★ अंग्रेज़ी की एक मशहूर कहावत है 'Teaching is the one profession that creates all other professions' यानी शिक्षा देना ही इकलौता ऐसा काम है जो बाकी सभी तरह के पेशों को जन्म देता है। यानी शिक्षकों के बिना किसी भी सभ्य और समृद्ध समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। हम ये समझना चाहते हैं कि देश के भविष्य का निर्माण करने वाले शिक्षकों का वर्तमान कैसा है? वो कैसे हालात में शिक्षा देने जैसा महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं? उन्हें इस काम के बदले में क्या मिलता है? और भारत में शिक्षक बन जाना, घर चलाने की गारंटी क्यों नहीं माना जाता? अक्सर हम भारत में शिक्षा के हालात पर बात करते हैं लेकिन आज हम पूरी व्यवस्था को शिक्षकों की नज़र से देखेंगे।
★ भारत में इस वक्त करीब 3 लाख 74 हज़ार शिक्षकों की कमी है और इस कमी का खामियाज़ा सिर्फ छात्रों को नहीं बल्कि शिक्षकों को भी भुगतना पड़ता है क्योंकि इससे मौजूदा शिक्षकों पर बोझ पड़ता है और शिक्षा की गुणवत्ता खराब होती है।
★ 2013 से 2014 के दौरान की गई एक स्टडी के मुताबिक भारत के 2 लाख 57 हज़ार 680 स्कूलों में शौचालय नहीं थे। स्कूल में शौचालय का अभाव सिर्फ छात्रों के लिए नहीं शिक्षकों के लिए भी परेशानी की वजह बनता है।
★ भारत में एक ट्रेंड टीचर की औसत सैलरी 50 हज़ार रुपये प्रति महीना है लेकिन देश के कई प्राइवेट स्कूल ऐसे हैं जहां शिक्षकों को 2 हज़ार रुपये से लेकर 8 हज़ार रुपये प्रति महीने तक की सैलरी दी जाती है। आप सोच सकते हैं कि इतनी कम सैलरी में बच्चों को शिक्षा देना कितना मुश्किल काम होता होगा।
★ बिहार में एड-हॉक पर काम करने वाले शिक्षकों को 5 हज़ार रुपये प्रति महीना मिलते हैं। इन शिक्षकों को स्थायी शिक्षकों की तरह दूसरी सुविधाएं नहीं दी जातीं। कई बार ऐसी शिकायतें भी मिलती हैं कि जितने पैसों के लिए शिक्षकों से साइन करवाए जाते हैं असलियत में उन्हें उतने पैसे नहीं मिलते। वैसे भारत में सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले बहुत कम सैलरी पाते हैं।
-लक्जमबर्ग में एक टीचर की औसत मासिक सैलरी 5 लाख 50 हज़ार रुपये हैं।
-इसी तरह जर्मनी में एक शिक्षक प्रति महीने 3 लाख 66 हज़ार रुपये कमा लेता है।
-कनाडा में ये औसत 3 लाख 50 हज़ार रुपये प्रति महीने का है।
-जबकि ऑस्ट्रेलिया में एक टीचर महीने में औसतन 3 लाख रुपये की सैलरी लेता है।
★ भारत अपने एजुकेशन सिस्टम को वर्ल्ड क्लास बनाना चाहता है लेकिन हमारा सिस्टम ना तो स्कूलों को वर्ल्ड क्लास बना पा रहा है और ना ही शिक्षकों को उनकी मेहनत का फल मिल रहा है। हमारे देश में सेना में भर्ती होने वाले एक सिपाही को करीब 21 हज़ार रुपये, एक किसान को करीब 6 हज़ार 426 रुपये और एक शिक्षक को करीब 20 हज़ार 250 रुपये प्रति महीने सैलरी के तौर पर मिलते हैं।
★ आप कह सकते हैं कि देश को भोजन, सुरक्षा और शिक्षा देने वाले किसान, सेना के जवान और शिक्षकों को वो हक नहीं मिल पाता जो उन्हें मिलना चाहिए। हमारे देश में अक्सर जय जवान और जय किसान के नारे लगाए जाते हैं, शिक्षक को भगवान माना जाता है लेकिन हम इन तीनों को ही इनका हक नहीं दे पाते हैं।
★ जब से शिक्षा का बाज़ारीकरण शुरू हुआ है। शिक्षा का स्तर गिरा है। बहुत सारे लोग अब इसे भारत निर्माण से जुड़ा पेशा मानने के बजाय अपनी जेबें गर्म करने वाला पेशा मानने लगे हैं। ब्लैक बोर्ड को ब्लैंक चेक की तरह इस्तेमाल करने वाले व्यापारियों पर सवाल जरूर उठाने चाहिए लेकिन एक सवाल हमें खुद से भी पूछना चाहिए कि क्या हम उन शिक्षकों को वो सम्मान दे पाते हैं जो सबकुछ छोड़कर देश के निर्माण में जुटे रहते हैं।
★ सरकार द्वारा किए गए एक औचक निरीक्षण में पता लगा कि देश के सरकारी स्कूलों में 25 प्रतिशत शिक्षक अनुपस्थित थे जबकि सिर्फ आधे ही शिक्षक की कक्षाओं में पढ़ा रहे थे। शिक्षकों की क्लास बंक करने की आदत से देश को हर साल 9 हज़ार 968 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
★ एक बड़ी समस्या ये भी है कि भारत में शिक्षकों को अक्सर दूसरे कामों में लगा दिया जाता है। भारत में सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को अक्सर जनगणना, चुनावों की ड्यूटी, मिड डे मील और पोलियो मिशन जैसे कामों में लगा दिया जाता है जिससे ना सिर्फ छात्रों का नुकसान होता है बल्कि पाठ्यक्रम पूरा कराने का दबाव भी शिक्षकों पर भी पड़ता है।
★ यहां हमें ये भी समझना होगा कि भारत अपने शिक्षकों को सम्मान देने के मामले में पिछड़ता जा रहा है। शिक्षकों के साथ कई बार छात्रों के माता पिता ठीक व्यवहार नहीं करते। बच्चे की खराब प्रदर्शन का सारा दोष शिक्षकों पर मढ़ देते हैं।
★ आम तौर पर भारत में शिक्षकों की नौकरी को आराम की नौकरी माना जाता है लेकिन असलियत में शिक्षक बहुत दबाव में काम करते हैं और उन्हें सिर्फ थोड़ा सा सम्मान चाहिए होता है। हालांकि ऐसा हो नहीं पाता। आपको बताते हैं कि शिक्षकों को सम्मान देने के मामले में दुनिया के बाकी देशों की क्या स्थिति है।
★ ग्लोबल टीचर स्टेटस इंडेक्स के मुताबिक शिक्षकों को सम्मान देने के मामले में चीन सबसे आगे है। चीन में 75 प्रतिशत छात्र अपने शिक्षकों की इज़्ज़त करते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं।
-चीन में अध्यापक की नौकरी को डॉक्टर की नौकरी जैसा दर्जा हासिल है।
-चीन, टर्की, साउथ कोरिया और इजिप्ट में सबसे ज्यादा लोग चाहते हैं उनके बच्चे बड़े होकर शिक्षक बनें।
★ इस सर्वे में भारत को शामिल नहीं किया गया था इसलिए भारत के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन वर्तमान हालात को देखते हुए हमें लगता है कि भारत में शिक्षकों को वो सम्मान नहीं मिल पाता जिसके वो हकदार हैं। भारत वो देश रहा है जहां गुरुओं को हमेशा सम्मान दिया जाता है। गुरु शिष्य परंपरा की शुरुआत भारत में ही हुई थी।
★ भारत में शिष्यों ने हमेशा गुरुओं को सम्मान दिया है, भारत वो देश है जहां एकलव्य जैसे छात्र ने गुरु दक्षिणा के तौर पर अपना अंगूठा काटकर अपने गुरु को दे दिया था लेकिन अब ज़माना बदल गया है। गुरु दक्षिणा जैसे शब्द को रिश्वत से जोड़ दिया गया है अब छात्र शिक्षकों को अंगूठा काटकर देने की बजाय अंगूठा दिखा देते हैं और सिर्फ छात्र ही नहीं कई बार सिस्टम भी शिक्षकों को अंगूठा दिखाता है।
★ एक वक्त था जब भारत को विश्व गुरु कहा जाता था यानी शिक्षा की जो किरण भारत से निकलती थी वो पूरी दुनिया को रौशन करती थीं। हम आपको भारत के कुछ ऐसे ही गुरुओं के बारे में बताना चाहते हैं जिन्होंने भारत को विश्व गुरु बनाया। सबसे पहला नाम है 5वीं सदी ईसा पूर्व में पैदा हुए सिद्धार्थ जिन्होंने अपना राजसी वैभव छोड़कर ज्ञान की तलाश शुरू की और बाद में भगवान बुद्ध कहलाए. उन्होंने कहा था कि सत्य की खोज में प्रश्न पूछने चाहिए और उत्तर की तलाश में भटकने से संकोच नहीं करना चाहिए।
★ चाणक्य एक ऐसे ही शिक्षक थे जिन्होंने राजनीति और अर्थ शास्त्र के मायने बदल दिए। उन्होंने एक साधारण बालक को सम्राट बना दिया और विचार को व्यवहार में बदलने की शिक्षा दी। तीसरी सदी में विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र की रचना की और शिक्षा देने के लिए कहानियों का उपयोग किया। विष्णु शर्मा ने शिक्षा के ज़रिए तीन राजकुमारों को, योग्य प्रशासक के रूप में तब्दील कर दिया था।
★ पांचवी सदी में आर्यभट्ट ने गणित और खगोल शास्त्र के क्षेत्र में ऐतिहासिक खोजें कीं। आर्यभट्ट ने ही दुनिया को शून्य का ज्ञान दिया। भारत को विश्वगुरु बनाने में आर्यभट्ट की बहुत बड़ी भूमिका थी। सातवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने देश में शास्त्रार्थ की परंपरा शुरू की। उन्होंने जीवन में तर्क को सबसे ऊंचा दर्जा दिया और सत्य की खोज करने वालों के लिए 4 पीठों की स्थापना की।
★ 14वीं सदी में पैदा हुए कबीर भी एक ऐसे ही शिक्षक थे जिन्होंने सरल दोहों के माध्यम से समाज की बुराईयों पर कटाक्ष किया और लोगों को सही तरीके से जीवन जीने की शिक्षा दी। ये वो गुरु हैं जिन्होंने भारत वर्ष का निर्माण किया। भारत को नई दिशा दी। इन सभी महापुरुषों का जीवन आधुनिक शिक्षकों के लिए एक संदेश है क्योंकि शिक्षा के माध्यम चाहे जितने भी आधुनिक हो जाएं शिक्षा की मूल भावना हमेशा एक ही रहती है। लेकिन आपको ये जानकर अफसोस होगा कि जैसे जैसे भारत आधुनिक हो रहा है, वैसे-वैसे भारत में शिक्षकों की भूमिका को छोटा करके आंका जाने लगा है।