निबंध का दर्शन (Philosophy of The Essay)

संघ लोक सेवा/ राज्य लोक सेवा परीक्षा के प्रत्येक प्रश्नपत्र का कुछ विशिष्ट उद्देश्य होता है।

UPSC/ PSC हर प्रश्नपत्र के द्वारा अभ्यर्थी की कुछ विशिष्ट योग्यता का परखने का प्रयास करती है। उदाहरण के तौर पर सामान्य अध्ययन में हमारे आस -पास घटित हो रही घटनाओं के प्रति रूचि एवं जागरूकता को परखा जाता है। वैकल्पिक विषय ज्ञान की परीक्षा है वहीं सामान्य अध्ययन प्रबंधन की।

→ चूंकि निबंध में अत्यधिक आजादी दी गई हैः

अन्य प्रश्नों की तुलना में इतनी आजादी का मतलब है कि आपको UPSC/ PSC का खुला निमंत्रण है कि आप जो कर सकते हैं, करके दिखाइए। वस्तुतः जहाँ भी प्रतिबंध होगा, आप स्वयं का अभिव्यक्त करने में कठिनाई महसूस करेंगे। इसलिए निबध प्रश्नपत्र को प्रतिबंधों से मुक्त रखा गया है ताकि आपका मौलिक व्यक्तित्व सामने आ सके।

अतः आप हमेशा ध्यान रखें कि वस्तुतः यह आपके व्यक्तित्व की परीक्षा है और यह परीक्षण अपेक्षाकृत अधिक अनुभवी व्यक्ति करेगा

  • एक श्रेष्ठ प्रशासक से समाज जिस तरह से व्यक्तित्व की अपेक्षा करता है वही गुण आपके निबंध में भी झलकना चाहिए।  जैसे :-

→ वह संवेदनशील हो।

→ मानवीय एवं सामाजिक हित के प्रति समर्पित हो।

→ सोचने की दिशा सकारात्मक एवं रचनात्मक हो।

→ अपनी कमजोरियों के साथ-साथ अपनी शक्तियों की पहचान रखता हो।

→ वह अपने मूल्यों से समझौता किए बिना सबके साथ मिलक र चलने की क्षमता रखता हो।

→ वह भाई-भतीजावाद से मुक्त होकर सबके साथ निष्पक्ष व्यवहार करता हो। आदि

UPSC नोटिफिकेशन में स्पष्ट कहा गया है कि :-

निबंध प्रश्नपत्र में  UPSC /PSC चाहती है कि ‘‘उम्मीदवार का विषयवस्तु की पकड़, चुने गए विषय के साथ उसकी प्रासंगिकता, रचनात्मक तरीके से उसके सोचने की योग्यता, विचारों को संक्षे प में युक्तिसंगत एवं प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की तरफ परीक्षक विशेष ध्यान देंगे।’

Examiner will pay special attention to the candidate's grasp of his material. It's relevance to the specific choosen and to his ability to  think constructively and to present his idea concisely, logically & effectively.

अर्थात :-

(A) लिखे जाने वाले विषय पर अच्छी पकड़ हो।

(B) लेखन विषयवस्तु के साथ प्रासंगिक हो।

(C) विचार रचनात्मक हो।

(D) प्रस्तुतिकरण संक्षिप्त, युक्तिसंगत एवं प्रभावी हो।

निबंध की तैयारी कैसे करें?

- किसी भी प्रश्नपत्र की तैयारी की शुरूआत अनसॉल्वड देखने के साथ करें। निबंध के लिए भी

अनसॉल्वड पेपर देखने के बाद अपनी रूचि एवं पृष्ठभूमि के आधार पर निर्णय लें कि किन-किन क्षेत्रें में आप बेहतर कर सकते हैं। न्यूनतम तीन-चार क्षेत्रें का चयन कर लें।

अब आप एक नोटबुक बना लें और चुने हुए क्षेत्रें से संबंधित कोई भी अच्छा आलेख मिले तो उसे जरूर पढ़ें और उस आलेख में आपको प्रभावित करने वाले विशेष तथ्यों, वाक्यों, उद्धहरणों, विश्लेषणों, निष्कर्षों आदि को नोटबुक में नोट कर लें। कई चीजें शब्दशः लिखने की भी इच्छा होती है, इन तरह के विशेष वाक्यों को आप शब्दशः नोट कर सकते हैं। इसी तरह यदि आप समाचार सुन रहे हों, कोई कविता या उपन्यास पढ़ रहे हो कोई वाद-विवाद कर रहे हों, विष्य विशेष से संबंधित तथ्यों को नोटबुक तक जरूर पहुँचाएं। नोटबुक में पहुँचने का अर्थ है कि आप परीक्षा में उसका उपयोग करने में समर्थ हो रहे हैं, क्योंकि आप नोटबुक में संचित सामग्री को कभी भी दुहरा सकते हैं। परीक्षा करीब होने पर यह विशेष रूप से सहायक सिद्ध होगी। अब विशेष विषयों के लिए समय की उपलब्धता के आधारपर कुछ पुस्तकों का भी अध्ययन करके उपरोक्त प्रक्रिया पुनः अपना सकतेहैं। साथ ही, संबंधित विषयों में भूमिका, उपसंहार आदि को भी तैयार करके अपने नोटबुक में स्थान दे सकते हैं।

इस रणनीति के निरंतर अनुपालन से कुछ दिनों बाद आप महसूस करेंगे कि संबंधित क्षेत्र में आप अच्छी जानकारी रखने लगे हैं। आप यह भी पाएंगे कि उस क्षेत्र से संबंधित कई निबंधों में कुछ सामान्य बिन्दुओं (Common Points) को शामिल किया जा सकता है।

किन विषयों की तैयारी करें?

वस्तुतः आज तक आपने जहाँ कहीं जो कुछ भी पढ़ा है उस का श्रेष्ठतम तरीके से निबंध प्रश्नपत्र में उपयोग करना है। इसलिए निबंध की तैयारी करते समय विषयों का चयन करने के लिए अपनी पृष्ठभूमि

को जरूर ध्यान रखें। पृष्ठभूमि के अंतर्गत शैक्षणिक पृष्ठभूमि सिविल सेवा परीक्षा में आपके वैकिल्प विषय, या आपकी रुचि के विशेष क्षेत्र आदि शामिल है।

शुरुआती दौर में आप अपनी रुचि एवं पृष्ठभूमि के अनुरुप तीन-चार क्षेत्रें का चयन करके तैयारी कर सकते हैं। कालान्तर में समय की उपलब्धता के आधार पर आप अन्य क्षेत्रें की ओर भी बढ सकते हैं।

संघ लोक सेवा आयोग / राज्य लोक सेवा परीक्षा में पूछे जाने वाले निबंधों को हम सामान्यतः निम्न क्षेत्रें में विभाजित कर सकते हैं :-

 (1) सांस्कृतिक मुद्दे

(2) धर्म, विज्ञान, वैज्ञानिक मनोवृत्ति, मूल्य, मूल्योन्मुख् शिक्षा

(3) स्त्रीवाद से संबंधित मुद्दे

(4) लोकतंत्र, न्यायिक सक्रियतावाद आदि

(5) लोक सेवक, भ्रष्टाचार आदि

(6) वैश्वीकरण, नवसाम्राज्यवाद आदि

(7) गहन विचारात्मक दार्शनिक विषय

(8) समसामयिक विषयों से संबंधित निबंध

सामान्यतः जो अभ्यर्थी समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, साहित्यआदि से संबंधित हैं वे (1), (2), (3) आदि में बेहतर कर सकते हैं।

→ राजनीतिशास्त्र से संबंधित अभ्यर्थी (4), (6) आदि क्षेत्र में अच्छा कर सकता है।

→ लोक प्रशासन: (4) (5) में,

→ राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगोल आदि के अभ्यर्थी (4) (5)  (8) में

→ क्षेत्र क्र- (7) किसी विषय विशेष का मोहताज नहीं बिल्क विशेष रुचि की दरकार रखता है।

·परीक्षा कक्ष में प्रवेश करने के बाद *

=>विषय क्या चुने?

आप परीक्षा हॉल में प्रश्नपत्र प्राप्त करके आराम से 2- 3 मिनट में विषय का चयन करें। लाजमी है कि तैयारी किये गए क्षेत्र से निबंध आने पर उसी विषय से संबंधित निबंध लिखेंगे और अगर आपकी किस्मत अधिक खराब नहीं, तो तैयार किए गए तीन-चार क्षेत्रें में से एकाधिक निबंध मिल ही जाते हैं।

अगर तैयार क्षेत्रें में से कोई विषय नहीं पूछा गया है तो सामान्य बुद्धि और अपनी विशेष जानकारियों के आधार पर आगे बढ़ें।

इस संदर्भ में बड़ा सवाल है कि एकाधिक निबंध की तैयारी होने पर कौन-सा निबंध चुना जाए? वस्तुतः इस प्रश्न का अधिक सामना करना पड़ता है।

इस क्रम में सबसे अहम् सवाल है कि सामान्य विषय का चयन किया जाए या विशिष्ट विषय का?

अन्य शब्दों में, जिसे अधिक अभ्यर्थी लिख रहे हैं उस विषय पर लिखा जाए या फिर जिस विषय पर इक्के-दुक्के लोग लिख रहे हों, उस विषय पर लिखा जाए।

यदि आपकी तैयारी एवं अधिकार दोनों तरह के विषयों में बराबर है तो सामान्यतः विशेष विषय पर लिखना चाहिए क्योंकि यह परीक्षक को एक नए विषय का आस्वाद कराएगा और इसका लाभ आप

को मिल सकता है। लेकिन आप गुणवत्ता के साथ कोई समझौता न करें अर्थात किसी दूसरे सामान्य विषय में आपकी तैयारी अच्छी हो, तो उसे ही लिखें अर्थात् विशेष विषय के प्रति अनावश्यक अंधभक्ति से बचे।

मैं मानता हूँ कि विशेष विषय पर सामान्य गुणवत्ता का निबंध लिखने से अच्छा है कि सामान्य विषय पर विशेष् गुणवत्ता से युक्त निबंध लिखा जाए। व्यावहारिक रूप से भी स्त्री, लोकतंत्र, वैश्वीकरण, संस्कृति जैसे सामान्य विषयों पर भी अनेक अभ्यिर्थयों के असाधारण अंक आए हैं। लिखने से पूर्व कितने समय तक सोचें?

सभी स्वीकार करते हैं कि उत्तरपुस्तिका में अंतिम रूप से लिखने से पूर्व, संबंधित विषय पर आराम से विचार करें, मस्तिष्क में आ रहे विचारों को रफ के रूप में उत्तरपुस्तिका में लिखते च

ले जाए। उसके बाद अंतिम प्रारूप बनाकर, उसके अनुसार लिखते चले जाएं।

बेहतर है कि विषय का चयन करने के बाद संबंधित विचारों को सांकेतिक रूप में रफ में लिख लिया जाए। जहाँ तक आप स्पष्ट हैं वहाँ तक लिखें, फिर बीच में सोचने की दृष्टि से आवश्यकतानुसार रूका जा सकता है। फिर सोचे गए मुद्दे तक आगे लिखें फिर सोचने के लिए आप समय ले सकते हैं और अंत में उपसंहार को रफ में लगभग पूरा लिखकर ही फेयर में लिखें।

मेरा तात्पर्य है कि सोचने और फिर लिखनें की रणनीति से बेहतर है सोचना-लिखना सोचना-लिखना की रणीनीति।

·भूमिका कैसे लिखें?

भूमिका आपके निबंध रूपी महल का प्रवेश-द्वार है। इसलिए इसी महत्ता निर्विवाद है। भूमिका में विषय के आधार तत्व को अभिव्यक्त करना चाहिए। वस्तुतः निबंध यथार्थ से आदर्श तक की यात्रा होना चाहिए। इसलिए भूमिका को यथार्थपरक होना चाहिए। भूमिका लिखने के कई

तरीके हैं :-

(1) निबंध में आगे जो कुछ कहना है, उसका संकेत दे दे ना।

(2) जो विषय दिया गया है उससे अपेक्षाकृत बृहद् दृष्टि से शुरू करके उस विषय तक आना। (Macro-> Micro Approach)

(3) व्याख्यात्मक या सरलीकरण की रणनीति।

(4) ऐतिहासिक भूमिका।

(5) यथार्थपरक नाटकीय शुरूआत।

(भूमिकाओं की ये शैलियाँ उदाहरणों से ही स्पष्ट हो सकती है।)

·भाषा कैसी हो?

सामान्यतः यह प्रश्न किया जाता है कि सहज -सरल भाषा प्रयोग किया जाए या स्तरीय-साहित्य भाषा का? ̧

मेरा जवाब होगाः

सहज या स्तरीय भाषा का प्रयोग करने के बजाय आप अपनी भाषा का प्रयोग करें। ̧

दोस्तों! कौन-सी भाषा सहज है और कौन-सी स्तरीय? यह एक आत्मनिष्ठ (Subjective) सवाल है। जो भाषा एक व्यक्ति के लिए सहज है, वहीं दूसरे व्यक्ति के लिए अति स्तरीय हो सकता है, और तीसरे के लिए यही भाषा सतही किस्म की हो सकती है। वस्तुतः सतही भाषा सहज भाषा, स्तरीय भाषा, जटिल भाषा आदि के निर्धारण के कोई वस्तुनिष्ठ पैमाने नहीं हो सकते। इसलिए इन सब के संबंध में अनावश्यक माथा-पच्ची के बजाय आप अपनी मौलिक भाषा का प्रयोग करें ताकि उसमें सहज प्रवाह आ सके और वह बोधगम्य हो। अनावश्यक रूप से तत्समपरक शब्दों के कृत्रिम प्रयोग से बचें। आपके वाक्य छोटे हों तो यह अच्छी बात है, मगर प्रवाहयुक्त लम्बा वाक्य हो तो भी चिंता की कोई बात नहीं। वह भी

छोटे वाक्य की तरह ही प्रभावी माना जाएगा। वस्तुतः आपके वाक्य ऐसे होने चाहिए कि उस वाक्य में प्रयुक्त प्रत्येक शब्द आसानी से समझा जा सके मगर शब्दों के क्रम में प्रवाह से प्रभाव पैदा हो।

जैसेः- एक ही भाव को यक्त करने वाले दो वाक्य उन्हीं शब्दों के साथ दिए गए हैं :-.

(1) पगडंडियों पर चलने वालों के लिए कोई गर्दिश और बुलंदी नहीं होती।

(2) पगडंडियों पर चलने वालों के लिए कैसी गर्दिश और कैसी बुलंदी?

केवल शब्दों के क्रम में परिवर्तन करके प्रभाव उत्पन्न किया गया है। स्तरीयता की कोशिश में आप दो-चार पैराग्राफ तो रटी-रटाई चीजें लिख सकते हैं, मगर उसके बाद एकाएक अपनी औकात पर आ जायेंगे और इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

हाँ! अपनी भाषा में सुधार का निरंतर प्रयास जारी रखना चाहिए लेकिन याद रखें भाषा में सुधार एक प्रक्रिया है, कोई घटना नहीं। अर्थात् अनवरत प्रयास से हमें भाषिक दृष्टि से सम्पन्न बना सकती है। इसलिए अच्छी अध्ययन सामग्रियों का लगातार अध्ययन करते रहें।

उद्धरणों (Statements / Quotes) एवं पद्यों का प्रयोग

मौलिकता और प्रवाह के साथ किया जाने वाले कोई भी लेखन जायज है और कोई भी कृत्रिम कोशिश नाजायज। अर्थात् किसी विचार के अभिव्यक्ति के क्रम में अगर कोई कथन स्वाभाविक रूप से आ रहा है तो वह आपके निबंध का वजन बढ़ायेगा। मगर यदि कोई कथन आप ऐसे ही याद करके चले गए हैं और अपने निबंध में उसे जबरन कहीं लिखने का प्रयास कर रहे हैं तो यह आपके निबंध पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

उद्धरणों, पद्य-पंक्तियों को विचार के प्रवाह में कैसे प्रयोग किया जाए। इसे उदाहरण द्वारा बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। इसलिए उदाहरण आगे प्रस्तुत किए गए हैं।

उपसंहार कैसे लिखें? उपसंहार आपके तरकश का आखिरी तीर है। इसलिए इसकी भी महत्ता निर्विवाद है। उपसंहार लिखते समय निम्न बातों का ध्यान रखें :-

→ जिज्ञासा भूमिका का मूल बिन्दु है और इस जिज्ञासा का उपयुक्त समाधान उपसंहार के आते-आते हो जाना चाहिए।

→ विषय विशेष में विभिन्न विचारों के निचोड़ को बहुत ही कम शब्दों में व्यक्त कर देना चाहिए।

→ उपसंहार की दिशा भविष्योन्मुखी होनी चाहिए।

→ उपसंहार आशा और सपनों की भाषा होनी चाहिए।

→ उपसंहार निष्कर्ष देने की प्रक्रिया है इसलिए कोई नया मुद्दा उपसंहार में नहीं उठाना चाहिए।

·35 सूत्र वाक्य (सारांश)

→ निबंध प्रश्नपत्र आपके अंतिम परिणाम में नाटकीय परिवतर्न ला सकता है।

→ निबंध प्रश्नपत्र में हमें स्वयं को अभिव्यक्त करने की पूरी आजादी मिलती है फलतः परीक्षक की अपेक्षाएं भी अधिक होती है।

→ निबंध मूलतः आपके व्यक्तित्व की परीक्षा है।

→ स्वयं को एक जिम्मेदार प्रशासक समझकर निबंध लिखें।

→ निबंध लिखते समय मौलिकता नवीनता और सकारात्मक सोच पर विशेष बल दें।

→ सांकेतिक नोट्स बनाने की शैली निबंध प्रश्नपत्र के लिए भी काफी कारगर होती है।

→ अपनी रुचि एवं पृष्ठभूमि के अनुरूप निबंध की तैयारी के लिए कुछ विशेष क्षेत्रें का चयन कर लें।

→ परीक्षा-कक्ष में विषय का चयन सोच-समझकर करें।

→ विशिष्ट विषयों में ही निबंध लिखने की अनावश्यक अंधभक्ति से बचें।

→ सोचना फिर लिखना की रणनीति से बेहतर है ‘‘सोचना -लिखना सोचना-लिखना’’ की रणनीति।

→ लेखन समग्रतावादी (Holistic) हो।

→ किसी विचारधार के प्रति अंधभक्ति से बचें। लेफ्ट -राईट का चक्कर छोड़कर मानव-मूल्योन्मुख दृष्टि से लिखें।

→ चिंतन युक्तिसंगत हो, अर्थात् हर विषय का तार्किक विश्लेषण करके उसके सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्ष को सामने लाया जाए तथा एक संतुलित निष्कर्ष दिया जाए।

→ जब किसी विषय के कुछ पहलुओं की तैयारी होती है तो परीक्षा में उस विषय का निबंध देखते ही हम उन पहलुओं को ही लिखना शुरू कर देते हैं, जबकि निबंध में कुछ अन्य पहलुओं के विश्लेषण की माँग होती है।

→ अर्थात् पूछे गए निबंध का वास्तविक अर्थ एवं अपेक्षाएं पहले समझें।

→ लेखन में क्रमबद्धता हो।

→ बहुआयामी समाधान प्रस्तुत करें।

→ भूमिका और उपसंहार को अंतिम रूप से उत्तरपुस्तिका में लिखने के पूर्व रफ में लगभग शब्दशः पहले लिख लें

→ सम्पूर्ण निबंध यथार्थ से आदर्श की यात्र होनी चाहिए।

→ इसी तरह निबंध समस्या से समाधान की भी यात्र है।

→ भूमिका का मूल बिन्दु जिज्ञासा है और आगे जिज्ञासाओं का समाधान होते जाना चाहिए।

→ मौलिक भाषा का प्रयोग करें।

→ ऐसी भाषा हो कि लगे कि आप परीक्षक से बात कर रहे हैं।

→ मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग करें।

→ विराम चिन्हों का यथोचित प्रयोग करें।

→ लेखन संबंधी त्रुटियों से बचें।

→ अच्छी हैंडराइटिंग महत्वपूर्ण है।

→ पठनीयता अच्छी हैंडराइटिंग का पहला पैमाना है।

→ महत्वपूर्ण वाक्यों का अण्डरलाईन करें।

→ मौलिकता एवं विचारों के प्रवाह के क्रम में उद्धहरणों एवं पद्य-पंक्तियों (कविताओं) का प्रयोग करें।

→ उपसंहार में मुद्दों का निष्कर्ष होना चाहिए।

→ उपसंहार में कोई नया मुद्दा न उठाएं।

→ उपसंहार में सोच की दिखा भविष्योन्मुखी, स्वप्नशील एवं आशा से लबालब होनी चाहिए।

 

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