फिनलैंड से क्या सीखे भारत
फिनलैंड में 34 वर्षीय सना मारिन प्रधानमंत्री बनी हैं। वह दुनिया में सबसे कम उम्र में इस पद पर पहुंचने वाली महिला हैं। पांच पार्टियों के मध्य-वामपंथी गठबंधन का नेतृत्व कर रहीं और हाल तक फिनलैंड की परिवहन मंत्री रहीं सना को प्रधानमंत्री एंटी रिना के इस्तीफे के बाद सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के लिए चुना है। जिन पांच पार्टियों के गठबंधन की वह प्रमुख हैं, उन सभी पार्टियों की अध्यक्ष महिलाएं हैं। हाल में डाक हड़ताल से निपटने के मामले में गठबंधन का विश्वास खो देने के बाद एंटी रिना के इस्तीफे से वे स्थितियां बनीं जिनके चलते सना मारिन को देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने का मौका मिला है। स्कैंडिनेवियन देशों में सना तीसरी महिला प्रधानमंत्री हैं। न्यूजीलैंड की पीएम जेसिंडा अर्डर्न हैं व यूक्रेन में ओलेक्सी होंचरुक राष्ट्राध्यक्ष हैं।फिनलैंड दुनिया का पहला देश है जिसने महिलाओं को 1907 में संसद भेजा था। यह यूरोप का पहला देश है जिसने 1906 में महिलाओं को वोट करने का अधिकार दिया। फिनलैंड में 2000 में पहली महिला राष्ट्रपति बनी थीं और 2003 में पहली महिला प्रधानमंत्री। इस साल फिनलैंड में 93 सीटों पर महिलाएं जीतकर संसद पहुंची हैं। 200 सीटों वाली संसद में 47 प्रतिशत महिलाएं हैं, लेकिन दुनिया के सबसे खुशहाल देश फिनलैंड के इन उदाहरणों से हम क्या सीखें। यूं भारत के पक्ष में एक बात जाती है। वह यह कि भारत उन पांच देशों में शामिल है, जहां पर एक महिला (इंदिरा गांधी) ने एक दशक से अधिक समय तक शासन किया, लेकिन कुछ अपवादों (जयललिता, मायावती, ममता, सुषमा स्वराज आदि) को छोड़कर भारतीय राजनीति में ज्यादातर स्वतंत्र महिलाओं और राजनेताओं की पत्नियों का पदार्पण किसी वंशवादी मजबूरी में ही हुआ है। ऐसी स्थिति में उन महिलाओं को वह सामाजिक स्वीकार्यता और हैसियत नहीं मिल सकी, जिससे वे एक योग्य लीडर के रूप में स्थापित हो पातीं। अक्सर ऐसे मामलों में उन्हें अपने पति या किसी पुरुष राजनेता की सिर्फ छाया बनकर रहने को मजबूर होना पड़ा है। ये हालात तब हैं जब अतीत में कई महिलाओं की राजनीतिक सक्रियता के उदाहरण हैं। इन उदाहरणों को देखकर कहा जा सकता है कि राजनेताओं की पत्नियां सिर्फ अपने पत्नी धर्म का निर्वहन कर रही हैं और पति की छाया में रहने को अपनी सफलता मानती हैं।भारत से उलट यूरोपीय-अमेरिकी आदि देशों के समाज इतने खुले और विकसित हैं कि वहां राजनीति में पति या पत्नी में कोई एक आगे बढ़ता है तो दूसरा पीछे नहीं छूट जाता। वहां यह सामंजस्य इसीलिए बन पाता है, क्योंकि वहां महिलाओं को राजनीति में किसी से हीन नहीं समझा जाता है और उन्हें आगे बढ़ने का पर्याप्त अवसर मुहैया कराया जाता है। काश, राजनीतिक और सार्वजनिक स्तर पर बड़ी भूमिकाएं निभाने वाले पुरुष देख पाएं कि फिनलैंड की सना मारिन परिवार की तरह ही हमारे यहां भी महिलाएं देश संभालने के योग्य हैं, बशर्ते देश का पुरुष समाज उन्हें ये भूमिकाएं निभाने दे।