प्लास्टिक मनी और काले धन के सृजन में कमी

काले धन पर सरकार का प्रहार : विमुद्रीकरण

सरकार द्वारा 8 नवंबर को 500 और 1,000 रुपये के मूल्य वाले नोट बंद करने के फैसले को काले धन पर एक बड़े प्रहार के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। इससे इन नोटों के रूप में भारी पैमाने पर जमा काले धन के बड़े हिस्से पर चोट होगी।

  • सरकार का अनुमान है कि इन नोटों के रूप में तकरीबन 17 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा वित्तीय तंत्र में है।
  • अगर समांतर अर्थव्यवस्था का आकार भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 20 फीसदी के बराबर है तो 3.4 लाख करोड़ रुपये का काला धन इन नोटों के रूप में है और अब इन पर भारी हर्जाने के बाद कुछ तंत्र में आ सकता है।
  • इसमें से कुछ राशि (जीडीपी के 2 फीसदी से अधिक) नष्टï भी की जा सकती है क्योंकि लोग मुकदमेबाजी से बचने के लिए इसका खुलासा करने से डरेंगे क्योंकि सरकार ने दो महीने पहले सितंबर, 2016 तक अपनी अघोषित आमदनी का ऐलान करने का एक अवसर दिया था लेकिन उसके बावजूद इन लोगों ने ऐसा नहीं किया।

 हालांकि यह लोगों के व्यवहार पर निर्भर करेगा लेकिन सरकार का कर राजस्व और भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार पर इसका प्रभाव जरूर पड़ेगा, मगर यह असर बहुत ज्यादा नहीं होगा। 

इस फैसले के अहम पहलुओं का आकलन

a)  क्या Black money पर नियंत्रण होगा : इन नोटों को अवैध घोषित करने से जरूरी नहीं कि नए काले धन के सृजन पर विराम लग जाए। इसमें केवल उसी से निपटा जाएगा, जो अघोषित आमदनी के रूप में होगा। काले धन के सृजन पर तब तक विराम नहीं लगेगा जब तक कि सरकार रियल एस्टेट और चुनावों के रूप में उनकी प्रमुख जननी को लेकर कोई बड़ा कदम नहीं उठाती। साथ ही प्लास्टिक मनी या इलेक्ट्रॉनिक मनी का रुख करने वाले लोगों के लिए किसी तरह का पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं है। इससे कई बार के्रडिट कार्ड से खरीदारी करने वाले ग्राहकों को उस उत्पाद या सेवा की असल कीमत से कुछ अधिक राशि चुकानी पड़ सकती है। 

अगर सरकार प्लास्टिक मनी या इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट इस्तेमाल करने वालों के लिए कुछ प्रोत्साहन देती है तो यह बेहतर होगा।

 

b) इसके फायदों पर बहस :

  • मिसाल के तौर पर इसमें सरकार का क्या नुकसान होता अगर सार्वजनिक उपयोग और आकस्मिक सेवाओं के लिए तीन से लेकर छह दिन के बजाय महीने भर पुराने बड़े नोटों में भुगतान की इजाजत दी जाती?
  • इससे बैंकों और डाकघरों के बाहर लगी लंबी कतारों के साथ हुए भारी गतिरोध और कई बाजारों में ठप हुए खुदरा व्यापार की स्थिति से बचा जा सकता था। छोटे कारोबारी, घरों में काम करने वाली मेड, सब्जी विक्रेता और साफ सफाई करने वालों को उतनी परेशानियां नहीं झेलनी पड़तीं, जिनसे फिलहाल वे दो-चार हो रहे हैं। 
  • समाज के आर्थिक रूप से संपन्न तबके के पास फिर भी तमाम विकल्प हैं। मसलन क्रेडिट कार्ड और इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट के जरिये वे अपनी तात्कालिक जरूरतों की पूर्ति कर सकते हैं। निश्चित रूप से इस फैसले को अमल में लाने से पहले बैंकों और डाकघरों की अपर्याप्त शाखाओं पर विचार नहीं किया गया कि इसे मूर्त रूप देने में उन्हें कितनी मुश्किलें आएंगी। 
  • लंबी समयसीमा से काला धन रखने वाले ऐसे लोगों को मौका मिल जाता, जो इनका उपयोग आतंकी गतिविधियों के लिए करते हैं। मगर तब आतंक से निपटने के लिए कुछ और तरीके अपनाए जा सकते थे, जिन पर बहस हो सकती है। लेकिन यह तय है कि लंबी समयसीमा से छोटे व्यापारियों और गरीब तबके के लोगों के एक बड़े वर्ग को ऐसी परेशानी नहीं होती। ऐसे में इस कवायद के बुनियादी लक्ष्य यानी काले धन पर अंकुश लगाने की मुहिम तब भी पूरी हो जाती। 

c) इसके लागू करने के तरीको पर प्रश्नचिन्ह :

  • सरकार ने आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत अधिसूचना के जरिये इन नोटों को अमान्य कर दिया।
  • वर्ष 1978 में मोरारजी देसाई सरकार ने 1,000 के अलावा 5,000 और 10,000 रुपये के नोट बंद करने के लिए अध्यादेश का सहारा लिया था। यह अध्यादेश मार्च 1978 में कानून बन गया।
  •  इसके दो दशक बाद दिसंबर, 1998 में 1,000 रुपये का नया नोट शुरू करने के मामले में भी यशवंत सिन्हा को यही करना पड़ा, जिसके लिए उच्च मूल्य बैंक नोट (मुद्रीकरण) अधिनियम, 1978 में संशोधन करना पड़ा
  • मोदी सरकार ने आरबीआई अधिनियम का विकल्प चुना, जिसके तहत केंद्रीय बैंक के केंद्रीय बोर्ड के सुझाव के बाद सरकार किसी मुद्रा को अमान्य घोषित करने का फैसला कर सकती है। 8 नवंबर को जो हुआ, उसका मर्म यही है कि विमुद्रीकरण किसी सरकारी अधिसूचना के जरिये भी हो सकता है और उसके लिए कानून में बदलाव की आवश्यकता नहीं है जैसा कि 1978 में देसाई सरकार और 1998 में सिन्हा ने किया

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