- - पेट्रोलियम आयात पर निर्भरता खत्म करने तथा किसानों को गन्ने का उचित मूल्य दिलाने के इरादे से सरकार ने 2003 में गन्ने के शीरे से एथनॉल बनाने का कार्यक्रम प्रारंभ किया था।
=> एथनॉल मिश्रण कार्यक्रम के उद्देश्य हैं:-
1. आयात घटाना,
2. विदेशी मुद्रा बचाना
3. किसानों को गन्ने का सही दाम मिलें ,
4. पर्यावरण संरक्षण
5. रोजगार का सृजन।
- एथनॉल उत्पादन में गेहूं व धान की भूसी तथा लकड़ी की छीलन के उपयोग की अनुमति से आने वाले वर्षों में पेट्रोल में 10 फीसद या इससे भी ज्यादा एथनॉल मिलाना संभव होगा।
** पेट्रोल- डीजल में अखाद्य तेल मिलाकर बायो डीजल तैयार करने का लक्ष्य भी इसी साल हासिल किए जाने की उम्मीद है। अब तक 11 करोड़ लीटर बायो डीजल तैयार करने के अनुबंध हो चुके हैं।
- वैसे तो पेट्रोल में केवल पांच फीसद एथनॉल मिलाने की अनिवार्यता है। परंतु कार्यक्रम का लक्ष्य इसे दस फीसद तक पहुंचाना है। इसके लिए एथनॉल का खरीद मूल्य बढ़ाकर 48.5-49.5 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया है।
** भारत में 2800 करोड़ लीटर पेट्रोल की खपत होती है। इसमें 10 फीसद एथनॉल मिलाने के लिए 280 करोड़ लीटर एथनॉल की जरूरत होगी।
- उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे चीनी उत्पादक राज्यों में 9 फीसद तक एथनॉल मिश्रण हो सकता है। अब तो ऐसी तकनीक भी उपलब्ध है जिससे पेट्रोल में 15-20 फीसद तक एथनॉल मिलाना संभव है।
- मिश्रण प्रतिशत बढ़ाने के लिए सरकार ने अब गन्ने की खोई तथा धान, गेहूं व कपास के भूसे तथा लकड़ी, बांस की छीलन से बनने वाले लिग्नो सेल्युलोज एथनॉल के इस्तेमाल की अनुमति दी है।
**एक अनुमान के अनुसार 12-16 करोड़ टन अतिरिक्त बायो मास के जरिए 2500-3000 करोड़ लीटर एथनॉल का सालाना उत्पादन संभव होगा।
* लिग्नो सेल्युलोज का इस्तेमाल इसलिए जरूरी माना गया है क्योंकि 2022 तक पेट्रोल की मांग 4404 करोड़ लीटर तक पहुंच जाने की संभावना है, जिसके लिए 330 करोड़ लीटर एथनॉल की आवश्यकता होगी।