भारत मे पानी की विडम्बना
देश में पानी की कमी नहीं है। एक तरफ हिमालय से निकलने वाली नदियां हैं, तो दूसरी तरफ समुद्र से घिरा देश है। फिर भी आधे से अधिक देश प्यासा है।
पानी का संकट
- महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में भी पानी का भारी संकट है।
- दूसरे राज्यों के कई नगरों का भी बुरा हाल है।
- दोहरा संकट
- एक तो कई राज्यों के अधिकतर भागों में पेयजल का संकट है और
- दूसरी खास बात यह है कि जहां पानी है वह भी पीने लायक नहीं है।
- उत्तर भारत के तीन-चार राज्यों मे हर तीसरे साल सूखा और प्राय: हर साल बाढ़ का संकट पैदा हो जाता है।
- विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट : इसमें चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध जल दोहन का हाल यही रहा तो अगले एक दशक में भारत के साठ फीसद ब्लाक सूखे की चपेट में होंगे। तब फसलों की सिंचाई तो दूर, पीने के पानी के लिए भी मारामारी शुरू हो सकती है।
- राष्ट्रीय स्तर पर 5723 ब्लाकों में से 1820 ब्लाकों में जल स्तर खतरनाक पैमाना पार कर चुका है।
- जल संरक्षण न होने और लगातार दोहन के चलते दो सौ से अधिक ब्लाक ऐसे भी हैं, जिनके बारे में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने संबंधित राज्य सरकारों को तत्काल प्रभाव से जल दोहन पर पाबंदी लगाने का सुझाव दिया है।
- उत्तरी राज्यों में हरियाणा के पैंसठ फीसद और उत्तर प्रदेश के तीस फीसद ब्लाकों में भूजल का स्तर चिंताजनक पैमाने पर पहुंच गया है। वनों की अंधाधुंध कटाई से यह समस्या और गहराई है।
- सन 2020 तक भारत की जनसंख्या बढ़ कर एक सौ चालीस करोड़ हो जाएगी। इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए लगभग पैंतीस करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत पड़ेगी, जो हमारे वर्तमान उत्पादन से लगभग डेढ़ गुना होगा। इसलिए सिंचाई सुविधाओं के विस्तार के साथ-साथ उपलब्ध जल का भरपूर उपयोग भी जरूरी होगा।
पानी की उपलब्धता
- हमारे देश में सालाना चार हजार अरब घन मीटर पानी उपलब्ध है।
- इस पानी का बहुत बड़ा भाग समुद्र में बेकार चला जाता है। इसलिए बरसात में बाढ़ की, तो गरमी में सूखे का संकट पैदा हो जाता है।
- कभी-कभी तो देश के एक भाग में सूखा पड़ जाता है और दूसरा भाग बाढ़ की चपेट में आ जाता है।
समस्या का कारण
- जैसे -जैसे सिंचित भूमि का क्षेत्रफल बढ़ता गया है, वैसे-वैसे भूगर्भ के जल स्तर में गिरावट आई है।
- देश में सुनियोजित विकास पूर्व सिंचित क्षेत्र का क्षेत्रफल 2.26 करोड़ हेक्टेयर था। आज लगभग 6.8 करोड़ हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। सिंचाई क्षेत्र के बढ़ने के साथ-साथ जल का इस्तेमाल भी बढ़ा है, इसलिए भूगर्भ में उसका स्तर घटा है।
- गरमी आते ही जमीन में पानी का स्तर घटने से बहुत सारे कुएं और तालाब सूख जाते हैं और नलकूप बेकार हो जाते हैं। वर्षा कम हुई तो यह संकट और बढ़ जाता है।
- आबादी बढ़ने के साथ-साथ गांवों की ताल-तलैया भी घटती जा रही है और इसलिए उनकी जल भंडारण क्षमता भी खत्म हो गई है या घटी है।
- भौगोलिक व्यवस्था और पानी की समस्या : भारत में पानी की दोषपूर्ण नीति उसकी भौगोलिक व्यवस्था के कारण है। भोपाल के पास से गुजरने वाली कर्क रेखा के उत्तर क्षेत्र की नदियों में यह पानी कुल का दो-तिहाई है, जबकि कर्क रेखा के दक्षिण के क्षेत्रों में एक तिहाई। दक्षिण भारत में कुल पानी का केवल चौथाई भाग उपलब्ध है। उत्तर में भी इलाहाबाद के पश्चिम में आवश्यकता से कम उपलब्ध है। लेकिन उसी गंगा से आगे जाकर जरूरत से अधिक पानी प्राप्त होता है। इसी तरह ब्रह्मपुत्र के पानी की समस्या है। यह संकरी घाटी से गुजरने के कारण उपयोग में नहीं आ पाता है। इसी तरह सिंध नदी में जल संधि के कारण उसका पानी भारत की ओर नहीं बढ़ पाता।
- मॉनसून और पानी भारत में जल संसाधन मुख्यतया दक्षिण-पश्चिम मॉनसून पर निर्भर है। उत्तर-पूर्वी मानसून से भी कुछ पानी प्राप्त होता है। दक्षिण-पूर्वी मानसून, वर्मा, थाईलैंड आदि की ओर चला जाता है। कभी-कभी इस मानसून के कुछ बादल हिमालय की ओर मुड़ कर भारत के उत्तर में वर्षा करते हैं।
आवश्यकता :
- इसको कम करने के लिए आवश्यक है कि हम उपलब्ध जल का भंडारण करें। गंगा-यमुना के मैदानी क्षेत्रों में तो जल का भंडारण करके सूखे की समस्या से आसानी से निपटा जा सकता है।
- भारत में वर्षा से काफी जल प्राप्त होता है। इसे बांध और जलाशय बना कर इकट्ठा किया जा सकता है। बाद में इस जल का उपयोग सिंचाई और बिजली बनाने के लिए किया जा सकता है।
- इसके लिए सबसे पहले उन क्षेत्रों की सूची तैयार करनी होगी, जहां गरमी शुरू होते ही ताल, तलैया और कुएं सूख जाते हैं और भूगर्भ में भी जल का स्तर घटने लगता है। ऐसे क्षेत्रों में कुछ बड़े-बड़े जलाशय बना कर भूगर्भ के जल स्तर को घटने से भी रोका जा सकता है और सिंचाई के लिए भी जल उपलब्ध कराया जा सकता है।
- नए जलाशयों के निर्माण के साथ-साथ पुराने तालाबों को भी गहरा किया जाने की जरूरत है
- विश्व के कई देशों में एक नदी के पानी को दूसरी ओर मोड़ कर पानी की समस्या हल की गई है। भारत में भी इस दिशा में कुछ काम हुआ है और इसमें तेजी लाने की आवश्यकता है। तमिलनाडु में पूर्वी भागों का पानी पेरियार की ओर मोड़ा गया है। यमुना का पानी भी पश्चिमी भाग की ओर मोड़ा गया है। सिंधु नदी को राजस्थान की ओर प्रवाहित किया गया है, लेकिन ये योजनाएं अत्यंत लघु स्तर की रही हैं।
- पानी के संकट के लिए भी कई तात्कालिक कदम उठाए जाने चाहिए और इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-छोटे जलाशयों का निर्माण किया जाना चाहिए, ताकि उस क्षेत्र के कुओं को सूखने से बचाया जा सके और पशुओं को भी जल मिल सके।