भारत ने फ्रांस के साथ अत्याधुनिक राफेल विमानों को लेकर एक बड़ी डील की है. भारत और फ्रांस के बीच 36 राफेल विमानों को लेकर करारा हुआ है| राफेल विमान बेहद शक्तिशाली और कठिन से कठिन परिस्थितियों में ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम हैं. भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन के पास भी ऐसे लड़ाकू विमान नहीं हैं.
=>जानें क्या विशेषताएँ है अत्याधुनिक राफेल विमानों में :-
- फ्रांस के साथ हुए सौदे में जो 36 राफेल फाइटर प्लेन भारत को मिलने वाले हैं, वे अत्याधुनिक हथियारों और मिसाइलों से लैस हैं.
- इनमें दुनिया की सबसे घातक समझी जाने वाली हवा से हवा में मार करने वाली मेटेओर (METEOR)मिसाइल खास है. ये मिसाइल चीन तो क्या किसी भी एशियाई देश के पास नहीं है. यानि राफेल प्लेन वाकई दक्षिण-एशिया में गेम-चेंजर साबित हो सकता है.
- ये पिछले 20 सालों में पहला फाइटर प्लेन का सौदा है. इसके साथ फाइटर प्लेन के हथियार भी मिलेंगे. साथ ही अगले पांच सालों के लिए स्पेयर पार्टस और मेंटेनस मिलेगा. ये विमान दुश्मन की जमीन में डीप पैनिट्रैशन यानि दूर तक वॉर करने में सक्षम साबित होगा. इस मिसाइल की रेंज करीब 150 किलोमीटर है.
=>>राफेल विमान डील की फुल डीटेल ÷
- भारत ने राफेल सौदे में करीब 710 मिलियन यूरो (यानि करीब 5341 करोड़ रुपये) लड़ाकू विमानों के हथियारों पर खर्च किए हैं. गौरतलब है कि पूरे सौदे की कीमत करीब 7.8 बिलियन यूरो यानि करीब 59 हजार करोड़ रुपये (मंहगाई दर 3.5 से ज्यादा नहीं होगी किसी भी स्थिति में) है.
- 36 विमानों की कीमत 3402 मिलियन यूरो, विमानों के स्पेयर पार्टस 1800 मिलियन यूरो के हैं जबकि भारत के जलवायु के अनुरुप बनाने में खर्चा हुआ है 1700 मिलियन यूरो का. इसके अलवा पर्फोमेंस बेस्ड लॉजिस्टिक का खर्चा है करीब 353 मिलियन यूरो का. एक विमान की कीमत करीब 90 मिलियन यूरो यानि करीब 673 करोड़ रुपये है. लेकिन इस विमान में लगने वाले हथियार, सिम्यूलेटर, ट्रैनिंग मिलाकर एक फाइटर जेट की कीमत करीब 1600 करोड़ रुपये पडेगी.
=>>विशेष मिसाइलों से लैस है राफेल
- वियोंड विज्युल रेंज ‘मेटेओर’ मिसाइल की रेंज करीब 150 किलोमीटर है. हवा से हवा में मार करने वाली ये मिसाइल दुनिया की सबसे घातक हथियारों में गिनी जाती है.
- इसके अलावा राफेल फाइटर जेट लंबी दूरी की हवा से सतह में मार करने वाली स्कैल्प (SCALP) क्रूज मिसाइल और हवा से हवा में मार करने वाली माइका (MICA) मिसाइल से भी लैस है.
=>>पायलट के लिए खास हेलमेट
★राफेल प्लेन में एक और खासयित है. वो ये कि इसके पायलट के हेलमेट में ही फाइटर प्लेन का पूरा डिस्पले सिस्टम होगा. यानि उसे प्लेन के कॉकपिट में लगे सिस्टम को देखने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी. उसका पूरा कॉकपिट का डिस्पले हेलमेट में होगा. पहला प्लेन अगले 36 महीने में भारत पहुंच जायेगा.
=>>वायुसेना की जरूरत के मुताबिक बनें हैं राफेल विमान÷
★सभी 36 प्लेन अगले 66 महीने में भारतीय वायुसेना में शामिल होने के लिए तैयार हो जायेंगे. सूत्रों के मुताबिक, प्लेन के आने में देरी इसलिए हो रही है क्योंकि राफेल बनाने वाली कंपनी को इसमें भारतीय वायुसेना की जरुरत के मुताबिक उपकरण लगाए गए हैं.
■भारत में आने के बाद इनकी स्कावड्रन ग्वालियर और सरसावा (सहारनपुर के करीब) स्थित होगी.
=>>सुखोई (Sukhoi) से बेहतर है राफेल÷
- वायुसेना की एक स्वाकड्रन में 18 फाइटर जेट होते हैं. अभी सरसावा में सुखोई की स्कावड्रन हैं और ग्वालियर में मिराज और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट सी-130जे सुपर हरक्युलिस की बेस है.
- राफेल बनाने वाली कंपनी से भारत ने ये भी सुनिश्चित कराया है कि एक समय में 75 प्रतिशत प्लेन हमेशा ऑपरेशनली-रेडी रहने चाहिए (सुखोई के लिए ये 46 % था).
=>>दुर्गम इलाकों में कार्रवाई के लिए सक्षम
- इसके अलावा भारतीय जलवायु और लेह-लद्दाख जैसे इलाकों के लिए खास तरह के उपकरण लगाए गए हैं, ताकि बेहद उंचाई और ठंड वाले इलाकों में भी इन्हे उड़नें में कोई दिक्कत ना हो.
- साथ ही राफेल 24 घंटे में पांच बार उड़ने की क्षमता रखता है. जबकि सुखोई सिर्फ तीन (03) उड़ान भर सकता है. राफेल का फ्लाइट रेडियस करीब 780-1050 किलोमीटर है.
=>>वायुसेना क्यों है चिंतित?
वायुसेना लगातार घट रही स्कॉवड्रन से चिंतित है. वायुसेना को 44 स्कावड्रन की जरुरत है. जबकि वायुसेना में अभी 32 स्कावड्रन हैं. वायुसेना पहले ही कह चुकी है कि उसे टू-फ्रंट वॉर (यानि एक साथ पाकिस्तान और चीन से) लड़ने के लिए कम से कम 44 स्कॉवड्रन की बेहद जरुरत है.
फ्रांस के साथ हुए सौदे में 50 प्रतिशत ऑफसेट क्लॉड का प्रवाधान है. इस 50 प्रतिशत का भी 74 प्रतिशत फ्रांस को भारत से लड़ाकू विमानों के लिए आयात करना होगा.