सौर ऊर्जा को सुलभ बनाने, इस क्षेत्र में पारदर्शिता लाने और दर-आधारित प्रतिस्पर्धात्मक नीलामी प्रक्रिया के जोखिम को कम करने लिये नये दिशा-निर्देश

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने ग्रिड से संयोजित सौर ऊर्जा आधारित बिजलीघरों से बिजली खरीदने के लिये दर-आधारित प्रतिस्पर्धात्मक नीलामी प्रक्रिया के नये दिशा-निर्देस जारी किये हैं। ये दिशा-निर्देश विद्युत कानून, 2003 के अनुच्छेद 63 के अन्तर्गत प्रतिस्पर्धा आधारित नीलामी प्रक्रिया के जरिये बिजली की दीर्घकालीन खरीद के लिये क्रेताओं [वितरण अनुज्ञप्ति धारक अथवा उसके अधिकृत प्रतिनिधियों अथवा मध्यस्थ क्रेता] से ऐसे ग्रिड से संयोजित सौर ऊर्जा बिजलीघरों (प्रोजेक्ट्स) जिनकी क्षमता 5 मेगावाट या अधिक हो।

इन दिशा-निर्देशों के अनुसार महत्वपूर्ण सुधार निम्नलिखित हैं:

i. खरीद के जोखिमों को कम करने के लिये उत्पादन के दौरान आने वाली अड़चनों के लिये उत्पादन क्षतिपूर्ति: सौर बिजली घरों के 'अनिवार्य रूप से काम करने' की स्थिति पर जोर दिया गया है। उत्पादन क्षतिपूर्ति का प्रावधान खरीद में आने वाली निम्नलिखित अड़चनों के लिये किया गया है।:

a) बैक-डॉउन - पीपीए टैरिफ का न्यूनतम 50%

b) ग्रिड की अनुपलब्धता - अतिरिक्त उत्पादन की खरीद के जरिये क्षतिपूर्ति/त्वरित क्षतिपूर्ति।

ii. पीपीए: दर कम रखने को सुनिश्चित करने के लिये बिजली खरीद समझौते की न्यूनतम अवधि 25 वर्ष रखी गयी है। बिजली खरीद समझौते को एक तरफा समाप्त करने या बदलने की अनुमति नहीं है।

iii. परियोजना को तैयार करने और बिजली घरों की स्थापना को सुविधाजनक बनाने के लिये: भूमि से जुड़े मुद्दों, यातायात की सुगमता, मंजूरियों और देरी होने की दिशा में अतिरिक्त समय दिये जाने की व्यवस्था को सुव्यवस्थित किया गया है।

iv. असफल रहने पर उसके परिणामों की सुस्पष्ट व्याख्या की गयी है ताकि जोखिम को उत्पादनकर्ता और क्रेता के बीच समुचित रूप से बांटा जा सके। इसके लिये उत्पादन एवं क्रय से संबंधित असफलताओं एवं उसके परिणामों को सुस्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।

v. अनुबंध समाप्त होने जाने की दशा में मिलने वाले मुआवजे के जरिये मनमाने तरीके से अनुबंध समाप्त किये जाने की दशा में उत्पादक और ऋण-प्रदाता के निवेश की सुरक्षा कर बैंकों में परियोजनाओं की स्वीकार्यता बढ़ाना। उत्पादक और क्रेता दोनों में से किसी के असफल होने की वजह से अनुबंध खत्म किये जाने पर मिलने वाले मुआवजे की मात्रा और प्रक्रियाओं की सुस्पष्ट ढंग से परिभाषित किया गया है।

vi. भुगतान सुरक्षा व्यवस्था: लेटर ऑफ क्रेडिट (एलसी), भुगतान सुरक्षा कोष, संप्रभु गारंटी आदि के जरिये क्रेता द्वारा उत्पादक को भुगतान में विलंब होने अथवा भुगतान नहीं किये जाने की दशा में उत्पादक के राजस्व के अवरुद्ध होने के जोखिम की समस्या का समाधान किया गया है।

vii. कानून में बदलाव संबंधी प्रावधान के जरिये उत्पादक, क्रेता और निवेशक/कर्जदाता को सुस्पष्टता एवं सुनिश्चितता प्रदान करना। कानून में बदलाव संबंधी प्रावधान मुहैया कराया गया है जो कि बोली लगाये जाने की तिथि से लागू होगा जिसके दायरे में ऐसे सभी कानूनी बदलाव/करों की दर में ऐसे सभी बदलाव (केवल ऐसे ही कर नहीं जो केवल बिजली की आपूर्ति से संबंधित हों) जिसका सीधा प्रभाव परियोजना पर हो।

viii. परियोजनाओं को शीघ्रता से पूरा करने के लिये उनका जल्दी चालू किया जाना एवं चरणों में चालू किया जाना। शीघ्रता से चालू करना एवं चरणों में चालू करने को केवल अनुमति प्रदान की गयी है बल्कि चालू करने की नियत तारीख से 25 वर्ष के लिये बिजली खरीद समझौते की अनुमति देकर इसको प्रोत्साहित भी किया गया है।

ix. जुर्माने को सुसंगत बनाना: जुर्मानों को सुसंगत बनाया गया है ताकि उत्पादक की सकल लागत को कम किया जा सके साथ ही योजना के दिशा-निर्देशों और परियोजना को लागू करने की तारीख का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।

x. रिपॉवरिंग: उत्पादक अपने बिजली घरों को रि-पावर करने के लिये स्वतंत्र हैं लेकिन क्रेता पीपीए अनुबंध में उल्लिखित सीयूएफ सीमा के अनुसार ही बिजली खरीदने के लिये बाध्य होंगे।

xi. नीलामी की प्रक्रिया एवं उसका ढांचा: नीलामी दोनों तरीकों - मेगावाट (MW) और किलोवाट घंटे (kWh) के तरीके से लगायी जा सकती है। साथ ही पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये -नीलामी पर बल दिया गया है।

संक्षेप में, सौर ऊर्जा की खरीद के लिये दर-आधारित प्रतिस्पर्धात्मक नीलामी प्रक्रिया के नये दिशा-निर्देश खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं निष्पक्षता को बढ़ावा देंगे साथ ही सस्ती बिजली के जरिये उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करेंगे। ये दिशा-निर्देश कामकाज में एकरूपता और मानकता लायेंगे साथ ही सौर ऊर्जा आधारित बिजली खरों से बिजली की खरीद में सभी संबंद्ध पक्षों के बीच जोखिम के बंटवारे के लिये ढांचा भी मुहैया करायेंगे। यह बिजली क्रेताओं के जोखिम को कम करने में मदद करेंगे ताकि इस क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके, परियोजनाओं को बैंकों के लिये आकर्षक बनाया जा सके और निवेशकर्ताओं के लाभ को बढ़ाया जा सके

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