खाद्य सुरक्षा और सिंकुचित होती जैव विविधता

प्राकृतिक जैव विविधता पर धीरे-धीरे ग्रहण लगता जा रहा है।

  • सदियों पहले 7,000 से अधिक वनस्पति प्रजातियां उगाई जाती थीं।
  •  अब 150 से अधिक नहीं बची हैं। वर्तमान में इन्हें उगाया जाता है और कुछ हद तक इनका व्यवसाय भी होता है।
  • गंभीर स्थिति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि विश्व में कुल खाद्यान्न उत्पादन में करीब 90 प्रतिशत योगदान इनमें से दो-तिहाई प्रजातियां उपलब्ध कराती हैं
  • । इनमें भी तीन प्रमुख प्रजातियां-धान, गेहूं और मक्का- ऐसी हैं जो प्रमुख रुप से दुनिया भर में उपजाई जाती हैं।
  • भोजन ग्रहण करने से मिलने वाली ऊर्जा की बात करेंतो दुनिया के लोग करीब 50 प्रतिशत कैलोरी इन्हीं तीन किस्मों से प्राप्त करते हैं। 

इसका मतलब यह है की अगर यह इसी तरह सिमित होती रही और अगर ये फसेल किस्सी महामारी की चपेट में आ गई जैसा की हमने आयरलैंड में आलू और दक्षिण पूर्व एशिया में रबर के सन्दर्भ में देखा तो हमारे पास उनको बचाने के बहुत ही सिमित और न के बराबर उपाय होंगे | जैव विविधता एसी बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करती है पर इसके सिमित होने से हमारे उपाय भी सिमित होते जा रहे है और जो सीधे तौर पर हमारे खाद्य सुरक्षा पर खतरा है |

जीव विविधता :

जीव विविधता की हालत भी इससे कतई अलग नहीं है।

  • दुनिया भर से वन्य जीव प्रजाति सालाना 2 प्रतिशत की रफ्तार से घटती जा रही है।
  • 1970 और 2012 के बीच मछली, स्तनधारी, पक्षी और सरीसृप प्रजातियों की तादाद में 58 प्रतिशत की जबरदस्त कमी आई है।
  • इस दशक के अंत तक यह आंकड़ा बढ़कर 67 प्रतिशत पहुंच सकता है। वल्र्ड वाइल्डलाइफ फंड के अद्र्धवार्षिक 'लीविंग प्लैनेट इंडेक्सÓ के अनुसार 2020 तक करीब दो तिहाई वन्य प्राणी दुनिया से विलुप्त हो जाएंगे। 

 

कृषि कार्यों में मददगार माने जाने वाले कीट-पतंगे और सूक्ष्म जीव भी सुरक्षित नहीं रह गए हैं। इन कीटों को पादप, जीव-जंतु और मानव के स्वास्थ्य तथा कृषि पारिस्थितिकी के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि इनमें कितने विलुप्त हो गए हैं, इसका कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह निर्विवाद है कि इनकी विविधता अच्छी-खासी कम हो गई है। कीटों और सूक्ष्म जीवों की कई महत्त्वपूर्ण प्रजातियां अब विलुप्त होने के कगार पर हैं और लगता नहीं कि ऐसे हालात में इनका लंबे समय तक अस्तित्व बरकरार रह पाएगा।

 मानव के लिए बढते खतरे का सूचक है जैव विविधता की सीमितता :

 

 धरती की आधी से अधिक सतह पर संपूर्ण जैव विविधता का ताना-बाना भंग हो गया है और क्षेत्रीय जैव विविधता के 14 प्रमुख अंचल में से  9 में यह विविधता सुरक्षित स्तर से नीचे चली गई है। इन सभी आंकड़ों से बस एक ही निष्कर्ष निकलता है कि इस समय संपूर्ण मानव जाति के लिए फायदेमंद जैव विविधता निर्मम रफ्तार से खत्म हो रही है। यह बात अवश्य याद रहनी चाहिए कि प्राकृतिक जैव विविधता कोई अक्षय प्राकृतिक संसाधन नहीं हैं, यानी इनका दोबारा सृजन नहीं हो सकता है।  

खाद्य सुरक्षा (food security ) :

जैव विविधता को होने वाला किसी भी तरह का नुकसान चिंता की बात है, खासकर कृषि क्षेत्र में इसका समाप्त होना या कम होना अच्छी बात नहीं है क्योंकि इसका लोगों की आजीविका सुरक्षा और खाद्यान्न पर सीधा असर होगा। भारत के संदर्भ में यह बात इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाती है कि क्योंकि :

यह कृषि जैव विविधता का एक प्रमुख केंद्र है। विश्व में उपलब्ध भूमि क्षेत्र का करीब 2.4 प्रतिशत हिस्सा ही भारत में है, लेकिन यहां अब तक ज्ञात सभी प्रजातियों की 7 से 8 प्रतिशत किस्म ही पाई जाती हैं। इनमें पादप की करीब 45,000 और जीवों की लगभग 91,000 प्रजातियां शामिल हैं।

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