टाइप वन और टाइप टू डायबिटीज के मरीजों के लिए स्टेम सेल्स की मदद से इलाज की उम्मीद जगी है।
- टाइप–। मधुमेह में अग्नाशय इंसुलिन नामक हार्मोन नहीं बना पाता जिससे ग्लूकोज शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा नहीं दे पाता। इस टाइप में रोगी को रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य रखने के लिए नियमित रूप से इंसुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। इसे ‘ज्यूविनाइल ऑनसैट . डायबिटीज’ के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग प्रायः किशोरावस्था में पाया जाता है। इस रोग में ऑटोइम्यूनिटी के कारण रोगी का वजन कम हो जाता है।
- टाइप–।I मधुमेह में अग्नाशय इंसुलिन बनाता तो है परंतु इंसुलिन कम मात्रा में बनती है, अपना असर खो देती है या फिर अग्नाशय से ठीक समय पर छूट नहीं पाती जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर अनियंत्रित हो जाता है। इस प्रकार के मधुमेह में जेनेटिक कारण भी महत्वपूर्ण हैं। कई परिवारों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। यह वयस्कों तथा मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों में धीरे-धीरे अपनी जड़े जमा लेता है।
क्या होता था अब तक
अब तक बढ़े या कम इंसुलिन को नियंत्रित करने के लिए दवाएं दी जाती थी, लेकिन एक नए शोध के बाद लैब में तैयार बीटा सेल्स को कैप्सूल के जरिए पैंक्रियाज तक पहुंचा कर ऑटोइम्यून हुई टी सेल्स को दोबारा विकसित किया जा सकता है।
क्या है डायबिटीज
डायबिटीज एक तरह का मेटाबॉलिक डिसऑर्डर है। इसमें पैंक्रियाज में बनने वाली बी सेल्स का स्नव या तो अधिक होता है या फिर बिल्कुल नहीं होता। टाइप वन और टाइप टू डायबिटीज में इंसुलिन को नियंत्रित करना होता है।
नया शोध:
नए शोध में इंसुलिन बनाने के लिए जिम्मेदार बीटा सेल्स को पुन: सजिर्त किया गया है। चूहों पर किए गए शोध में वीएसईएल (वेरी स्मॉल एम्ब्रायोनिक लाइक स्टेम सेल्स) और प्लूरीपोटेंट स्टेम सेल्स को लैब में विकसित कर पैंक्रियाज तक पहुंचाया गया। दो से तीन महीने के स्टेम सेल्स प्रत्यारोपण के बाद चूहों के खून में शर्करा की मात्र में 30 प्रतिशत कमी देखी गई।