- रूप यौवन संपन्न: विशाल कुल संभव:। विद्याहीन: न शोभते निर्गंधा इव किंशुका।
~यानी भले ही कोई आकर्षक व्यक्तित्व वाला हो, ऊंचे खानदान से ताल्लुक रखता हो, लेकिन अगर विद्या विहीन है तो वह उसी फूल की तरह है जो देखने में तो आकर्षक लगता है लेकिन उसमें सुगंध नहीं होती है।
~ हमारे मनीषियों ने विद्या, ज्ञान और शिक्षा के ऐसे तमाम महात्म्य बताए हैं। शिक्षा का अर्थ सामान्यत: पढ़ाई करके महज डिग्री लेना नहीं है। सही मायने में शिक्षा वही है जो किसी के व्यक्तित्व का बहुआयामी संवद्र्धन करे।
=>मूल्य~
विद्या ददाति विनयम्, विनयादि याति पात्रताम्। पात्रत्वाद धनमाप्नोति, धनाद धर्म: तत: सुखम्।
~ अगर किसी बच्चे में शुरुआती शिक्षा-दीक्षा के दौरान ही उसके चारित्रिक गुणों का विकास, नैतिक मूल्यों की समझ, खुद के कर्तव्यों का बोध विकसित हो जाए तो सामाजिक बुराईयां-कुरीतियां और अपराध काफी हद तक कम हो जाएंगे।
~ कोई भी गलती करने से पहले संस्कार उसे रोकेंगे। उसके नैतिक मूल्य उसे टोकेंगे। उसके कर्तव्य उसे झकझोरेंगे। अपवाद हर जगह हो सकते हैं लेकिन व्यापक रूप में इसके सकारात्मक और प्रभावी असर दिखाई देंगे।