#Rastriya_Sahara
Growing trade deficit with China is concern and India should take urgent measures to contain it. It should pressurized China for easing restriction
चीन से बढ़ते हुए आयात को नियंत्रित करने के लिए और चीन को निर्यात बढ़ाने की डगर पर भारत को बिना रुके आगे बढ़ना जरूरी है। जहां भारत से चीन को किए जा रहे निर्यात लगातार घट रहे हैं, वहीं चीन से आयात लगातार छलांगे ले रहा है।
How much trade deficit with China
- नवीनतम आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016-17 में भारत-चीन व्यापार 71.47 अरब डॉलर का रहा।
- चीन को भारत से 10.19 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात किए गए, जबकि चीन से आयात का मूल्य 61.28 अरब डॉलर रहा।
- व्यापार घाटा 47.68 अरब डॉलर का रहा। यानी चीन ने भारत को पांच गुना अधिक निर्यात किए।
दोनों देशों के बीच विदेश व्यापार लगातार बढ़ रहा है। लेकिन तीन वर्षो में चीन से आयात लगातार बढ़े हैं और चीन को भारत से निर्यात लगातार घटे हैं। साथ-साथ व्यापार घाटा भी वर्ष-प्रतिवर्ष बढ़ता गया है। केवल पिछले वर्ष 2016-17 में भारत में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की नीति से व्यापार घाटे में नगण्य कमी दिखाई दी है।
- चीन ने भारत के साथ वर्ष 2019 तक व्यापार संतुलन के लिए समझौता किया था परंतु वह हवा-हवाई हो गया है।
- यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चीन से कुछ आयात नियंतण्रका सफल प्रयोग पिछले वर्ष 2016-17 में दिखाई दे चुका है।
Is boycotting Chinese product an option
- वस्तुत: अक्टूबर 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद चीन के द्वारा पाकिस्तान का साथ दिए जाने के कारण चीनी माल का बहिष्कार भारत के उपभोक्ताओं द्वारा उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण कदम सिद्ध हुआ है।
- पिछले वर्ष दशहरा-दीवाली के त्योहार के दिनों में भारतीय बाजारों में चीनी सामान की बिक्री में 30 से 40 फीसद की कमी आई थी।
- चूंकि देश के प्रति चीन के द्वारा अपशब्दों का प्रयोग किया गया था, उसे न केवल सरकार के द्वारा वरन प्रत्येक भारतीय के द्वारा एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और बड़े पैमाने पर चीनी सामान के बहिष्कार के लिए जनजागृति दिखाई दी। इसका स्पष्ट प्रभाव भारत में चीन से होने वाले आयात पर दिखा।
- ऐसे में यदि भारत चीनी माल का बहिष्कार करता है, तो चीनी अर्थव्यवस्था को नया झटका जरूर लगेगा। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि चीन भारत में निर्यात बढ़ाने के हरसंभव प्रयास कर रहा है।
Importance of India for China
- चीन के लिए भारतीय बाजार अहम है।
- चीन ने वर्ष 2015 के बाद से अब तक अपनी करेंसी युआन के मूल्य में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारी कमी की है। इससे चीन के निर्यातकों को फायदा हो रहा है।
- चीन की मुद्रा सस्ती होने से वहां से भारत में आयात किया गया हर सामान सस्ता हुआ है। भारत में सस्ते चीनी सामान की आवक तेजी से बढ़ी है।
- चाहे चीनी उत्पादों की गुणवत्ता पर सवाल हों, मगर यह निर्विवाद है कि वे सस्ते होते हैं। भारत के कई उद्योग भी कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर हैं।
- देश के कोने-कोने में भारतीय बाजारों में चीन में उत्पादित वस्तुओं का ढेर लग गया है। चाइनीज विद्युत बल्ब झालर, चाइनीज रेडिमेड वस्त्र, चाइनीज खिलौने, चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद और तरह-तरह के कई चीनी उत्पाद भारतीय उद्योगों पर बुरा असर डालते हुए दिखाई दे रहे हैं।
इसमें कोई शक नहीं है कि भारत में चीन से होने वाले निवेश में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में चीन के लिए भारतीय बाजार की अहमियत स्पष्ट दिखाई दे रही है। चूंकि भारत व चीन दोनों विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य हैं। ऐसे में भारत डब्ल्यूटीओ के नियमों के तहत चीनी माल पर टैरिफ या गैरशुल्कीय प्रतिबंध लगाकर चीनी माल को रोक नहीं सकता है। लेकिन डब्ल्यूटीओ के नियमों का हवाला देते हुए चीन ने बोवाइन मीट, फल, सब्जियों, बासमती चावल और कच्चे पदार्थो के भारत से आयात पर बाधाएं उत्पन्न की हैं। ऐेसे में भारत द्वारा भी चीन के लागत से कम मूल्य पर माल भेजकर भारत के बाजार पर कब्जा करने का आधार देकर चीन के कई तरह के माल पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाकर उन्हें हतोत्साहित करना होगा। इसके साथ-साथ देश के करोड़ों उपभोक्ताओं का दायित्व है कि वे स्वेच्छा से स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग और उपभोग को बढ़ाएं ताकि चीन से बढ़ते हुए आयात नियंत्रित हो सकें और भारत के विदेश व्यापार का असंतुलन कम हो।