टैक्स चोरी रोकने के लिए भारत सरकार का मॉरीशस के साथ DTAA संधि में संसोधन का समझौता, अब सिंगापुर के साथ वार्ता

टैक्स चोरी और DTAA संधि में संसोधन का मामला भारत और मॉरीशस के संबंधों में एक बड़ी रुकावट रहा है। DTAA संधि के कुछ उपबंधों के कारण ही मॉरीशस के रस्ते से होकर राउंड ट्रिपिंग और टैक्स चोरी के मामले सामने आते रहे हैं।

अब टैक्स चोरी को रोकने के लिए मॉरीशस के साथ दोहरी कराधान संधि में संशोधन को लेकर भारत का समझौता संपन्न हुआ है। मॉरीशस से समझौते में सफल रही भारत सरकार यही काम सिंगापुर के साथ करने की तैयारी में है. 
ज्ञातव्य हो कि मॉरीशस के बाद सिंगापुर भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है।

=>विस्तार से :-
कुछ् दिन पहले ही भारत और मॉरीशस ने दोहरे कराधान से बचने के दो दशक पुराने समझौते में संशोधन पर दस्तखत किए हैं. इसके तहत अगर मॉरीशस की कंपनियां एक अप्रैल 2017 के बाद भारतीय कंपनियों में अपने शेयर बेचती हैं तो उन्हें इससे होने वाले पूंजीगत लाभ पर भारत सरकार को कर देना होगा.

पहले ऐसा नहीं था. हालांकि शुरुआती दो वर्षों के लिए कर की दर घरेलू कर दरों के 50 प्रतिशत तक ही सीमित रहेगी. यानी वित्तीय वर्ष 2019-20 से मॉरीशस की कंपनियों को भारत के घरेलू करदाताओं की तरह ही पूरा कर देना होगा. 
संशोधित संधि के मुताबिक रियायती दर पर पूंजीगत लाभकर उसी कंपनी पर लागू होगा जो यह साबित कर देगी कि उसने मॉरीशस में कम से कम 27 लाख रुपए का खर्च किया है और वह वहां सिर्फ एक शेल यानी मुखौटा कंपनी के तौर पर सक्रिय नहीं है.

मॉरीशस 2014-15 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत था. इस दौरान 24.7 अरब डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में मॉरीशस का 24 फीसदी योगदान रहा. सिंगापुर के लिए यह आंकड़ा 21 फीसदी था.

भारत व मॉरीशस के बीच दोहरी कराधान संधि 1983 में हुई थी. लेकिन लंबे समय से इस संधि को लेकर सवाल उठते रहे. आरोप लगते रहे हैं कि मॉरीशस से आने वाला ज्यादातर निवेश असली नहीं नहीं बल्कि भारतीयों का ही पैसा है जो वे मॉरीशस के माध्यम से देश में वापस लाकर निवेश कर रहे हैं.

संधि में बदलाव के बाद अब कंपनियां मॉरीशस के नाम पर कर देने से नहीं बच सकेंगी. अब तक यह प्रावधान था कि मॉरीशस में पंजीकृत किसी कंपनी की अगर भारत में परिसंपत्तियां हैं तो उन पर सिर्फ मॉरीशस में ही टैक्स लग सकता था. 
भारत में अल्पावधि पूंजीगत लाभ यानी शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर 20 फीसदी टैक्स लगता है लेकिन मॉरीशस में ऐसा नहीं है. इसलिए ये कंपनियां न तो भारत में टैक्स का भुगतान करती थीं और न ही मॉरीशस में.

13 लाख की आबादी वाला मॉरीशस 2014-15 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत था. इस दौरान 24.7 अरब डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में मॉरीशस का 24 फीसदी योगदान रहा. सिंगापुर के लिए यह आंकड़ा 21 फीसदी था.

इस फैसले को लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. कुछ के मुताबिक मॉरीशस और सिंगापुर के साथ संधि में सुधार से भारत में विदेशी निवेश की लागत बढ़ जाएगी जिससे आने वाले दिनों में शेयर बाजार पर इसका बुरा असर दिख सकता है. बहुत से जानकार यह भी मानते हैं कि टैक्स हैवेन कहे जाने वाले देशों के साथ अगर इस तरह के समझौते होते हैं तो यह सही दिशा में उठाया गया कदम है.

 

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