श्रम नीति में किए गए सुधार से अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर

श्रम नीति में किए गए सुधार से अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर

भारत की श्रम नीति ने एक नया कलेवर धारण कर लिया है। अब चार श्रम संहिताएं सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं। ये पारिश्रमिक संहिता, पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी हालात संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता और सामाजिक सुरक्षा संहिता हैं। पारिश्रमिक संहिता को गत अगस्त की शुरुआत में संसद ने पारित कर दिया था और औद्योगिक संबंध संहिता को गत 28 नवंबर को लोकसभा में पेश किया गया है। पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी हालात संहिता को गत जुलाई में लोकसभा में पेश किया गया था लेकिन उसे अक्टूबर में संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया। संसदीय समिति की रिपोर्ट अगले महीने आने की संभावना है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सामाजिक सुरक्षा संहिता के प्रारूप को गत 4 दिसंबर को मंजूरी दी है और इसे जल्द ही संसद में पेश किया जा सकता है।

इन चारों संहिताओं में कुल 28 श्रम कानूनों को समाहित किया गया है। इनमें से 13 कानून पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी हालात संहिता, आठ कानून सामाजिक सुरक्षा संहिता, चार कानून पारिश्रमिक संहिता और तीन कानून औद्योगिक संबंध संहिता में समाहित किए गए हैं। यह एक लंबा सफर था जो भारत में आर्थिक सुधारों की धीमी रफ्तार को बयां करता है। दूसरे श्रम आयोग ने वाजपेयी सरकार के समय जून 2002 में रिपोर्ट सौंपी थी। उसने सुझाव दिया था कि मौजूदा श्रम कानूनों को मिलाकर पांच बड़े समूह बनाए जाने चाहिए। आयोग ने औद्योगिक संबंध, पारिश्रमिक, सामाजिक सुरक्षा, सुरक्षा और कल्याण एवं कामकाजी हालात पर समूह गठित करने को कहा था। लेकिन रिपोर्ट सौंपे जाने के 17 साल तक विशेषज्ञ एवं अफसरशाह इन सुझावों के असर को लेकर चर्चा करते रहे। यह सिलसिला तीन सरकारों तक चलता रहा। इन लंबी चर्चाओं से यह भी पता चला कि सरकारें भी राजनीतिक रूप से विवादास्पद कानून बनाने को लेकर सशंकित हैं। खुद मोदी सरकार भी अपने दूसरे कार्यकाल में जाकर श्रम कानूनों को चार समूहों में वर्गीकृत करने का फैसला ले पाई। हालांकि आयोग के सुझाव को पूरी तरह मानने के बजाय सरकार ने सुरक्षा, कल्याण एवं कामकाजी हालात पर बने कानूनों को एक ही संहिता में रख दिया है।

 

श्रम नीति की चारों संहिताएं अर्थव्यवस्था के एक अहम क्षेत्र में सुधारों की स्थिति के बारे में क्या बताती हैं? इस पूरी कवायद के चार अहम निहितार्थ हैं। पहला, केंद्र सरकार ने श्रम नीति एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में खुद की भूमिका कम कर दी है। पारिश्रमिक संहिता वेतन संबंधी नीतियां तय करने में केंद्र की भूमिका को केवल रेलवे, खनन एवं तेल तक ही सीमित करता है। बाकी सभी क्षेत्रों में राज्यों को पारिश्रमिक से जुड़ी नीतियां तय करने की स्वतंत्रता दी गई है। इसका मतलब है कि विभिन्न उद्योगों के लिए मजदूरी तय करने वाले तमाम केंद्रीय कानून अब प्रभावी नहीं रहेंगे। इसी तरह न्यूनतम वेतन के मुद्दे पर केंद्र एवं राज्य अपने-अपने मजदूरी स्तर तय कर सकते हैं लेकिन वह देश के भीतर अलग इलाकों के लिए निर्धारित वेतन से कम नहीं हो सकता है।

 

दूसरा, नए कानूनों ने श्रम विभाग के निरीक्षकों की शक्तियों को काफी कम कर दिया है। मसलन, पारिश्रमिक संहिता सुनिश्चित करता है कि उल्लंघन के मामलों में अभियोजन की प्रक्रिया शुरू होने के पहले निरीक्षक-सह-समन्वयक नियोक्ता को एक अवसर देगा। निरीक्षक अभियोजन कार्यवाही तभी शुरू कर सकता है जब पांच वर्षों के भीतर वही उल्लंघन दोहराया जाए। सामाजिक सुरक्षा संहिता के प्रारूप में भविष्य निधि के दस्तावेज मंगाने की निरीक्षकों की शक्ति पर भी पांच वर्षों की समय-सीमा रखी गई है। उस समय के बाद निरीक्षक ऐसे रिकॉर्ड तलब नहीं कर सकते हैं।

 

तीसरा, नई श्रम नीति में अधिसूचनाओं पर निर्भरता की प्रवृत्ति देखी गई है जिससे संसद के विधि-निर्माता शायद खुश नहीं होंगे। असल में, औद्योगिक संबंध संहिता में उन पुराने प्रावधानों को कायम रखा गया है जिसमें 100 से अधिक कर्मचारियों वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों के नियोक्ता के लिए छंटनी या बंदी करते समय केंद्र या राज्य सरकार की पूर्व-अनुमति लेना जरूरी किया गया है। लेकिन अब इसके साथ केंद्र एवं राज्य सरकारों को यह छूट भी दी गई है कि वे अधिसूचना जारी कर प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमिकों की न्यूनतम संख्या तय कर सकते हैं। इसी तरह सामाजिक सुरक्षा संहिता का मसौदा सरकार को यह छूट देता है कि वह अधिसूचना जारी कर कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) या कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) के दायरे में आने वाले संगठन की सीमा बदल  सकती है।

 

चौथा, नई श्रम नीति ने कर्मचारियों की नई श्रेणियों को समाहित करने के लिए कानून का दायरा बढ़ाने की गुंजाइश काफी अधिक कर दी है। औद्योगिक संबंध संहिता तय अवधि वाले कर्मचारियों की भी बात करती है और यह सुनिश्चित करती है कि उन्हें भी समान कार्य करने वाले नियमित कर्मचारियों की तरह सामाजिक सुरक्षा एवं पारिश्रमिक के सभी लाभ मिले। पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कामकाजी हालात संहिता रंगमंच, फिल्म, मनोरंजन एवं मीडिया जैसे नए क्षेत्रों पर भी लागू होगी। सामाजिक सुरक्षा संहिता के मसौदे में ग्रैच्युटी एवं बीमा लाभ तय अवधि वाले कर्मचारियों को भी देने का प्रावधान है। मोबाइल ऐप से संचालित होने वाले उद्योगों में भी सक्रिय कर्मचारी इस कानून के दायरे में होंगे। नई अर्थव्यवस्था वाली उबर, ओला या स्विगी जैसी कंपनियों के कर्मचारियों को भी इस प्रावधान का लाभ मिलेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था पर श्रम नीति में हो रहे इन बड़े बदलावों का असर पडऩा तय है। लेकिन कुछ वर्षों बाद ही यह पता चल पाएगा कि ये बदलाव किस तरह असर डालते हैं।

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download