फसल अवशिष्ट दहन को हाल में भारतीय महानगरो में प्रदूषण वृद्धि के कारको के रूप में स्वीकार किया गया हैं। नवम्बर - दिसम्बर के समय वायु दाब अधिक होने से दहन से प्राप्त प्रदूषकों का संकेन्द्रण एक ही जगह होता रहता हैं , जो समस्या को और भी बढ़ाता हैं। यद्यपि इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव दिल्ली में होता हैं , लेकिन नीचे का मानचित्र दर्शाता हैं यह पूरे भारत की समस्या हैं।
इसके समाधान के लिए, फसल अवशिष्ट को हमें " संसाधन " के रूप में देखना चाहिए। इसके लिए निम्न बिंदु विचारणीय हैं -
१. चारागाह तथा चारा अनुसंधान संस्थान के अनुसार भारत चारा की कमी से जूझ रहा हैं , फसल उपरांत बचे शेष का उपयोग इसमें किया जाना चाहिए। सरकार पंजाब, हरियाणा से प्राप्त फसल शेष को तेलंगाना , विदर्भ , बुंदेलखंड जैसे चारा कमी वाले क्षेत्रो में भेज कर संतुलन बना सकती हैं।
२. भारतीय कृषि तथा अनुसंधान संस्थान ने " फसल अवशिष्ट उपयोग मार्गदर्शी सिद्धांत " में फसल शेष का उपयोग " जैव ऊर्जा " के निर्माण में करने को अत्यंत व्यावहारिक बताया हैं। सरकार ऐसे क्षेत्रो में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देकर , चारा संग्रहण जैसे आधारसंरचना उपलब्ब्ध करवाकर फसल शेष के शानदार उपयोग को बढ़ा सकती हैं।
३. उत्तर पूर्वी भारत में फसल शेष का उपयोग , मशरूम की खेती में किया जा सकता हैं।
४. फसल शेष का उपयोग , फसल काटने उपरांत खेतो को ढक कर रखने में जिससे मृदा की गुणवत्ता में वृद्धि होती हैं , में किया जा सकता हैं।
वास्तव में फसल शेष कोई समस्या नहीं हैं , यह एक अवसर हैं , जो ऊर्जा और चारा की कमी की समस्या को कम कर सकता हैं, यह किसानों के लिए अतिरिक्त आय का साधन हो सकता हैं । केवल कुछ शुरुआती कार्यो से इसको अवसर में बदला जा सकता हैं।
साभार : स्नेह दीप