हजार से ज्यादा प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर

जूलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन तथा येल यूनिवर्सिटी द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पक्षियों की हजार से ज्यादा प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं। इसमें सबसे ज्यादा पीड़ित 100 प्रजातियों में से 15 भारत की हैं। बदलती जलवायु के साथ मानवीय हस्तक्षेप के चलते पक्षियों के अस्तित्व पर यह खतरा मंडरा रहा है। इन खूबसूरत जीवों की 128 प्रजातियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। पर्यावरणविदों के मुताबिक यदि पक्षियों के उचित संरक्षण के प्रयास नहीं किए गए तो आने वाले 100 वर्ष में इनकी कुल प्रजातियों का 12 प्रतिशत हिस्सा यानी कि 1183 प्रजातियां पूर्ण रूप से विलुप्त हो सकती हैं। 

=>>ज्यादा प्रजातियां भारत में 
भारत में पक्षियों की तेरह सौ से ज्यादा प्रजातियां हैं। वहीं कुल इक्कीस सौ उप-प्रजातियां भी देखने को मिलती हैं। यहां सबसे खास बात यह है कि अकेले उत्तराखंड में 693 प्रजातियां पाई जाती हैं। इसकी मूल वजह यह है कि यहां 64.81 फीसद क्षेत्र वनाच्छादित है। विश्व के अठारह सर्वाधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में पूर्वी हिमालय भी शामिल है। बिहार में तीस से ज्यादा पक्षी-प्रजातियां हैं जिनमें पांच फीसदी प्रवासी पक्षी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पूर्वाेत्तर के प्रदेशों में भी पच्चीस से तीस प्रजातियां पाई जाती हैं। 

=>>प्रवासी पक्षियों ने रुख बदला 
★लद्दाख, चीन, जापान, रूस, साइबेरिया, अफगानिस्तान, ईरान, बलूचिस्तान, मंगोलिया, पश्चिम जर्मनी, हंगरी व भूटान से आकाश के रास्ते भारत आने वाले पक्षियों पर खतरा ज्यादा मंडरा रहा है। विदेशों से पोर्टचाई स्पाटबिल, टीलकूट, बहूमणि हंस, लालसर, चाहा क्रेन, आइविस व डक पक्षी विशेष रूप से भारत आते हैं। करीब तीस फीसदी प्रवासी प्रजाति के पक्षी भारत आते हैं। इनमें से अधिकतर पक्षियों का शिकार किया जाता है। नतीजतन ये प्रवासी पक्षी पुन: अपने वतन नहीं लौट पाते हैं। हर साल अक्टूबर से मार्च तक आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या में काफी गिरावट आई है। 

=>>शासन का बेरुखा व्यवहार 
★वर्ष 1995 में केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय ने पक्षियों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिकों की एक समिति का गठन किया था। उस समिति ने अपनी रिपोर्ट में नए अभयारण्य बनाने व नए अनुसंधान केंद्र खोलने की सिफारिश की थी। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि उक्त रिपोर्ट को भी नौकरशाही ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। 

=>>गायब हो रहे गौरैया-तोते :-
★गौरैया की आबादी में आठ फीसद तक कमी आई है। ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी आॅफ प्रोटेक्शन आॅफ बर्ड्स ने तो देश की गौरैया को 'रेड लिस्ट' में डाल दिया है। आंध्रप्रदेश विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक शहरी व ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में गौरैया की संख्या सात फीसद कम हो चुकी है। अध्ययन में इस बात का भी जिक्र है कि आगामी दस सालों में बारह फीसदी प्रजातियां खत्म हो सकती हैं। विश्वभर में तोतों की तीन सौ तीस प्रजातियां हैं। आने वाले पांच वर्षों में तोतों की सर्वाधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा भारत में है। जहां हिमालयी मोर की संख्या का घनत्व पंद्रह साल पहले 35 प्रति वर्ग किलोमीटर था, अब घटकर 2 प्रति वर्ग किलोमीटर रह गया है।

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