सामाजिक उद्यमशीलता :सामाजिक समस्या, आर्थिक असमानता को सुलझाने का विचार

- सामाजिक उद्यमशीलता यानी किसी सामाजिक समस्या को सुलझाने के लिए ऐसा विचार या कारोबारी मॉडल तैयार करना जिससे दोनों पक्षों का कल्याण हो।

  • सामाजिक उद्यमशीलता यानी किसी सामाजिक समस्या को सुलझाने के लिए ऐसा विचार या कारोबारी मॉडल तैयार करना जिससे दोनों पक्षों का कल्याण हो। भारतीय संदर्भों में यह शब्द नया नहीं हैं। पुरातन काल से यहां के महापुरुषों द्वारा सामाजिक उद्यमशीलता के उत्कृष्ट मानदंड स्थापित करने की रीति रही है।
  • गुरुकुल प्रणाली से लेकर वैद्यराज विधा तक इसके अप्रतिम उदाहरण हैं। कालांतर में महात्मा गांधी, विनोबा भावे जैसे महापुरुषों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। वर्गीज कुरियन और बाबा आम्टे जैसे शख्सियतों ने इसे बुलंदियों पर पहुंचाया।
  • आज फिर नई पीढ़ी अपने हुनर, नवोन्मेषी क्षमता और तकनीकी ज्ञान से सामाजिक उद्यमिता को पाल-पोस रही है। ये समाज सेवा से इतर अपने कारोबारी मॉडल द्वारा ऐसी जनसेवा कर रहे हैं जिसमें मुनाफा इनकी पहचान नहीं है, बल्कि ये समाज की किसी समस्या को दुरुस्त करने के लिए जाने जाते हैं। तेजी से मगर असमान विकास कर रहे भारत जैसे देश में समावेशी विकास की यही कुंजी है।

 

- आज भी देश की आबादी का 60 फीसद हिस्सा रोजाना 2 डॉलर (करीब 130 रुपये) पर आश्रित है। निम्न-मध्य आय समूह वाले 34 देशों की सूची में कुल आय असमानता के लिहाज से भारत शीर्ष दूसरे स्थान पर काबिज है।

- देश तेजी से भले ही विकास कर रहा हो, लोगों की असमान समृद्धि के चलते स्वस्थ जीडीपी विकास को बरकरार रख पाना बड़ी चुनौती है।

- इसके लिए ढ़ांचागत बदलाव और तेज विकास वाले मानव पूंजी जैसे क्षेत्र में निवेश की दरकार है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सभी लोगों को समुचित पोषण, शिक्षा, ऊर्जा, आय, रोजगार और उद्यमशीलता के मौके मिल सकें।

- सामाजिक उद्यमशीलता ही वह गुण है जिसके माध्यम से बुनियादी सेवाओं और मौकों को कुशलतम और प्रभावी रूप से देश को हासिल कराया जा सकता है।

- यही वह विधा है जिससे नवोन्मेषी, कम लागत और तकनीक से प्रेरित ऐसे कारोबारी मॉडल विकसित किए जा सकते हैं जिससे वंचित वर्ग को व्यापक रूप में साधन और सुविधाएं मुहैया हो सकें। ऐसे में देश की सामाजिक उद्यमिता पर संभावनाओं की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

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