Flood is not just natural but human interference is accelerating it.
#Rashtriya_Sahara
उत्तरी भारत में बाढ़ (flood) एक राष्ट्रीय विपदा के रूप में गंभीर समस्या पैदा करते हुए गरीबी, सामाजिक विषमता, बेरोजगारी आदि लाने की भी प्रमुख वजह है। बाढ़ के बहुत सारे कारण हैं, लेकिन उनमें प्रमुख कारण जलवायु और स्थलाकृति है क्योंकि भारत में करीब 1200 मिलीमीटर के आसपास औसत वष्ा होती है। इसका 85 फीसद बरसात साल के तीन-चार महीनों यानी जून से सितम्बर के बीच में होती है
कृतिक आपदा भारत की एक प्रमुख समस्या है। इससे सूखा, बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि की समस्या से भारत ग्रसित है।
- करीब 85 फीसद भौगोलिक क्षेत्र और 24 राज्य कोई-न-कोई आपदा से पीड़ित हो रहा है।
- Flood वर्तमान समय में भारत की एक प्रमुख आपदा बन गई है, जो बहुत जल्दी-जल्दी आती है और जिससे बहुत गंभीर रूप से जानमाल और धन की क्षति होती है।
- पूरे उत्तरी भारत में बाढ़ एक राष्ट्रीय विपदा के रूप में गंभीर समस्या पैदा करते हुए गरीबी, सामाजिक विषमता, बेरोजगारी आदि लाने में प्रमुख भूमिका अदा करती है। बाढ़ आने के बहुत सारे कारण हैं, लेकिन उनमें प्रमुख कारण जलवायु और स्थलाकृति है क्योंकि भारत में करीब 1200 मिलीमीटर के आसपास औसत वष्ा होती है। इसमें 85 फीसद वष्ा तीन-चार महीनों में जून तथा सितम्बर के बीच में होती है।
- Urbanisation: कुछ सालों में बाढ़ हमारे मेगा सिटी की भी एक समस्या बन गई है, जिसमें चेन्नई और अभी मुबंई इसका एक जीता-जागता उदाहरण है। बिहार, असम और उत्तर प्रदेश तो प्रति वर्ष इससे पीड़ित होते हैं।
Flood a Natural Disaster?
Flood मुख्यत: प्राकृतिक कारणों से हो सकती है और मानवीय कारण से या दोनों के सामूहिक संबंध से हो सकती है।
- बिहार व असम में जो बाढ़ आती है वह उच्च भूमि और निम्न भूमि के संबंधों का एक स्वरूप है। जैसे-नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में वनों की कटाई और मानवीय क्रिया-कलापों में वृद्धि के कारण रन अप (प्रवाह की दिशा) अधिक होती है। जब एक साथ काफी मात्रा में वष्ा होती है और नीचे की भूमि जो वनाच्छादित नहीं है, वह काफी तेजी से नदियों की तरफ बढ़ती है। यह मॉनसून का एक मुख्य बिंदु है।
- पहाड़ी क्षेत्रों में वनों की कटाई, ओवरग्रेजिंग (गहन चरागाही) के कारण भूमि अपरदन, रॉक फॉल (पहाड़ों का टूटना) के कारण मलबे के रूप में जब जल प्रवाह क्षेत्रों में होता है तो सेडिमेंट्स लोड के कारण बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है।
- इसके साथ-साथ तटबंधों के रख-रखाव में लापरवाही, खराब प्राकृतिक प्रवाह पण्राली (ड्रेनेज सिस्टम) के साथ-साथ बिहार की शोक ‘‘कोसी नदी’ में धरातलीय कारण से नदियों के प्रवाह क्षेत्र में परिवर्तन होता रहता है, तो वहीं मौसमी कारणों में अधिक वष्ा, चक्रवातीय तूफान, बर्फबारी और फ्लश फ्लड आदि बाढ़ के मुख्य कारक हैं।
- जलवायुविक कारकों (हाइड्रोलॉजिकल) में भूमि, मृदा नमी, भूमिगत जल, रिवर बैंक (नदी किनारों) में बदलाव आदि प्रमुख हैं।
Human Role in Flood
बाढ़ आने के मानवीय कारकों में:
- भूमि के उपयोग में परिवर्तन और नदियों के प्रवाह को रोकना
- ऊपरी क्षेत्रों में बेहतर प्रवाह पण्राली में कमी और बांधों से पानी को अचानक छोड़ देना-जो नेपाल के कारण-आदि वजहें पैदा होती रहती हैं।
- ही नदियों/नालों में कूड़ा-करकट भर देना भी एक प्रमुख वजह है तो नगरों में बहुत ही खराब सीवर पण्राली का होना। यहां एक चीज बताना बहुत जरूरी है कि पश्चिमी देशों में स्टार्म वाटर कंट्रोल के लिए अलग ड्रेनेज होता है जिसकी हमारे यहां कमी है।
- सीवर पण्राली में अतिक्रमण के चलते शहर की हालत ज्यादा खराब हो जाती है। बिहार की समस्या की असली वजह नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक वष्ा व वनों का विघटन और लोकल बाढ़ की समस्या से खुद को बचाने के लिए पानी छोड़ देना, नदियों व नालों में अतिक्रमण, प्रवाह पण्राली की कमी और समेकित भूमि उपयोग नियोजन की कमी है।
What to be done?
- इसके लिए केंद्र और बिहार सरकार को कई क्षेत्रों में सुधार लाने होंगे। हमें नेपाल से इस संबंध में मॉनसून टाइम में नदी के जल के स्तर को मॉनिटर करने के लिएसंयुक्त मॉनिटरिंग सिस्टम, अधिक से अधिक वन और वनस्पतियों को लगाना, शहरी क्षेत्रों में छोटे-छोटे नालों को अतिक्रमण से बचाना, बाढ़ से सबसे ज्यादा पीड़ित इलाकों के लिए मानचित्र और सुदूर संवेदन पण्राली (रिमोट सेंसिंग) और भौगोलिक सूचना पण्राली आदि का उपयोग करते हुए माइक्रो लेवल पर मानचित्र तैयार करने होंगे, जिनसे पता चल सके कि आधे मीटर नदियों के प्रवाह में कितना क्षेत्रफल प्रभावित होगा?
- एक मीटर जलस्तर उठाने पर इस संबंध में हम टोपोग्राफिकल शीट जिससे धरातल की ऊंचाई का भी पता लग सकता है, लागू कर सकते हैं। लोगों को याद होगा बिहार में कोसी नदी में बहुत भीषण बाढ़ 2008 में आई थी, जो बांध में कटाव से इतना विकराल रूप धारण कर लिया था जिसमें 527 जानें गई थीं। 19 हजार पशुओं की मौत हो गई थी और करीब 2 लाख से ऊपर घरों को नुकसान हुआ जबकि 3 करोड़ से ज्यादा लोग पीड़ित हुए थे। 2017 की बाढ़ में भी 500 से अधिक लोग मर चुके हैं। यदि नियंतण्र स्तर पर डेटा को देखें तो जितने लोग आपदा से पीड़ित होते हैं, उनमें 26 फीसद बाढ़ से होते हैं। और जितनी आपदा घटित होती है उसमें 43 फीसद बाढ़ ही वजह होती है।
- इसके अलावा, हमें मौसम के पूर्वानुमान की सटीक जानकारी में मददगार उपकरणों का इस्तेमाल करना होगा।
- केंद्रीय जल कमीशन की जिम्मेदारी के साथ-साथ जनता में भूमि उपयोग नियोजन को प्रोत्साहित करते हुए नये-नये जीविका के साधनों को भी बताना होगा। जैसे; अधिक जल प्रभावित क्षेत्रों में बांस की खेती को प्रोत्साहित किया जाए। जिससे लोगों को आय के साधन मिल सके।
- इसी तरह मुजफ्फरपुर से दरभंगा का जो लंबा स्ट्रेच है, उस इलाके में मखाना की खेती बड़े पैमाने में होती है। लेकिन बड़ी समस्या उसके प्रसंस्करण की है। इस सुविधा के अभाव में वहां के लोगों की आमदनी पर बुरा असर पड़ता है। सरकार को इस विषय पर संजीदगी से विचार करना चाहिए।
- इसी तरह एक समय बिहार में साठी धान की खेती का अच्छा-खासा चलन था। साठी धान जो 60 दिनों में तैयार हो जाता था। लेकिन पिछले कुछ सालों में इसकी खेती खत्म सी हो गई है। इस पर किसी का भी ध्यान नहीं है। इसकी खेती को एक बार फिर से प्रोत्साहित करने की जरूरत है