- भारत सहित 171 देशों ने पेरिस जलवायु संधि पर हस्ताक्षर किए
- वैश्विक संगठन के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी संधि पर पहले ही दिन इतने सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किया है। इससे पहले 1982 में 119 देशों ने ‘लॉ ऑफ द सी कन्वेंशन’ पर दस्तख्त किए थे।
पेरिस जलवायु संधि कुछ ध्यान देने योग्य बिंदु
- पेरिस का घोषित लक्ष्य ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है।
- समझौता 2020 से लागू होगा और यह अमीर और गरीब देशों के बीच इस बारे में दशकों से जारी गतिरोध को समाप्त करता है कि ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए प्रयासों को आगे कैसे आगे बढ़ाना है जिस पर अरबों डॉलर खर्च होने हैं तथा अभी से सामने आने वाले दुष्परिणामों से कैसे निपटना है।
- वित्तपोषण मुद्दे पर विकसित देश 2020 से विकासशील देशों की मदद करने के लिए प्रतिवर्ष कम से कम 100 अरब डॉलर जुटाने पर सहमत हुए पर यह बाध्य नहीं है
विश्लेषण
- पेरिस में हुई संधि किसी पर कुछ करने की जिम्मेदारी नहीं देती. किसी खास तारीख पर जीवाश्म ऊर्जा का इस्तेमाल बंद करना तय नहीं किया गया है.
- कोयला और तेल जलाने वाले देशों के लिए कोई सजा तय नहीं की गई है, क्योंकि वे या तो अपने लोगों का जीवनस्तर बनाए रखना चाहते हैं या उसे बेहतर बनाना चाहते हैं.
- संधि पर दस्तखत करने वालों ने उत्सर्जन करने, अपना लक्ष्य तय करने और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने का संकल्प लिया है. लेकिन इसकी निगरानी कोई नहीं करेगा, किसी को संधि को नजरअंदाज करने की सजा नहीं मिलेगी.
- कमजोर और देश पर दबाव बढ़ाने वाला करार: पेरिस संधि ने जहां विकसित देशों को अपनी मर्जी के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन में कटौती की छूट दी है, वहीं भारत और उसकी तरह दूसरे विकासशील देशों पर इससे दबाव बढ़ेगा. भारत के कई हिस्से जलवायु परिवर्तन के चलते समुद्र के गर्भ में समा रहे हैं. सुंदरबन जैसे इलाकों में इसका असर साफ देखने को मिल रहा है.
- यध्यपि विकसित देश 2020 से लिए प्रतिवर्ष कम से कम 100 अरब डॉलर जुटाने पर सहमत हुए पर यह धन राशी मिथ्या है. क्योंकि इस धन राशी का स्वरूप तय नहीं है. मिसाल के तौर पर अमीर देश विकास के लिए दिए जा रहे पहले से दी जा रहे सहायता अनुदान को जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए दिया धन बता कर अपनी जिम्मेदारी से हाथ धो सकते हैं.