- सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य राज्यों से दिल्ली में प्रवेश करने वाले भारी व्यावसायिक वाहनों पर सात सौ रुपए से लेकर तेरह सौ रुपए तक हरित कर लगाने का फैसला सुनाया है।
- इससे पहले राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने भी दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर ऐसा टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा था। इसमें यात्री वाहन, एम्बुलेंस और खाद्य पदार्थ, तेल आदि आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई करने वाले वाहनों को छूट दी गई है।
=>हरित कर क्यों ?
- हरित कर से हर साल करीब पांच सौ करोड़ रुपए राजस्व प्राप्त होगा, जिसे दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण संबंधी उपायों पर खर्च किया जाएगा।
- माना जा रहा है कि हरित टैक्स के प्रावधान से सड़कों पर भीड़भाड़ भी कुछ कम होगी, क्योंकि इन वाहनों को एक विशेष पहचान-पत्र दिया जाएगा, जिसके जरिए वे टोल बूथों पर कतार में खड़े होने के बजाय सीधे निकल सकेंगे।
- दिल्ली के अलावा राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों को भी सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया है कि वे बोर्ड लगा कर वाहनों को वैकल्पिक रास्तों की जानकारी उपलब्ध कराएं।
- हर रोज दूसरे राज्यों से आने वाले हजारों ट्रक दिल्ली के भीतर से होकर गुजरते हैं। इनमें से करीब साठ फीसद ट्रक ऐसे होते हैं, जिन्हें दिल्ली में माल उतारना या लादना नहीं होता, वे दूसरे राज्यों में जाने के लिए इन सड़कों का इस्तेमाल करते हैं।
- इसके चलते दिल्ली की हवा में करीब तीस फीसद प्रदूषण बढ़ जाता है। हरित कर लगने से ऐसे ट्रकों का प्रवेश कम होने की उम्मीद स्वाभाविक है, जो महज हरियाणा और उत्तर प्रदेश के टोल बूथों से बचने के इरादे से दिल्ली की सड़कों का इस्तेमाल करते हैं।
- मगर इन ट्रकों पर नजर रखने की जिम्मेदारी उन्हीं यातायात-पुलिस और नगर निगम कर्मचारियों पर होगी, जो अब तक निगरानी रखते आ रहे हैं। सवाल है कि ऐसे वाहनों को दिल्ली में प्रवेश की इजाजत ही क्यों दी जाती है, जबकि शहर से बाहर-बाहर निकलने वाले मार्ग यानी बाइपास बने हुए हैं।
- छिपी बात नहीं है कि वाहनों की गैर-कानूनी आवाजाही को खुद कई यातायात-पुलिसकर्मी बढ़ावा देते हैं। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय का ताजा निर्देश तब तक ठीक से प्रभावी नहीं हो सकता, जब तक कि यातायात-पुलिस को और जवाबदेह नहीं।
=> कौंधते सवाल :- क्या इस प्रकार के हरित कर आर्थिक विकास को प्रभावित करेंगे ?