डेटा संरक्षण: किन पर होगा असर?

डेटा संरक्षण: किन पर होगा असर?

अगर डेटा संरक्षण विधेयक अपने मौजूदा स्वरूप में पारित हो जाता है तब गूगल होम या एलेक्सा से अपने पसंदीदा गीत सुनाने की गुजारिश करना, फिंगरप्रिंट के जरिये मोबाइल फोन को अनलॉक करना या फेस स्कैन या आंखों की पुतली स्कैन कर बैंक खाता संचालित करने की सारी कवायद अब मुश्किल हो सकती है। मसौदा विधेयक के उपबंध 92 में कुछ विशेष किस्म के बायोमेट्रिक डेटा पर प्रतिबंध लगाने का जिक्र है और उस तक पहुंच बनाने के लिए कानूनी अनुमति की जरूरत पड़ सकती है। 

 

उद्योग विशेषज्ञ कहते हैं कि इसका असर डिजिटल कॉमर्स, बैंकिंग, स्वास्थ्य सेवा और वाहन उद्योग से लेकर लगभग हर क्षेत्र की कंपनियों पर पड़ सकता है। जो कंपनियां बायोमेट्रिक डेटा मसलन फिंगरप्रिंट स्कैनर, वॉयस कमांड टूल, आंखों की पुतलियों या चेहरे के स्कैनर का इस्तेमाल करती हैं उन पर इस मसौदा विधेयक का असर पड़ सकता है। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि गूगल और एमेजॉन बायोमेट्रिक डेटा का इस्तेमाल करती हैं और अगर मौजूदा मसौदा विधेयक अपने मौजूदा स्वरूप में पारित होता है तो उन भी इसका असर होगा। इन दोनों ही कंपनियों में वॉयस असिस्टैंट है और दूसरे अन्य उत्पाद भी सीधे तौर पर मसौदा विधेयक के उपबंध 92 से प्रभावित होंगे। ऐसे हालात भी बन सकते हैं कि इन तकनीकी कंपनियों के लिए ऐसी सेवाएं चलाना असंभव होगा जिसमें उपयोगकर्ताओं के बायोमेट्रिक डेटा की जरूरत होगी। 

 

इन कंपनियों में से एक कंपनी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने बताया, 'गूगल आजकल वॉयस का इस्तेमाल गूगल ट्रांसलेट, गूगल होम और अन्य चीजों के लिए करता है। एमेजॉन के पास एलेक्सा वॉयस असिस्टैंट है। अगर यह मसौदा पारित कर दिया जाता है तब इन कंपनियों का काम बुरी तरह प्रभावित होगा। एमेजॉन उपयोगकर्ताओं के वॉयस कमांड पर आधारित ऑनलाइन खरीदारी सेवाएं शुरू करना चाहती है ऐसे में कंपनी भी पसोपेश में है।' विशेषज्ञों का मानना है कि मसौदा के उपबंध 92 में यह बात स्पष्ट कर दी गई है कि कानूनी अनुमति के बगैर कोई भी कंपनी या कोई व्यक्ति ऐसे बायोमेट्रिक डेटा का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा सकता है। इस वक्त यह स्पष्ट नहीं है कि किस तरह के बायोमेट्रिक डेटा लेने की अनुमति होगी या नहीं होगी और कौन सी कंपनी किस तरह के डेटा का संग्रह कर सकती है। 

 

एक लॉ कंपनी टेकलेजिस एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसीटर्स के मैनेजिंग पार्टनर सलमान वारिस कहते हैं, 'मौजूदा मसौदा में कई तरह की अस्पष्टता है। कुछ खास किस्म के बायोमेट्रिक डेटा की प्रोसेसिंग पर रोक की बात की गई है हालांकि इन प्रावधानों में यह स्पष्टता नहीं है कि किस तरह के बायोमेट्रिक डेटा का इस्तेमाल किया जा सकेगा या नहीं। इससे नियामकीय भ्रम की स्थिति बनेगी और उन कंपनियों के लिए चीजें जटिल होंगी जिनका ताल्लुक बायोमेट्रिक डेटा से है या फिर जो ऐसे उपकरण तैयार करती हैं जिनकी मदद से बायोमेट्रिक डेटा लिया जाता है मसलन फोन, आवाज की पहचान करने वाले उपकरण आदि। इसके अलावा तकनीकी कंपनियां, वित्तीय तकनीक कंपनियां, बैंकिंग उद्योग के लिए भी जटिलताएं बढ़ेंगी।'

 

मोबाइल फोन कंपनियां इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी क्योंकि उन्हें स्थानीय स्तर पर सभी बायोमेट्रिक डेटा स्टोर करना होगा और इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर की लागत बढ़ेगी। लोकलसर्कल्स के संस्थापक और अध्यक्ष सचिन तपारिया कहते हैं, 'बायोमेट्रिक डेटा को स्थानीय स्तर पर स्टोर करने का मतलब यह होगा कि सभी फोन कंपनियां जो यूजरों की पहचान के लिए बायोमेट्रिक को अपने सर्वर पर स्टोर करती हैं उन्हें इस डेटा को भारत में ही स्टोर और प्रोसेस करना होगा।' उनका कहना है कि बायोमेट्रिक को एक संवेदनशील डेटा के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है ऐसे में सूचनाओं को स्थानीय स्तर पर संरक्षित करना और उसकी प्रोसेसिंग की बात तार्किक लगती है।

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