एक देश, एक मंडी और एक लाइसेंस के साथ समान कानून लागू करने की सरकार की मंशा पूरी होती दिखने लगी है। किसान और व्यापारियों के बढ़ते रुझान को देखते हुए राज्य सरकारों ने भी इस दिशा में सकारात्मक पहल की है।
- ई-मंडी की पायलट परियोजना की शानदार सफलता के बाद उत्साहित केंद्र सरकार ने निर्धारित लक्ष्य को समय से पहले पूरा करने का एलान किया है।
- सितंबर 2016 तक दो सौ मंडियों में ई-कारोबार शुरू करना था, लेकिन राज्यों की सक्रियता से ऐसी मंडियों की संख्या ढाई सौ हो गई है।
- ई-मंडी की तरफ राज्यों के रुझान का आलम यह है कि 14 राज्यों से अब तक 399 मंडियों को इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) से जुड़ने का प्रस्ताव आ चुका है। केंद्र सरकार ने भी बिना किसी विलंब के सभी प्रस्तावों को मंजूरी प्रदान कर दी है।
- केवल पायलट परियोजना में ही 421 करोड़ रुपये मूल्य के डेढ़ लाख टन कृषि उपज का ई-कारोबार हो चुका है
- ई-मंडी में अब तक 1.60 लाख किसान, 46 हजार से अधिक व्यापारी और तकरीबन 26 हजार कमीशन एजेंटों ने अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया है।
- पायलट परियोजना के समय केवल 25 जिंसों के कारोबार की अनुमति दी गई थी, जिनकी संख्या बढ़कर अब 69 हो चुकी है। यहां जुड़े किसानों की उपज का भुगतान ऑनलाइन किया जाता है।
- अब इसे सीधे किसानों के बैंक खाते में जमा कराने की व्यवस्था की जा रही है। वैसे तो मंडी कानून में सुधार के पहले चरण में मार्च 2018 तक केवल 585 मंडियों को जोड़ने का लक्ष्य है, जिसमें 400 मंडियों के मार्च 2017 तक जुड़ने का अनुमान है।
- यह लक्ष्य बहुत पहले ही पूरा हो जाएगा। कुल 17 राज्यों व एक केंद्र शासित राज्य ने अपने मंडी कानून में पूर्ण या आंशिक संशोधन किया है
- ई-मंडी के माध्यम से किसानों की आय को बढ़ाने में मदद मिलेगी।