- उत्तरी ध्रुव पर धरती से 15 से 35 किलोमीटर ऊपर ओजोन लेयर में छिद्र बन गया है। इन गर्मियों में इसके और बढ़ने की आशंका है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका इस इलाके समेत दुनिया भर में पर्यावरण पर असर हो सकता है।
- इस बार उत्तरी ध्रुव के ओजोन लेयर वाली परत पर रिकॉर्ड ठंडक रही है। इससे ओजोन लेयर को समाप्त करने वाले रसायन बन गए हैं। इससे आशंका यह बनी है कि इस जगह पर लेयर को 25 प्रतिशत तक क्षति पहुंचेगी।
- बर्फ की मोटी चादर बिछी रहने के कारण उत्तरी ध्रुव पर वैसी भी अत्यधिक ठंड पड़ती है और यहां छह महीने सूरज नहीं निकलता।
- इस समय उच्च रासायनिक क्रियाएं वायुमंडल में क्लोरीन और ब्रोमीन का निर्माण करते हैं।
ताकतवर हवाओं और बेहद ठंडे वातावरण की वजह से क्लोरीन के तत्व ओजोन परत के पास जमा होते हैं।
- अन्य रासायनिक तत्वों के साथ मिले क्लोरीन के अणु पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आने पर टूट जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार प्रदूषण और मौसमी बदलावों की वजह से यह प्रक्रिया तेज हुई है।
=>क्या है महत्व?
- पृथ्वी की सुरक्षा छतरी
- धरती पर ओजोन ज्वलनशील रसायन और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। लेकिन वायुमंडल में यह धरती को अल्ट्रावायलेट रोशनी से बचाता है।
- 1981 के दशक में ही वैज्ञानिकों ने पाया था कि क्लोरीन वाले रसायन ओजोन परत को क्षति पहुंचा रहे हैं।
- ऐसा खास तौर पर उत्तरी ध्रुव पर हो रहा है। हमारे घरों में भी इस तरह के रसायन का उपयोग होता है। रेफ्रिजरेटर में इसका ही उपयोग किया जाता है।
=>क्या हो रहा?
- इस साल ठंड वाले तापमान ने अधिकांशतः प्राकृतिक संसाधनों से निकले नाइट्रिक एसिड की परत को यहां गहरा कर दिया है।
पिछले तीन-चार माह से इस वजह से यहां इंद्रधनुषी बादल बराबर देखे जा रहे हैं। ये बादल क्लोरीन को सक्रिय रसायनों में बदलने की प्रक्रिया को तेज कर रहे हैं और ये आने वाले दिनों में सूर्य की रोशनी में ओजोन की परत को क्षति पहुंचाएंगे।
=>क्यों जरूरी ओजोन परत
- ओजोन परत गैस का एक नाजुक कवच है जो पृथ्वी की सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों से रक्षा करता है।
=>क्या हो गया इसे
- पृथ्वी के पर्यावरण प्रदूषण और रेफ्रीजरेशन और एयर कंडीशन से निकालने वाली गैसों से इसमें काफी नुकसान की आशंका जताई गई थी। इन गैसों को हम आमतौर पर क्लोरोफ्लोरोकार्बन और हैलोन के रूप में जानते हैं, जिसका उपयोग रेफ्रिजरेटरों, स्प्रे केन आदि में होता है।
=>अब क्या है स्थिति
- मांट्रियल प्रोटोकाल के तहत ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों को लेकर जो कार्रवाई की गई है, उससे ओजोन परत के सुधरकर 1980 के स्तर पर वापस आने की संभावना है।
=>क्या है मांट्रियल प्रोटोकाल
- दुनिया के तमाम देशों के बीच इस प्रोटोकाल पर 16 सितंबर, 1987 को हस्ताक्षर किया गया था।
- उद्देश्य था ओजोन परत के नुकसान के जिम्मेदार तत्वों के उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना।
- वर्ष 1987 में ओजोन क्षरण तत्वों में हर साल उत्सर्जित होने वाले करीब 10 गीगाटन कार्बन डाईऑक्साइड का योगदान था।
=>अब क्या हाल है
- उत्सर्जनों में मांट्रियल प्रोटोकाल की वजह से अब 90 फीसद से अधिक की कमी आई है। फिलहाल प्रतिवर्ष 0.5 गीगाटन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है।