कैशलेस की अड़चनें

नोटबंदी के समय नकली नोटों से छुटकारा मिलने, आतंकवादियों की फंडिंग रुकने और काले धन पर करारी चोट पहुंचने का दावा किया गया था लेकिन अब इस अभियान का केंद्र भारत को नकदी-रहित अर्थव्यवस्था बनाना हो गया है।

क्या है दिक्कते :

  • Infrastructure :देश में नकदी-रहित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने वाला भौतिक ढांचा या कानूनी ढांचा नहीं होने जैसी अनेक खामियां हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक बैंकों की केवल 38 फीसदी शाखाएं ही ग्रामीण इलाकों में हैं। पिछली जुलाई तक हर पांच में से चार गांवों और हर तीन में से एक कस्बे में कोई बैंक नहीं हैं। पूरे देश के 593,000 गांवों के लिए केवल 120,000 बैंकिंग प्रतिनिधि हैं। यानी ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में रहने वाली 60 करोड़ से भी अधिक आबादी की बैंकों तक पहुंच नहीं है।
  • Banking Account: इसी तरह 30 करोड़ से भी अधिक वयस्क आबादी के पास कोई बैंक खाता नहीं है। देश की करीब 94 फीसदी वयस्क आबादी के पास आधार कार्ड होने का अनुमान है।  लेकिन 6 करोड़ वयस्क लोग अब भी ऐसे हैं जिनके पास बैंक खाते खुलवाने लायक कोई दस्तावेज नहीं हैं।
  • Electricity: हालत यह है कि ग्रामीण इलाकों में सक्रिय बैंकों के लिए कोर बैंकिंग जैसा काम भी कर पाना मुश्किल हो जाता है क्योंकि बिजली आपूर्ति काफी अनियमित है। एटीएम के संचालन में भी इसी तरह की व्यावहारिक परेशानियां आती हैं।
  • Internet:  इंटरनेट कनेक्शन की हालत खराब होने से वहां ऑनलाइन लेनदेन काफी मुश्किल हो जाता है। प्रधानमंत्री नोटबंदी के बाद से ही लोगों से लगातार अपील कर रहे हैं कि वे बैंकिंग सेवाओं के लिए अपने मोबाइल फोन का इस्तेमाल करें। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में संचार घनत्व केवल 51 फीसदी होना यह संकेत दे देता है कि ग्रामीणों की एक बड़ी संख्या अब भी फोन से वंचित है। भारत में इस समय जो 90 करोड़ मोबाइल फोन हैं उनमें से 65 करोड़ तो फीचर फोन हैं और मोबाइल लेनदेन के लिए जरूरी स्मार्टफोन की श्रेणी में केवल 25 करोड़ फोन ही आते हैं। ग्रामीण इलाकों में स्मार्टफोन की पहुंच काफी कम होने से यूपीआई या मोबाइल वॉलेट के इस्तेमाल की संभावना ही खत्म हो जाती है। देश भर में करीब 35 करोड़ इंटरनेट कनेक्शन हैं लेकिन उनमें भी शहरी क्षेत्र हावी हैं।
  • Lack of PoS: व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में कार्ड स्वाइप करने वाली पीओएस मशीनों की संख्या पूरे देश में केवल 14 लाख है और अधिकांशत: शहरी इलाकों में ही उनका संकेंद्रण है। प्रति 10 लाख आबादी पर पीओएस मशीनों की संख्या केवल 693 है जो दुनिया में न्यूनतम पीओएस अनुपात में से एक है। चीन में यह अनुपात 4,000 और ब्राजील में 33,000 पीओएस प्रति 10 लाख है।
  • PoS and high cost: जहां तक पेटीएम जैसे मोबाइल वॉलेट का सवाल है तो वे प्रत्येक लेनदेन पर 2 फीसदी का कमीशन वसूलते हैं। खास तौर पर छोटे कारोबारियों के लिए तो यह काफी महंगा सौदा होगा। भौतिक ढांचे में इन कमियों के साथ ही भारत के पास मजबूत डेटा सुरक्षा कानून भी नहीं है।
  • Cyber Security:  पिछले कुछ महीनों में ही ऑनलाइन डेटा चोरी करने के कई मामले सामने आ चुके हैं। डेटा प्राइवेसी कानून भी नहीं होने से यह खतरा बना हुआ है कि मोबाइल लेनदेन से हासिल डेटा को कंपनियां बाद में दूसरों को भी बेच सकती हैं। 

Government measures:

सरकार इनमें से कुछ खामियों को दुरुस्त करने की कोशिश कर रही है। फीचर फोन पर भी बुनियादी बैंकिंग सेवाओं की सुविधा देने वाली यूएसएसडी तकनीक अपनाने के लिए सरकार मोबाइल कंपनियों पर काफी जोर डाल रही है। सरकार ने पीओएस मशीनों पर लगने वाले उत्पाद शुल्क को भी कम कर दिया है। नकदी-रहित लेनदेन को बढ़ावा देने के तरीके सुझाने के लिए मुख्यमंत्रियों की एक समिति भी बनाई गई है। इन उपायों से वह सवाल एक बार फिर उठ खड़ा होता है कि क्या सरकार नोटबंदी के पहले ऐसा नहीं कर सकती थी? सच तो यह है कि ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में नकदी-रहित लेनदेन अपनाने में खासा समय और भारी निवेश लगेगा। 

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