लोगों की गतिविधियों पर तकनीक से निगरानी पर विवाद और चिंता

लोगों की गतिविधियों पर तकनीक से निगरानी पर विवाद और चिंता

नागरिकता संशोधन कानून और राराष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) पर देश में मचे घमासान ने सबका ध्यान 'फेस रिकग्निशन' तकनीक की तरफ खींचा है। प्रदर्शन के दौरान कई जगहों पर पुलिस ने ड्रोन का इस्तेमाल कर लोगों की तस्वीरें ली हैं और उसके बाद फेशियल रिकग्निशन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल भीड़ में लोगों की शिनाख्त करने के लिए किया है। इस पूरे मामले से लोगों की गतिविधियों पर निगरानी से संबंधित राज्य के लगभग असीमित अधिकार चिंता का सबब बन गए हैं।

भारत में जल्द ही सबसे बड़ा फेशियल रिकग्निशन सूचना भंडार (डेटाबेस) तैयार होने वाला है। जून में राराष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने डेटाबेस तैयार करने में मदद के लिए सहयोग मांगा था। एनसीआरबी की निविदा के अनुसार, 'इस प्रणाली के तहत पुलिस को एक वास्तविक माहौल में त्वरित एवं सटीक फेस रिकग्निशन करने की अनुमति दी जानी चाहिए।' एनसीआरबी का कहना है कि इससे लापता हुए लोगों की पहचान करने में मदद मिलेगी। एनसीआरबी के अनुसार फेस रिकग्निशन तकनीक आधार से नहीं जोड़ी जाएगी। आधार में तस्वीर सहित अन्य व्यक्तिगत जानकारियां भी होती हैं।

एनसीआरबी ने इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन को एक लिखित जवाब में कहा कि जब तक कोई अपराध नहीं होता है तब तक प्रणाली सार्वजनिक जगहों से सीसीटीवी फुटेज नहीं लेगी। डेटा एक केंद्रीकृत ऐप्लीकेशन में रखा जाएगा और केवल पुलिस की इस तक पहुंच होगी। इसमें कोई शक नहीं कि विरोध प्रदर्शन के बाद ऐसी तकनीकों के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा। इस बात को लेकर सभी अटकलें लगाएंगे कि एनसीआरबी ऐसी सूचनाएं दूसरे डेटाबेस जैसे 'आधार' आदि से नहीं जोडऩे का अपना वादा पूरा करेगा या नहीं। डेटाबेस के अलावा सीसीटीवी सार्वजनिक जगहों और बंद जगहों पर निगरानी के लिए मुस्तैद हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि आम दिनों में भी आपकी छवि एवं गतिविधियां विभिन्न सीसीटीवी कैमरों में कैद की जा रही हैं और कई संगठन आपके आंकड़ों का भंडारण और इनका इस्तेमाल कर रहे हैं। पुलिस यातायात उल्लंघन पर जुर्माना जगाने के लिए पहले से ही सीसीटीवी में कैद तस्वीरों का इस्तेमाल कर रही है।

किसी लोकतांत्रिक देश में महत्त्वाकांक्षी निगरानी कार्यक्रम को निर्धारित सीमा का अतिक्रमण माना जाएगा। इस प्रणाली में लोगों की बिना अनुमति से उनके निजी व्यक्तिगत डेटा लिए जाएंगे। भारत के प्रस्तावित निजी डेटा सुरक्षा विधेयक (पर्सनल डेटा प्रोटेक्शनन बिल) में इससे सुरक्षा के लिए कोई प्रावधान भी नहीं किया गया है। यह विधेयक संसद में पारित भी नहीं हुआ है। इस विधेयक में बिना अनुमति के सरकारी एजेंसियों एवं संगठनों को डेटा जुटाने एवं इनका इस्तेमाल करने की खुली छूट होगी। इस विधेयक के वास्तविक मसौदे में इस बात का जिक्र था कि सरकारी एजेंसियां आवश्यक होने पर ही लोगों की सहमति के बिना डेटा का संग्रह करेंगे। दिसंबर के शुरू में लोकसभा में जारी मसौदे से यह प्रावधान समाप्त कर दिया गया। कुल मिलाकर इसका यह मतलब हुआ कि अगर यह विधेयक पारित हो गया तो सरकार की निगरानी से सुरक्षा के उपाय नाम मात्र के होंगे। डिजिटल तस्वीर ऐसी चीज है, जो लोगों की अनुमति के बिना आसानी से प्राप्त की जा सकती है। यूरोप में इसे निजी व्यक्तिगत डेटा (निजी पर्सनल डेटा) के तौर पर माना गया है और जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेग्युलेशन के प्रावधान 'राइट टू फॉरगेट' का इस्तेमाल कर ऐसे सूचनाएं हटाने के लिए कहा जा सकता है। यह स्पष्टï नहीं है कि प्रस्तावित पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 के तहत ऐसा आग्रह किया जा सकता है या नहीं, हालांकि इस विधेयक में 'राइट टू फॉरगेट' का प्रावधान जरूर है।

फेस रिकग्निशन तकनीक कई तरह के होती हैं। उदाहरण के लिए वन ऑफ मैचिंग सिस्टम्स जैसे लैपटॉप या मोबाइल उपकरण किसी व्यक्ति का डिजिटल फोटो का भंडारण करता है और लॉग इन के समय यूजर के चेहरे से इसका मिलान करता है। वन वर्सस फ्यू सिस्टम किसी संगठन में कर्मचारियों का छोटा डेटाबेस तैयार करने के लिए इस्तेमाल होती है। इन दोनों मामलों में लोगों की सहमति ली जाती है और यह सहमति वापस भी ले सकती है। कई ऐसे मामले भी होते हैं, जिनमें पुलिस किसी व्यक्ति की तस्वीर का मिलान एक बड़े डेटाबेस से करते हैं। इसी तरह, पुलिस भीड़ की फोटो लेती है और प्रत्येक चेहरे का मिलान बड़े डेटाबेस से करते हैं। इनमें किसी भी मामले में सहमति या जानकारी नहीं होती है।

आधुनिक फेशियल रिकग्निशन कार्यक्रमों से बच निकलना आसान भी नहीं है, लेकिन कुछ चूक होने की गुंजाइश तो रह ही जाती है। एयर फिल्टर मास्क आधुनिक फेस रिकग्शिन प्रणाली को उलझन में नहीं डाल सकता है। मेक-अप आदि से चेहरा छुपाया जा सकता है, लेकिन यह भी आसानी से पकड़ में जाएगा। स्कार्फ या इयररिंग्स या किसी व्यक्ति के वास्तविक चेहरे के इर्द-गिर्द पहनी गई कोई चीज और चेहरे की शक्ल की तरह लगने वाली छवि सॉफ्टवेयर को धोखे में डाल सकती है।

फेस रिकग्निशन तकनीक और निगरानी के लिए सरकार द्वारा इसका इस्तेमाल विवाद का विषय है। विभिन्न देशों में इस पर पाबंदी लगा दी गई है। इसमें तकनीकी खामी है। उदाहरण के लिए तकनीक के धोखा खाने से निर्दोष व्यक्ति भी परेशानी में फंस सकते हैं। इन तकनीकों की सीमाएं या संभावनाएं जानने, समझने या इनके इस्तेमाल को समझने में न्यायालय एवं न्यायाधीश भी गच्चा खा सकते हैं। हालांकि भारत में बड़े पैमाने पर ऐसी निगरानी तकनीकों का इस्तेमाल होगा और डेटा सुरक्षा विधेयक के प्रावधानों के अनुसार यह पूरी तरह कानूनी एवं व्यापक होगा।

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