वनाग्नि कहाँ कहाँ
- वनाग्नि से उत्तराखंड के जंगल तो धधक ही रहे हैं जो अभी की headlines बने हुए है
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) और आर्यभट्ट प्रेक्षण शोध संस्थान (एरीज) के अध्ययनों से पता चलता है कि जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर राज्यों तक देश के उत्तरी हिस्सों के जंगल आग की चपेट में है
उत्तराखंड के जंगल और आग
उत्तराखंड में पैंतालीस हजार हेक्टेयर भूमि पर चीड़ के जंगल हैं, यह पेड़ आग को फैलाने में काफी मददगार होते हैं। मार्च से लेकर जून तक चीड़ के पेड़ से नुकीली गुच्छेदार पत्तियां (पिरुल) गिरती हैं। भारतीय वन संस्थान के अध्ययन के मुताबिक, एक हेक्टेअर क्षेत्र में फैले चीड़ के पेड़ों से साल भर में सात टन पिरुल गिरती हैं। चीड़ के जंगलों में मिश्रित वनों की तुलना में बहुत कम नमी होती है। इसलिए भी इन जंगलों में आग तेजी से फैलती है
आग का दुष्प्रभाव
- आग के जलने से उत्पन ब्लैक कार्बन ग्लेशियरों तक पहुंच चुका है। हिमनद विशेषज्ञ बताते हैं कि इससे ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ेगी और पूरा जल-चक्र प्रभावित होगा
- इस वनाग्नि से उत्तर भारत के तेरह राज्यों में आग की लपटें और वायुमंडल में धुंध व धुएं की गहरी चादर साफ दिख रही है, जो अपने आप में खतरनाक संकेत है। वायुमंडल में धुंध से राज्यों के बाशिंदों के स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा, इससे सांस लेने में परेशानी हो सकती है
- वनाग्नि के कारण उत्तर भारत के तापमान में करीब 0.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है जिसका असर अगले मानसून पर भी पड़ने का अंदेशा है।
- जंगलों में आग के असर से वायुमंडल में 1 से 12 फीसद तक प्रदूषण बढ़ा है।
- भूजल का स्तर प्रभावित होगा: आग से जमीन में दरारें बंद हो जाती हैं। बारिश के पानी को सोखने की क्षमता वाली वनस्पतियां व घास जलने से पानी जमीन के भीतर नहीं जा पाता है। इससे जल-स्रोत के सूखने का खतरा बढ़ जाता है
- उपजाऊ मिट्टी का कटाव : हर साल औसतन छह हजार से नौ हजार हेक्टेअर वन जले हैं। इससे उपजाऊ मिट्टी का कटाव तेजी से होता है, साथ ही जल संभरण का काम भी प्रभावित होता है।
- जंगलों में आग लगने से पेड़-पौधों समेत जीव-जंतु व पशु-पक्षी सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। आग से पक्षियों के जान गंवाने के साथ ही साथ उनके अंडों को भी क्षति पहुंचती है।
आग व इंसान: उत्तराखंड ही नहीं, देश के अन्य राज्यों के जंगलों में भी अमूमन आग के मामलों में कुदरत के बजाय इंसानी हरकतें ज्यादा देखी गई हैं।
- उत्तराखंड व असम जैसे राज्यों में नए कृषिक्षेत्रों के निर्माण, नई घास उगने, पेड़ काट कर उसके निशान मिटाने के मकसद से लोग जंगलों में आग लगा देते हैं।
- झारखंड और छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता तोड़ने व महुआ चुनने के चक्कर में जंगलों में आग लगाई जाती है जिसका असर जंगली वृक्षों के साथ ही विभिन्न प्रकार की औषधीय पौधों तथा जड़ी-बूटियों पर भी पड़ता है।
आग को रोकने की दिशा में खामियाँ
- मार्च से लेकर जून के अंतिम सप्ताह तक का समय वनाग्नि काल कहलाता है। विशेषकर पर्वतीय राज्यों में साठ से सत्तर फीसद हिस्से में वन हैं। लेकिन अब तक किसी भी राज्य में स्वत: सूचना प्रणाली विकसित नहीं हो पाई है, ताकि उपग्रह के जरिये सूचना ‘फॉरेस्ट सर्वे आॅफ इंडिया’ के साथ ही वन विभाग तक पहुंचाई जा सके।
- पर्वतीय राज्यों के वनक्षेत्रों के तीस फीसद हिस्से में आग बुझाने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है।
आरपी खोसला समिति के सुझाव: वर्ष 1995 में उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश में भयंकर आग लगी। उसके बाद केंद्र सरकार ने आरपी खोसला समिति गठित की। समिति ने कई महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए जैसे :
- गलों में पर्याप्त कर्मचारियों की नियुक्ति
- धन की कमी को कम करना
- चीड़ की सुई जैसी पत्तियों के वैकल्पिक प्रयोग का बढ़ावा दिया जाना
- वनक्षेत्र के इर्दगिर्द कम से कम पचास हजार लीटर की क्षमता वाले टैंकों का निर्माण
- अत्याधुनिक उपकरणों की व्यवस्था, सेटेलाइट फोन की व्यवस्था
- वाहनों की कमी को दूर करने और मृत शाखाओं को गर्मियों के दिनों में काटना
- सुझावों में खास बात यह रही कि आग बुझाने के लिए स्थानीय लोग आएं या न आएं, जंगल से लकड़ी लेने का उनका अधिकार बना रहना चाहिए।
लेकिन अन्य समितियों की तरह इस समिति के सुझाव भी ठंडे बस्ते में डाल दिए गए।
आवश्यकता
- देश में बानवे फीसद से अधिक वनक्षेत्र सरकार के नियंत्रण में हैं इसलिए वन आग प्रबंधन योजना शुरू करने की जरूरत है। राष्ट्रीय वन नीति में भी इस बात का जिक्र है कि वनों की सुरक्षा के लिए अत्याधुनिक उपकरण लगाए जाएं। इसके अलावा जंगल में आग लगने की घटनाओं का ब्योरा व अन्य आकलन स्पष्ट होना चाहिए।
- वन रक्षक (फॉरेस्ट गार्ड) को विशेष प्रशिक्षण
- अमेरिका व आस्ट्रेलिया के जंगलों में भी आग लगने की घटनाएं होती हैं। लेकिन वहां रोजाना ताजातरीन स्थिति की सूचना सरकारी वेबसाइट पर देने के अलावा मौसम विज्ञान ब्यूरो की तरफ से घटते-बढ़ते तापमान, हवा की गति और आर्द्रता में कमी के बारे में नियमित रूप से जानकारी मुहैया कराई जाती है। भारत में भी आस्ट्रेलिया व अमेरिका की तर्ज पर अग्निशमन की व्यवस्था लागू करने की आवश्यकता है