1. इच्छामृत्यु क्या है? उसके प्रकार
2. इच्छामृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
3.अरुणा शानबाग का मामला
4. अंतराष्ट्रीय परिपाटी
5. विपक्ष में तर्क और दलीलें
- पिछली बार सरकार ने इस मामले पर उस समय विचार-विमर्श किया था जब भारतीय विधि आयोग ने "बहुत-बीमार रोगियों का चिकित्सा उपचार (रोगियों और चिकित्सा चिकित्सकों का संरक्षण) विधेयक 2006" पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी.
- विधि आयोग की सिफारिशों के आधार पर सरकार अब निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर एक कानून बनाने पर विचार कर रही है, और यह आखिरी निर्णय पर पहुंचने से पहले जनता की राय और टिप्पणियां जानना चाहती है.
संक्षेप में, सक्रिय इच्छामृत्यु का मतलब है एक जानलेवा इंजेक्शन के जरिए बीमार व्यक्ति कि जान ले लेना. जबकि निष्क्रिय इच्छामृत्यु के तहत उपचार या दवाओं पर रोक लगाना शामिल है जिससे मरीज खुद ही प्राण त्याग देगा.
निष्क्रिय इच्छामृत्यु दो रूपों में आती है. यह स्वैच्छिक हो सकती है, जहां मरीज अपने स्वयं के भाग्य का फैसला करता है, या गैर-स्वैच्छिक हो सकती है जहां मरीज की सहमति उपलब्ध नहीं होती, उदहारण के तौर पर ऐसी स्थिति जब मरीज कोमा की स्थिति में होता है.
"गलत उद्देश्यों से भ्रष्ट व्यक्तियों" द्वारा संभावित कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार सक्रिय इच्छामृत्यु पर विचार नहीं कर रही है.
=>"उच्चतम न्यायालय का निर्णय"
★ भारत के उच्चतम न्यायालय ने सात मार्च 2010 को अपने फैसले में अक्षम रोगियों के मामलों में 'इच्छामृत्यु प्रक्रिया' के संबंध में दिशा-निर्देशों की एक सूची जारी की. उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया का उस समय तक पालन किया जाए जब तक कि संसद एक कानून नहीं बना देती.
★ सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए, निकटतम रिश्तेदार या खुद रोगी (अगर क्षमता में हो तो) को अदालत से संपर्क करना चाहिए.
★इसके बाद अदालत चिकित्सा विशेषज्ञों से परामर्श करेगी जिनमें मनोचिकित्सक भी होंगे और इनकी राय के आधार पर किसी निर्णय पर पहुंचेगी. अदालत को रोगी के निकट रिश्तेदारों को सूचित भी करना होगा.
★ सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, विधि आयोग ने एक कानून का प्रस्ताव रखा और एक विधेयक का मसौदा तैयार किया जिसका शीर्षक रखा गया "बहुत बीमार रोगियों का चिकित्सा उपचार (मरीजों और चिकित्सकों का संरक्षण) विधेयक”I
=>बिल के बारे में अधिक जानकारी :-
★ ऐसे लोगो की संख्या हजारों में है जो अपने इलाज और अपने भाग्य के बारे में निर्णय लेने का अधिकार चाहते है. ऐसे में उनके लिए इच्छामृत्यु अच्छी है या नहीं, आप इस बारे में फैसला करें, उससे पहले उन चेतावनी और प्रतिबन्धों के बारे में जान लीजिये जिन्हें बिल में डाला गया है:
=>केवल बीमार रोगियों के लिए
★ निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए अनुमति दी जाये या नहीं यह निर्णय केवल उनके लिए है जो 'बहुत बीमार' हैं.
★ एक बहुत बीमार मरीज वह रोगी है जो "बीमारी, चोट या शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम हो चुका है" और चिकित्सकों कि राय में यह अक्षमता अनिवार्य रूप से उस मरीज की मौत का कारण बनेगा.
★ यह ऐसा रोग है जिसने रोगी की ऐसी अवस्था में पहुंचा दिया है कि वह सतत और "अपरिवर्तनीय है और जिसके कारण रोगी के लिए जीवन का कोई सार्थक अस्तित्व ही संभव नहीं है." 16 से 18 वर्ष के आयु समूह के रोगियों के मामले में माता-पिता की सहमति की आवश्यकता भी इसकी एक और अतिरिक्त शर्त है.
=>निर्णय से पहले सूचना देना :-
★ इस मामले पर कोई भी निर्णय लेने से पहले, चिकित्सक के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह निष्क्रिय इच्छामृत्यु से पहले या इलाज बंद करने (जिसके कारण अंततः रोगी का जीवन खत्म हो जाएगा) से तीन दिन पहले पति या पत्नी, माता-पिता या करीबी रिश्तेदार को सूचित करे.
=>न्यायिक निरीक्षण :-
★ ऐसे मामलों में जहां उसकी शारीरिक और मानसिक दुर्बल स्थिति के कारण मरीज खुद के जीवन या मरण के बारे में निर्णय नहीं कर सकता, वहां उसके करीबी रिश्तेदार, कानूनी अभिभावक या चिकित्सक को उच्च न्यायालय से अपील करनी होगी.
★ उच्च न्यायालय द्वारा ऐसा कोई भी केस एक महीने के भीतर निपटाया जाना चाहिए.
★ प्रत्येक राज्य में चिकित्सा विशेषज्ञों का एक पैनल स्थापित किया जाएगा जिसमें चिकित्सा, शल्य चिकित्सा और क्रिटिकल केयर के विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा. जब इस तरह के इच्छामृत्यु के मामले आयेंगे तो उच्च न्यायालय इस पैनल के चिकित्सा विशेषज्ञों की राय लेगा और अपना निर्णय सुनाएगा.
=>कानूनी संरक्षण :-
★ एक बार जब उच्च न्यायालय निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए अनुमति दे देगा, तो इसके लिए अदालत जाने वाले रोगी के अभिभावक या निकटतम रिश्तेदार या चिकित्सक को ऐसा निर्णय करने के लिए किसी भी अपराध का दोषी न समझा जाए यह सुनिश्चित किया जायेगा अर्थात उनको कानूनी रूप से संरक्षित किया जाएगा.
=>गोपनीयता को वरीयता
★ निष्क्रिय इच्छामृत्यु पाने वाले रोगी, आखिरी निर्णय लेने वाले लोगों और चिकित्सक के साथ-साथ उन चिकित्सा विशेषज्ञों की गोपनीयता बरकरार रखना अदालत सुनिश्चित करेगी जिनके साथ विचार-विमर्श कर आखिरी निर्णय लिया गया है.
★ मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया समय-समय पर दिशा-निर्देशों की समीक्षा कर सकेगी और दिशा-निर्देशों को संशोधित कर सकेगी.
=>अरुणा शानबाग का मामला :-
★ जब इच्छामृत्यु पर चर्चा हो रही है तो अरुणा शानबाग के मामले का जिक्र करना जरूरी हो जाता है. अरुणा शानबाग मुंबई में केईएम अस्पताल में एक नर्स के रूप में काम करती थी. 43 साल पहले उसी अस्पताल में एक वार्ड बॉय ने अरुणा का यौन शोषण किया और उसके साथ दरिंदगी की. अरुणा ने 18 मई 2015 को आखिरी सांस ली.
★ इतने सालों तक जब अरुणा बेहोशी की हालत में बिस्तर पर पड़ी रही, डीन और एक के बाद एक आये नर्सों के बैचों ने अरुणा का ख्याल रखने के लिए घंटों बिताए और एक तरल आहार पर उसे निरंतर जिंदा रखा.
★ अरुणा की हालत देख व्यथित हुई पत्रकार पिंकी विरानी ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका दायर की थी और अरुणा शानबाग के लिए इच्छामृत्यु की मांग की थी.
★ अनुच्छेद 32 किसी भी व्यक्ति को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की शिकायत के निवारण की तलाश में अदालत जाने की छूट देता है.
=>अरुणा शानबाग मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला :-
★ अदालत ने एक मेडिकल बोर्ड के गठन और इस मामले पर विचार-विमर्श के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि चूंकि रोगी ब्रेन डेड नहीं था और कुछ स्थितियों में उसने जवाब भी दिया था, इसलिए इस केस में इच्छामृत्यु की कोई जरूरत नहीं थी.
★ हालांकि इसी मामले ने सुप्रीम कोर्ट को कुछ ऐसे दिशा-निर्देशों की एक सूची बनाने को प्रेरित किया जिसके तहत निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी जा सकता है.
=>अंतरराष्ट्रीय परिपाटी :-
★ लंबे समय तक विचार-विमर्श करने के बाद, बेल्जियम और नीदरलैंड जैसे यूरोपीय देशों ने निष्क्रिय और सक्रिय इच्छामृत्यु, दोनों को कानूनी रूप से वैध बना दिया जहां बीमार रोगियों को एक जहरीला पदार्थ देकर कष्टदायक जीवन से छुटकारा दिलाया जाता है.
★ नीदरलैंड जहां 12 साल की उम्र से ऊपर के किसी भी नागरिक के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति देता है वहीं बेल्जियम ने सक्रिय इच्छामृत्यु का अधिकार सभी आयु समूहों के लिए खुलाा रखा है.
★ दोनों देश किसी भी व्यक्ति को गरिमापूर्ण तरीके से अपनी जिंदगी खत्म करने के लिए अनुमति देते हैं. शर्त बस ये है कि वह चिकित्सा और देखभाल के हर तरीके से उपचार करवाने की कोशिश कर चुका हो.
★ स्विट्जरलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी इच्छामृत्यु को वैध बनाया जा चुका है.
- ऊपर उल्लिखित देशों में, यदि रोगी खुद एक सचेत और समझदारी भरा निर्णय लेने की अवस्था में नहीं है तो उसके करीबी रिश्तेदारों को कानून से अनुमति लेने का अधिकार है. वहीं एक नाबालिग के मामले में माता-पिता या एक अभिभावक से सहमति जरूरी होती है.
=>चिंताएं और दलीलें (विपक्ष में तर्क) :-
★ विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ मामलों में, विशेषकर जो रोगी युवा हैं अपने जीवन को खत्म करने का निर्णय वे अपनी इच्छा से लेते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका उपचार परिवार या अभिभावकों पर एक अतिरिक्त बोझ है.
★ यह विधेयक हालांकि चिकित्सा समुदाय की आशंका को ध्यान में रखता है और इसी कारण चिकित्सक की बात को व्यक्ति के मरने के अधिकार से ऊपर रखता है.
★ अदालत की अनुमति को अनिवार्य बनाना भी डॉक्टरों और चिकित्सा विशेषज्ञों को परेशान कर रहा है. विशेषज्ञों का कहना है, निष्क्रिय इच्छामृत्यु का निर्णय राज्य द्वारा स्थापित चिकित्सा विशेषज्ञों के पैनल या अस्पतालों द्वारा स्थापित पैनल पर छोड़ दिया जाना चाहिए.
★ "कई मामलों में डॉक्टर जानबूझकर रोगियों को अस्पताल छोड़ने की और घर जाने की अनुमति दे देते हैं. लगातार चिकित्सा के अभाव में रोगी की मृत्यु हो जाती है. यह सीधे-सीधे निष्क्रिय इच्छामृत्यु का मामला है. ऐसे मामलों को संभालने के लिए चिकित्सा विशेषज्ञ ही सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं."
★ अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संदर्भों में देखें तो एक बात तय है कि इच्छामृत्यु हमेशा बहस का विषय रहा है.
★ हमारा संविधान गरिमा के साथ जीने के अधिकार के बारे में तो बात करता है लेकिन गरिमा के साथ मृत्यु के संबंध में इसमें कोई अधिकार नहीं दिया गया है. इसलिए इस क़ानून में नैतिकता और तार्किकता हमेशा विवाद का मुद्दा बनी रहेगी.