाजार हिस्सेदारी बनाए रखनी है तो उसे कोयला उत्खनन एवं आपूर्ति दोनों मोर्चों पर अपनी क्षमता बढ़ानी होगी। कोयला मंत्री ने कहा है कि इस बदलाव का कोल इंडिया पर कोई असर नहीं होगा लेकिन इसे देखा जाना अभी बाकी है। खनन क्षेत्र में प्रतिस्पद्र्धा और सक्षमता की जरूरत लंबे समय से रही है। सरकार की भी इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि विशुद्ध रूप से प्रशासनिक तिकड़मों पर आश्रित रहने के बजाय उसने एक कानूनी ढांचा बनाया है जबकि कुछ साल पहले कोयला ब्लॉक नीलामी में आए उच्चतम न्यायालय के फैसले के पहले यह सामान्य बात होती थी।
हालांकि अब भी कुछ सावधानी बरतने की दरकार है। बोलीकर्ताओं के लिए वित्तीय और 'समुचित एवं सटीक' मानक सावधानीपूर्वक तय करने होंगे। यह भी जरूरी है कि सरकार जलवायु परिवर्तन जैसी अन्य प्रतिबद्धताओं का भी ध्यान रखे। इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र अब भी सरकारी नियंत्रण में है और उसे वैश्विक स्तर पर आपूर्ति प्रचुरता से गुजर रहे क्षेत्र को हद से अधिक कर्ज न देने का ध्यान रखना चाहिए। फंसी हुई परिसंपत्ति और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों का निर्माण किसी के भी हित में नहीं होगा।