स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) और पांच सहयोगी बैंकों तथा नवगठित भारतीय महिला बैंक का विलय : पक्ष - विपक्ष

- लंबे समय तक चले मंथन के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने अपने पांच सहयोगी बैंकों और नवगठित भारतीय महिला बैंक (बीएमबी) के खुद में विलय के लिए केंद्र सरकार से अनुमति मांगी है.

- एसबीआई के पांच सहयोगी बैंक में स्टेट बैंक आफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक आफ हैदराबाद, स्टेट बैंक आफ मैसूर, स्टेट बैंक आफ पटियाला और स्टेट बैंक आफ त्रावणकोर शामिल हैं.

** हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब एसबीआई खुद में छोटे बैंकों का विलय कर रही है. एसबीआई ने सबसे पहले स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र को 2008 में खुद में मिलाया था. उसके बाद 2010 में उसने स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का विलय किया था.

* विशेषज्ञों ने एसबीआई के इस कदम पर अपनी आशंकाएं जाहिर की हैं. वहीं एसबीआई के पांच सहयोगी बैंकों के कर्मचारियों का एक समूह अपने मूल बैंक के साथ प्रस्तावित विलय के खिलाफ शुक्रवार को एक दिन की हड़ताल पर रहा .कर्मचारियों ने सात जून और 20 जुलाई को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है.

* बैंकिंग क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले संकट के समय बैंकों का विलय संकट से निपटने के लिए आसान विचार माना जाता है. भारतीय बैंकिंग सेक्टर अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है.

* उद्योग संगठन एसोचैम की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर 2015 के अंत तक जोखिम वाली परिसंपत्ति का आंकड़ा दस लाख करोड़ रुपए के पार जा सकता है. इसमें गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) और पुनर्गठित ऋण (सीडीआर) भी शामिल हैं.

विलय के पक्ष में तर्क (In favors):

  1. प्रस्तावित विलय से एसबीआई दुनिया के 50 बड़े बैंकों में शामिल हो जाएगा. फिलहाल बैंक 52 वें स्थान पर है. बैंक का बैलेंसशीट बढ़कर 37 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा, जो अभी 28 लाख करोड़ रुपये है.
  2. भारतीय बैंकिंग प्रणाली बहुत ज्यादा खंडित है और छोटे बैंक अर्थव्यवस्था के पैमाने पर लक्ष्य हासिल करने में विफल रहे हैं. एक बड़ी ईकाई के रूप में एसबीआई खर्चों में कटौती और मुनाफे में सुधार कर सकती है.

  3. आगे बढ़ रहे भारत को बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए भारी धन की जरूरत है. इसके लिए अच्छे बैलैंसशीट वाले बैंक ही धन का इंतजाम कर सकते हैं. वास्तव में जिन छह बैंकों का विलय एसबीआई में प्रस्तावित हैं, उनके पास किसी बड़े बुनियादी ढांचा परियोजना के लिए फंड नहीं है.

  4. अपने पैरेंट्स संगठन एसबीआई से जुड़ने से सहयोगी बैंक बेहतर बैंकिंग सुविधाओं के साथ अधिक ग्राहकों को लुभाने में सक्षम हो जाएगा.

  5. 21वीं सदी में बैंकों को बैंकिंग क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा करने के लिए नवीनतम टेक्नोलॉजी से लैस होना पड़ेगा. छोटे बैंकों को डिजिलट बैंकिंग की ओर बढ़ने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है.

=>विलय के विपक्ष में तर्क (In Against) :-

  1.   विलय के बाद एसबीआई अपने 37 लाख करोड़ रुपये के बैलेंसशीट के साथ दुनिया के शीर्ष 50 बैंकों में शामिल हो जाएगा. विलय से एसबीआई भारत के दूसरे सबसे बड़े बैंक आईसीआईसीआई से पांच गुणा बड़ा हो जाएगा.  आईसीआईसीआई का बैलेंसशीट 7.11 करोड़ रुपये है.
  2. ·  निजी बैंकों के लिए विलय का रास्ता ज्यादा आसान है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में के लिए विलय मुश्किल होता है क्योंकि विलय के बाद बैंक के कर्मचारियों की संख्या बढ़ जाती है और उनकी छंटनी आसान नहीं होती. बैंक यूनियन पहले ही विलय के खिलाफ हड़ताल की घोषणा कर चुके हैं. एसबीआई को कर्मचारियों के विरोध का सामना करना पड़ेगा.
  3. ·  इसमें कोई संदेह नहीं है कि बड़े बैंक बड़ी परियोजनाओं के लिए धन जुटा सकते हैं. लेकिन इसका दूसरा पहलू है कि इससे एसबीआई जैसे बड़े बैंक का जोखिम भी उतना ही बढ़ेगा. हाल में ही आरबीआई के गर्वनर रघुराम राजन ने यह भरोसा जताया था कि बैंक अब सोच-समझकर ऋण देंगे.
  4. ·  ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का ऋण देने के मामले में प्रोफाइल एक ही जैसा है. इसलिए एक ही तरह बैंकों का  आपस में विलय व्यापार में सुधार की संभावनाओं में बढ़ोत्तरी नहीं करता है. सार्वजनिक बैंक अपना ज्यादातर ऋण  थोक बाजार में देते हैं और विलय के बाद उनके पोर्टफोलियो में कोई बड़ा बदलाव नहीं होने वाला है.
  5. ·  नए टेक्नोलॉजी के साथ करने के लिए नई प्रतिभाओं की भर्ती की आवश्यकता होगी. विशेष रूप से नए कारोबार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बैंकों के लिए यह जरूरी होगा. लेकिन विलय के बाद भी एसबीआई में बड़ी संख्या में पुराने कर्मचारी होंगे जो एक ही तरह के प्रोफाइल में काम करते रहे हैं. इससे एसबीआई को नए कारोबार में दिक्कत पेश आ सकती है.

*   एसबीआई के पांचों सहयोगी बैंकों के निदेशक मंडलों ने मंगलवार को हुई बैठक में अपने मातृ संगठन एसबीआई के साथ विलय का प्रस्ताव कर चुकी है. विलय फायदेमंद का सौदा तभी साबित हो सकता है जब एसबीआई ऊपर दिए चुनौतियों   का सामना करने सफल हो.

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