खेती पर कर कितना उचित

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हाल ही में नीति आयोग की कार्ययोजना पेश करते समय आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय ने कृषि आय को कर प्रणाली में शामिल करने का सुझाव बताकर इस विवाद को जन्म दे दिया। हालांकि देबरॉय के बयान के तत्काल बाद वित्त मंत्री ने इस संभावना को खारिज कर दिया। वित्त मंत्री  ने कहा कि कृषि आय पर कर लगाने की सरकार की कोई योजना नहीं है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने भी कहा कि सरकार किसानों की आय को दोगुना करने की योजना बनाने में लगी हुई है। लिहाजा कर लगाने का सवाल ही नहीं उठता है। इसके बावजूद देबरॉय के बयान से निकले संदेश को अच्छी तरह से लिया गया है

कर दायरा बढाने के तरीके ?

Ø  अगर सरकार कर दायरा बढ़ाना चाहती है तो उसका स्वाभाविक तरीका यह है कि करारोपण से दी जाने वाली छूटों और अपवादों को या तो खत्म कर दिया जाए या न्यूनतम किया जाए।

Ø  देबरॉय की राय के मुताबिक एक खास सीमा से अधिक कृषि आय पर ही कर लगाया जाना चाहिए।

Ø  हालांकि पानगडिय़ा आशंका जता चुके हैं कि ऐसा करना सरकार के अन्य लक्ष्यों के साथ टकराव पैदा करेगा। इसके अलावा सियासी नजरिये से भी इस राह पर कदम बढ़ा पाना सरकार के लिए खासा मुश्किल होगा। 

क्या खेती को कर के दायरे में लाने से राजकोषीय लाभ होगा ?

Ø  लेकिन यह ध्यान रखना भी अहम है कि कृषि आय को कर दायरे में लाने से होने वाला राजकोषीय लाभ कम ही होगा। इसकी वजह यह है कि कर दायरे में लाए जाने वाले किसानों की संख्या काफी कम होगी। दरअसल पिछले कुछ दशकों में भारत में खेतों का आकार लगातार सिकुड़ता चला गया है जिससे कृषि अधिक लाभ का काम नहीं रह गया है। खेतों के बंटवारे से खेतों का औसत आकार काफी छोटा हो गया है। हालत यह है कि देश के 86 फीसदी से अधिक खेत आकार में दो हेक्टेयर से भी छोटे हैं। 

Ø  वर्तमान वित्त वर्ष में 2.5 लाख रुपये से अधिक आय पर ही कर लगाने का प्रावधान किया गया है। लेकिन राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के नवीनतम आंकड़ों की मानें तो 10 हेक्टेयर से अधिक खेत वाला एक कृषक परिवार भी साल भर में औसतन 2.35 लाख रुपये ही कमा पाएगा।

Ø  इस तरह कृषि आय पर निर्भर बहुत  कम परिवार ही कर दायरे में लाए जा सकेंगे।

और क्या तरीके ?

अगर बढ़ते राजकोषीय बोझ के चलते ऐसा फैसला किया जाता है तो उसके लिए कई अन्य तरीके भी हो सकते हैं। कृषि आय पर कर लगाने से अच्छा है कि :

Ø  कृषि क्षेत्र को समर्थन मूल्य और अन्य तरीकों से दी जा रही तमाम सब्सिडी पर रोक लगा दी जाए।

Ø  इसके स्थान पर कई देशों में लागू प्रत्यक्ष आय समर्थन का तरीका आजमाया जा सकता है।

Ø  लेकिन इस आय को कुछ समय बाद अर्जित आयकर प्रणाली में शामिल करने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। इससे लोग स्वेच्छा से कर प्रणाली का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित होंगे। हालांकि अगर सरकार इसे लेकर चिंतित है कि कृषि आय पर मिली छूट का इस्तेमाल अन्य स्रोतों से हुई आय पर कर देने से बचने के लिए किया जा रहा है तो कर नियमों को अधिक प्रभावी तरीके से लागू करना ही उसका सही तरीका हो सकता है।

 निश्चित रूप से कृषि आय पर कर लगाने जैसे प्रस्ताव पर फैसला करने के पहले सभी बिंदुओं पर गौर करना होगा। इसके अलावा नीति आयोग को भी ग्रामीण क्षेत्र के लिए कारगर संरचनात्मक बदलावों पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

 

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