गंगा में प्रदुषण के कारण व उसके निवारण के उपाय

गंगा को साफ़ करने का इतिहास:

  • निर्मल गंगा के संकल्प ने ठीक 30 साल पहले ‘गंगा एक्शन प्लान’ के रूप में मूर्त रूप लिया था
  • गंगा एक्शन प्लान के रूप में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 14 जून 1986 को वाराणसी में गंगा को निर्मल बनाने के लिए इस प्लान  की शुरुआत की थी।ganga history

पुराने कार्यक्रमों से सीख

वर्तमान केंद्र सरकार ने गंगा के लिए अलग मंत्रलय के गठन और 20 हजार करोड़ की बड़ी धनराशि का नियोजन करते हुए गंगा निर्मलीकरण के कार्यो और परियोजनाओं को नए सिरे से नमामि गंगे के प्रारूप में पुनर्जीवित किया है, किंतु गंगा एक्शन प्लान की विफलता की समीक्षा कर और इससे सीख लेकर आगे बढ़ने का प्रश्न आज सबसे बड़ा प्रश्न है। करोड़ों की राशि बहाने और इसकी बंदरबांट के बाद भी गंगा की सफाई का निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका

गंगा एक्शन प्लान का एक अवलोकन :

प्लान के प्रथम चरण की समाप्ति के बाद भी गंगा जल की गुणवत्ता में खास परिवर्तन न दिखाई पड़ने का प्रमुख कारण इसमें प्रयुक्त प्रौद्योगिकी का जटिल होना था। जनजागरूकता का अभाव भी प्रमुख कारण था। 

गंगा में प्रदुषण के कारण

  • गंगा अपनी धारा के साथ मिट्टी ढोने वाली विश्व की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। यह मिट्टी ही नहीं, औद्योगिक कचरा और सीवेज भी अपनी धारा में समेटने को बाध्य है। 
  • गंगा के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है कल-कारखानों के जहरीले रसायनों को नदी में बिना रोक-टोक के गिराया जाना।  साढ़े सात सौ से अधिक प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषण आज भी गंगा में मिल रहा है
  • जब कल-कारखानों या थर्मल पावर स्टेशनों का गर्म पानी तथा रसायन या काला या रंगीन एफ्लुएंट नदी में जाता है, तो नदी के पानी को जहरीला बनाने के साथ-साथ नदी के स्वयं के शुद्धिकरण की क्षमता को भी नष्ट कर देता है। नदी में मौजूद बहुत-सी सूक्ष्म वनस्पतियां और जीव-जंतु भी सफाई में मदद करते हैं। लेकिन उद्योगों के प्रदूषण के कारण गंगा में जगह-जगह डेड जोन बन गए हैं। कहीं आधा, कहीं एक तो कहीं दो किलोमीटर के डेड जोन मिलते हैं। यहां से गुजरने वाला कोई जीव-जंतु या वनस्पति जीवित नहीं बचता।
  • खेती में रासायनिक खादों और जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग: ये रसायन बरसात के समय बहकर नदी में पहुंच जाते हैं तथा नदी की पारिस्थितिकी को बिगाड़ देते हैं।
  • गंगा में प्रदूषण का एक बड़ा कारण जीवनशैली की धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है। गंगा में केवल वाराणसी में 33 हजार से अधिक शवों के दाह के बाद 700 टन से अधिक राख और अधजले शव या कंकाल बहा दिए जाते हैं। 
  • अन्य कारणों में रेत खनन भी प्रमुख है
  • गंगा पर शुरू में ही टिहरी तथा अन्य स्थानों पर बांध और बैरेज बना दिए गए। इससे गंगा के जलप्रवाह में भारी कमी आई है। गंगा के प्रदूषण का यह भी बहुत बड़ा कारण है। बांधों और बैरेजों के कारण नदी की स्वाभाविक उड़ाही (डी-स्लिटिंग) की प्रक्रिया रुकती है।

सरकार द्वारा अन्य प्रयास

  • गंगा को राष्ट्रीय नदी
  • गंगा डाल्फिन को जलीय राष्ट्रीय जीव घोषित किया गया है

अन्य क्या प्रयास सार्थक होंगे

  • शवों को रोकने के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम में गंगा तट के नगरों में 100 विद्युत शवदाह गृह बनाने की योजना है, परंतु हिंदू धर्म की पारंपरिक मान्यताएं इसमें बाधक हैं। इसके लिए हिन्दू  मानसिकता को बदलना होगा।
  • गंगा को निर्मल रखने के लिए देश की कृषि, उद्योग, शहरी विकास तथा पर्यावरण संबंधी नीतियों में मूलभूत परिवर्तन लाने की जरूरत पड़ेगी।
  • नदियों को प्रदूषणमुक्त रखने के लिए इन रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों पर दी जाने वाली भारी सबसिडी को बंद करके पूरी राशि जैविक खाद तथा कीटनाशकों का प्रयोग करने वाले किसानों को देनी पड़ेगी। और अंतत: रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों पर पूर्ण रोक लगानी पड़ेगी।

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