भेदिया कारोबार के बारे में दो न्याय क्षेत्रों की कथा

implication of US SC ruling on insider trading

#Business_Standard

अंदरूनी लोगों द्वारा मूल्य के लिहाज से संवदेनशील सूचनाओं को लीक करने पर आधारित कारोबार को अवैध करार देने का मानक अमेरिका में पिछले दिनों फिर एक तरह के अनिश्चय में नजर आया।

  • अमेरिका में कौन सी चीजें किसी कारोबार को अवैध बनाती हैं, इसके लगातार बदलते मानक वहां के भेदिया कारोबार कानून का हिस्सा बन चुके हैं।
     
  • एक अपील अदालत ने कहा है कि यह कतई आवश्यक नहीं है कि अगर कोई व्यक्ति किसी से भेदिया जानकारी पाता है, उसका उस व्यक्ति से कोई करीबी संबंध हो।
  • यही अदालत दिसंबर 2014 में कह चुकी है कि ऐसा रिश्ता यह साबित करने में अहम है कि भेदिया कारोबार हुआ है।
  • उस मामले में प्रतिभूति कारोबार करने वाले दो व्यक्तियों का खुफिया जानकारी देने वाले से अस्पष्टï और कभी कभार वाला संबंध ही सामने आया था। चूंकि दोनों में कोई करीबी रिश्ता सामने नहीं आया था इसलिए कहा गया कि इसे भेदिया कारोबार मानने की पर्याप्त वजह नहीं। संक्षेप में कहें तो इस सूचना से कोई लाभ संभव नहीं था।

दो वर्ष बाद दिसंबर 2016 में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा कि सूचना देने के बदले किसी लाभ को स्थापित करने की आवश्यकता नहीं। इस मामले में सूचना लेने और देने वाले सहोदर थे। इसी आधार पर अपील अदालत ने अब कहा है कि कारोबार को अवैध साबित करने के लिए किसी व्यक्तिगत संबंध को स्थापित करने की आवश्यकता नहीं। अदालत ने तो यहां तक कहा कि भेदिया अगर किसी को कोई जानकारी देता है तो वह पैसे के अलावा भी कुछ हासिल कर सकता है। ऐसे में इस जानकारी पर आधारित कारोबार गैर कानूनी ही होगा।

India & Insider trading

भारत की बात करें तो हमारे देश में लगभग हर आदमी यह मानता है कि अमेरिका में भेदिया कारोबार करने वालों को दंडित करने की बेहतर व्यवस्था है जबकि भारत इस मामले में शिथिल है। लेकिन यह बात सच नहीं है। पहली बात तो यह कि भारतीय कानून के तहत हर वह व्यक्ति भेदिया है जो मूल्य को प्रभावित करने वाली किसी तरह की अप्रकाशित अंदरूनी जानकारी रखता है। ऐसे में ऐसी किसी सूचना के आधार पर किया जाने वाला कारोबार भेदिया कारोबार हो जाता है। दूसरी बात, अप्रकाशित मूल्य संवेदनशील सूचना का इस्तेमाल हमारे देश में गैर कानूनी है। यह तभी वैध है जब इसकी कोई उचित वजह हो। मसलन किसी अंकेक्षक को मसौदा अंकेक्षण दिखाना आदि।

  • व्यवहार में इसके प्रवर्तन का तौर तरीका देश में प्रतिभूति कारोबार को काफी खतरनाक बना देता है। हालात ऐसे हैं कि किसी भी व्यक्ति का कोई भी कारोबार अवैध करार दिए जाने के जोखिम में रहता है।
  • जरूरत बस इतनी ही है कि कारोबारी और किसी अंदरूनी व्यक्ति के बीच किसी तरह का रिश्ता साबित किया जा सके। अमेरिकी न्याय व्यवस्था इस अतिरंजना को लेकर सचेत है। निर्दोष कारोबारियों पर भेदिया कारोबार का आरोप व्यवस्था को गलत दिशा में ले जाता। भारतीय नियामकों ने जो राह चुनी उसमें अगर किसी भी तरह का रिश्ता देखने को मिला तो इसे भेदिया सूचना के आधार पर किया गया अवैध कारोबार मान लिया जाएगा। इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि दोनों के बीच कोई संवाद हुआ या नहीं।
  • आश्चर्य की बात है कि कानूनी संशोधन के जरिये नियामक को दूरसंचार कंपनियों से कॉल डाटा मांगने का अधिकार मिलने के बावजूद उसने कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया। यह अधिकार इसलिए दिया गया है ताकि यह साबित किया जा सके कि वास्तव में दोनों व्यक्ति संपर्क में थे या नहीं। ऐसे अधिकार का प्रयोग अपने साथ यह जवाबदेही भी लाता है कि अगर कोई रिश्ता निकलता है तो उसकी तीव्रता को भी साबित किया जाए। सबसे बुरी बात यह है कि अनौपचारिक निर्देश में यह कहा गया कि किसी पोर्टफोलियो मैनेजर और उसके क्लाइंट (जो भेदिया हो सकता है) के बीच संचार के प्रमाण की तह में गए बिना भी अगर पोर्टफोलियो मैनेजर भेदिये के लिए कारोबार करता है तो भले ही उस भेदिये का कोई संदर्भ नहीं आए लेकिन यह अवैध होगा
  • अगर किसी व्यक्ति को कीमत के लिहाज से संवेदनशील ऐसी जानकारी किसी भेदिये से मिली है तो परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर यह आसानी से स्थापित किया जा सकता है कि भेदिया कारोबार हुआ है या नहीं।
  • अगर किसी व्यक्ति को किसी ‘भेदिये’ से कोई ऐसी सूचना प्राप्त हुई है जो प्रकाशित नहीं है और जो कीमत के लिहाज से संवेदनशील है तो उसे प्रत्यक्षतया प्रमाण के रूप में समझा जा सकता है। बहरहाल, जो लोग स्वयं भेदिया हैं उनके लिए जोखिम काफी बढ़ जाता है। कोई ऐसा व्यक्ति जिसके बारे में माना जा सकता है कि उसके पास अंदरूनी जानकारी हो सकती है। फिर उसकी पहुंच है या नहीं और अगर है तो इसे साबित करना आदि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनको अक्सर जाने दिया जाता है। ऐसे मामलों में अदालती प्रवर्तन एक लंबी प्रक्रिया है।
  • यह एक ऐसा निष्कर्ष है जिसके बारे में अपील अदालत के न्यायाधीश ने चेतावनी दी थी। उनके मुताबिक इस अस्पष्टïता का लाभ उठाएंगे। उनकी नजर में इसकी वजह से भेदिया कारोबार संबंधी कानून पर काफी बुरा असर पड़ता है।
    एक और ऐसी बात है जो भारत में इस समस्या को कई गुना बढ़ा देती है। अमेरिकी प्रवर्तन एजेंसियों को एक निष्पक्ष न्यायाधीश को सप्रमाण समझाना होता है। इस प्रक्रिया में किसी व्यक्ति को आरोपित करने के लिए समुचित न्यायिक विश्लेषण की आवश्यकता होती है। जबकि हमारे देश में किसी व्यक्ति को भेदिया कारोबार का दोषी बताने के लिए केवल नियामक का इस पर विश्वास करना काफी होता है। इसे कितनी अच्छी तरह व्याख्यायित किया जाना है यह केवल उस अपील पर निर्भर करता है जो दोषी ठहराए जाने के बाद ही की जा सकती है।

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