क्यों खबरों में
विदेशी निवेशक इस बात को लेकर काफी परेशान हैं कि यूरोपीय संघ के सभी सदस्य देशों के साथ हुई द्विपक्षीय निवेश संरक्षण संधियों को भारत ने एकतरफा ढंग से निरस्त कर दिया है। दरअसल भारत ने 57 देशों को कह दिया है कि वह उनके साथ अपनी निवेश संरक्षण संधियों को निरस्त करने या नवीनीकरण नहीं करने जा रहा है।
हाल ही में FDI की तादाद भारत में
- पिछले दो वर्षों में भारत में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। वर्ष 2014-15 में एफडीआई प्रवाह 25 फीसदी बढ़कर 45 अरब डॉलर पर पहुंच गया। उसके अगले वित्त वर्ष में एफडीआई प्रवाह 22 फीसदी की तेजी हासिल करते हुए 55 अरब डॉलर के आंकड़े तक पहुंच गया।
- मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भी एफडीआई प्रवाह तेज रहा है लेकिन 19 फीसदी की वृद्धि दर तुलनात्मक रूप से कम लग सकती है। गत वित्त वर्ष की पहली छमाही में भारत में 24.4 अरब डॉलर का विदेशी निवेश हुआ था जो 2016-17 की समान अवधि में बढ़कर 29 अरब डॉलर हो गया है।
- विदेशी निवेश के मोर्चे पर एक और अहम प्रगति यह है कि कुल एफडीआई में पुनर्निवेशित अर्जन का हिस्सा लगातार कम हुआ है। दूसरे शब्दों में कहें तो अब भारत में एफडीआई की अधिक मात्रा या तो नए निवेश के रूप में आ रही है या वर्तमान कंपनियों में शेयरों का अधिग्रहण करके आ रही है।
- विदेशी निवेशकों के पुनर्निवेशित अर्जन की मात्रा चार साल पहले कुल एफडीआई का 28 फीसदी हुआ करती थी लेकिन आज यह मात्रा घटकर 18 फीसदी पर आ गई है।
भारत की और से नियमो की समीक्षा
- भारत की दुनिया के 25 अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय निवेश संधि है जिसकी अवधि अगले साल खत्म हो रही है। भारत इन संधियों के विभिन्न प्रावधानों की समीक्षा कर रहा है ताकि उन्हें निवेश संरक्षण समझौतों के नए नियमों के मुताबिक ढाला जा सके।
- भारत इन देशों के साथ नई निवेश संरक्षण संधियां करना चाहता है।
- इस तरह की संधि का एक आदर्श प्रारूप वर्ष 2015 में तैयार किया गया था जिसमें भारत की घरेलू निवेश नीतियों को वैश्विक निवेश परिस्थितियों के अनुकूल बनाने की बात कही गई है।
- संधि के प्रारूप में इस बात के पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए गए हैं कि विदेशी निवेशक किसी विवाद की स्थिति में मुआवजे के लिए भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय पंचाट में आसानी से न घसीट पाएं।
सरकार का तर्क नई निति के लिए
- सरकार का तर्क है कि भारत विदेशी निवेश के लिहाज से अब भी आकर्षक विकल्प बना हुआ है लिहाजा यह आशंका गलत है कि प्रस्तावित निवेश संरक्षण संधि से विदेशी निवेश बाधित होगा।
- सरकार का यह भी कहना है कि मौजूदा संधियों में निहित मध्यस्थता प्रक्रिया भारत या भारतीय पक्ष को लेकर प्राय: पूर्वाग्रह ग्रस्त होती है। अधिकांश मौकों पर भारत को विवाद निपटान के लिए बने मध्यस्थता मंचों पर मुंह की खानी पड़ी है।
- दरअसल ये मध्यस्थता मंच चुनींदा देशों के बंद समूह के रूप में काम करते हैं और फैसला करते समय भारत के पक्ष को गंभीरता से नहीं लिया जाता है।
- वैसे भारत इकलौता देश नहीं है जिसने एकतरफा ढंग से निवेश संरक्षण संधियों का रद्द कर दिया है। इसके पहले ब्राजील और इंडोनेशिया भी इसी तरह का कदम उठा चुके हैं। यहां तक कि कई विकासशील देशों ने भी इन संधियों को रद्द करने संबंधी भारत की मंशा पर अनुकूल राय जाहिर की है।
How developed world is looking this decision:
विकसित देशों को भारत का यह फैसला काफी नागवार गुजरा है। यूरोपीय संघ शिद्दत से चाहता है कि भारत के साथ एक विधिवत निवेश संरक्षण संधि की जाए। यूरोपीय संघ की इच्छा है कि भारत के साथ विदेश व्यापार समझौते को लेकर चल रही बातचीत में आधुनिक निवेश संरक्षण संधि के मुद्दे को तरजीह दी जाए और इस बारे में जल्द ही कोई फैसला कर लिया जाए।
- भारत सरकार की दलील है कि विदेशी निवेशक किसी गड़बड़ी की सूरत में भारतीय अदालतों का रुख कर सकते हैं लेकिन विदेशी निवेशकों को आश्वस्त करने के लिए यह नाकाफी है। भारतीय न्याय व्यवस्था काफी सुदृढ़ है लेकिन लंबित मामलों पर फैसला आने में लगने वाला लंबा वक्त विदेशी निवेशकों की चिंता बढ़ा रहा है।
- उनका मानना है कि अगर भारतीय अदालतों के भरोसे रहे तो देरी के चलते उनके कारोबार को काफी नुकसान हो सकता है।
What can be solution:
- द्विपक्षीय निवेश संरक्षण संधियों को तभी निरस्त किया जाए जब इससे संबंधित नए समझौते को अंतिम रूप दे दिया जाए।
- निवेश संरक्षण कानून को लेकर रिक्तता की स्थिति होने पर निवेश की मंशा रखने वाले विदेशी निवेशक भी भड़क सकते हैं।
- संभव है कि ऐसी संधि की गैरमौजूदगी का बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर खास असर न पड़े लेकिन इससे अनिश्चितताओं में बढ़ोतरी हो सकती है। निवेश संरक्षण संधि न होने से मझोले और छोटे स्तर की विदेशी कंपनी भारत में निवेश करने से परहेज कर सकती है।
- भारत सरकार को इन मुद्दों पर यूरोपीय देशों और अन्य विकसित देशों से बातचीत करनी चाहिए ताकि विदेशी निवेशकों की चिंताओं को दूर करने के तरीके तलाशे जा सकें।
- एफडीआई का निर्बाध प्रवाह बने रहने के लिए विदेशी निवेशकों को आश्वस्त करना जरूरी है। भले ही
- भारत में एफडीआई के लिए माहौल अभी अनुकूल है लेकिन इसे बदलने में देर नहीं लगती है। इसके लिए आवश्यक है कि भारत सरकार विदेशी निवेशकों और उनके प्रतिनिधियों के साथ लगातार संपर्क कायम रखे और उनकी चिंताओं को दूर करे।
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