क्या है कोर इन्फ्लेशन?
इसका संबंध बास्केट में शामिल कमोडिटीज की कीमत में होने वाले बदलाव से है। इसमें फूड और फ्यूल जैसे कीमतों में ज्यादा उतार-चढ़ाव वाले आइटम शामिल नहीं हैं।
दुनिया भर के केंदीय बैंक हेडलाइन इनफ्लेशन के बजाय कोर इन्फ्लेशन पर क्यों करीबी नजर रखते हैं?
कीमत में बढ़ोतरी को मैनेज करने के लिए केंद्रीय बैंकों के लिए इकनॉमी में अंडरलाइंग प्रेशर को जानना जरूरी होता है, क्योंकि ज्यादा डिमांड से कीमतों में बढ़ोतरी होती है। कोर इन्फ्लेशन इसी का पता लगाता है। यह संकेत देता है कि मैन्यूफैक्चरर्स डिमांड में कमी के बगैर इनपुट कॉस्ट में बढ़ोतरी का बोझ दूसरों पर डालने में सक्षम हैं या नहीं? इसलिए कोर इनफ्लेशन से सेंट्रल बैंकों को हेडलाइन इन्फ्लेशन का अनुमान लगाने में मदद मिलती है।
क्या कोर इन्फ्लेशन का असर मॉनिटरी पॉलिसी पर पड़ता है?
ऊंचा कोर इन्फ्लेशन इकनॉमी में डिमांड प्रेशर का संकेत देता है, जिससे कीमत में तेज बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। ऐसा होने पर केंद्रीय बैंक डिमांड कम करने और इन्फ्लेशन घटाने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर सकता है। अगर केंद्रीय बैंक सिर्फ हेडलाइन इन्फ्लेशन पर फोकस करता है, जिसमें फूड की ऊंची कीमतों के चलते बढ़ोतरी हो सकती है तो उसके मॉनिटरी सिग्नल अपेक्षित असर दिखाने में नाकाम हो सकते हैं, क्योंकि फूड के डिमांड पर इंटरेस्ट रेट्स का ज्यादा असर नहीं पड़ता। ऐसे में मॉनिटरी पॉलिसी का असर दूसरी जगह मसलन इन्वेस्टमेंट पर पड़ सकता है।
भारत में कोर इन्फ्लेशन को कैसे मापा जाता है?
भारत ने पिछले साल से देश भर में रीटेल इन्फ्लेशन की माप शुरू की। ऐतिहासिक आंकड़ों के अभाव में अब भी होलसेल प्राइस इंडेक्स ही कीमतों में बदलाव की माप करने वाला जरिया है। इसमें आइटम के तीन बड़ी कैटिगरी शामिल हैं- प्राइमरी आर्टिकल (इसमें फूड शामिल), फ्यूल और मैन्यूफैक्चर्ड गुड्स। कुछ इकनॉमिस्ट्स मैन्यूफैक्चर्ड गुड्स के इन्फ्लेशन को कोर इन्फ्लेशन की माप का जरिया मानते है, जबकि दूसरे सिर्फ नॉन-फूड मैन्यूफैक्चर्ड गुड्स पर विचार करने के लिए इसके और हिस्से करते हैं।